विजयदशमी विजय का पर्व है, अपनी दस आसुरी प्रवृत्तियों का संहार करने और मानवता में विश्वास स्थापित करने का पर्व है। यह हमारी सांस्कृतिक एकता का परिचायक पर्व भी है। यह पर्व नौ दिवसों तक शक्ति की आराधना के पश्चात् विष्णु स्वरूप प्रभु श्रीराम द्वारा अहं के स्वरूप खल रावण के विनाश का प्रतीक है , आज ही के दिन दुर्गतिनाशिनी दुर्गा द्वारा अत्याचारी महिषासुर का भी संहार किया गया था। आज का दिन शिवमुख से रामकथा की नियताप्ति श्रवण का भी दिन है। इस प्रकार यह दिन शैव, वैष्णव और शाक्त मतों की एकता का दिन है और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आतंकवाद रूपी असुर के विनाश की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा का भी दिन है।
विजयादशमी के पावन अवसर पर यदि हम समाज में फ़ैली दस बुराइयों का दशानन के दस सिरों की भांति वध कर सकें तो निश्चय ही एक समतामूलक समाज और रामराज्य की दिशा में देश आगे बढ़ सकता है--
1- आतंकवाद का शीश
2- भ्रष्टाचार का शीश
3- महिला, बालिका, बालक एवं दुर्बलों के उत्पीड़न का शीश
4- कुशासन और अन्याय का शीश
5- गंदगी का शीश
6- निर्धनता का शीश
7- अशिक्षा का शीश
8- बेरोजगारी का शीश
9- कुप्रथाओं का शीश
10- छुआछूत का शीश
दशानन के ये दस शीश तभी निर्जीव होंगे, जब हम दृढ संकल्प के रामबाण से इनकी नाभि (मूल) पर प्रहार करेंगे। तभी शायद हमारी विजयादशमी (दस दुर्गुणों पर विजय) तथा दशहरा ( दसों शीशों का हरण) सार्थक और संभव होगा।
आज का यह पावन पुनीत दिवस आप सबके जीवन में शांति, सुख, समृद्धि, तोष, दीप्ति और प्रशस्ति दे, यही नव मातृकाओं तथा प्रभु श्रीराम से पुनीत प्रार्थना है।आप सभी को जय पर्व दशहरा और विजयदशमी की हार्दिक बधाई।
जय राम जी की, हर हर महादेव, जय भवानी।
प्रशस्ति, दीप्ति और प्रो. पुनीत बिसारिया
आचार्य एवं पूर्व अध्यक्ष हिन्दी विभाग
बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी, उत्तर प्रदेश 284128
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