विजयदशमी पर्व पर चक्रव्यूह

 

महाभारत की बात है,

जैसे कल की बात है,

कौरव पिटते जाते थे,

द्रोण नहीं कुछ कर पाते थे।

दुर्योधन उन पर घुन्नाया,

गुरु ने चक्रव्यूह तब रचवाया,

अभिमन्यु पाण्डव वीर चला,

देख उसे शत्रु दहला। 

कौरव सारे टूट पड़े,

अभिमन्यु रण-बीच अड़े,

दुर्योधन-दुशाषन ने वार किया,

द्रोण-कृपाचार्य ने साथ दिया।

कर्ण, विकर्ण, अश्वत्थामा भी वार करें,

सातों मिलकर मानवता का नाश करें,

अभिमन्यु ने पाई वीर गति, 

थी शायद उसकी यह नियति।

अर्जुन रथ चढ आया,

देवकीनंदन संग लाया,

दुष्टों का आखिर नाश हुआ 

धर्म का फिर से वास हुआ।

               *

महाभारत अब भी होता,    

अभिमन्यु हर दिन मरता, 

सारे रक्षक हैं भक्षक बने,

गिनती पापों की कौन गिने। 

योगी करते पाखंड महा,

साधु ने व्यभिचार गहा,

गुरु के उर में सद्भाव नहीं

मानवता का नाश सही।

हे, अर्जुन अब आ जाओ,

दुष्टों से पिंड छुड़ा जाओ,

कृष्ण तुम्हारे साथ सदा,

कर दो पापों को आज विदा।

हो धर्म पुनः से स्थापित,

हे कृष्ण, केवल तेरे आश्रित,

विजयादशमी सफल करो,

कृपा ‘ओम’ पर आज करो।

ओम गुप्ता, ह्यूस्टन

विजयादशमी, 2023

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