'सर्दीला मौसम'


मौसम कितना बदल गया 

हर पत्ता पीला-पीला है

बारिश की बूँदों में भीगा 

सब लगता गीला-गीला है l


ठिठुर रहीं हैं चिड़ियाँ बैठी

जब सर्द हवा चल पड़ती है

गाँवों में सूखे पत्तों को बटोर

आग अलाव में जलती है l 


सर्दी के मारे सब पशु-पक्षी

कहीं जंगल में छुप जाते हैं 

इधर-उधर वह भटक-भटक

आश्रय विहीन रह जाते हैं l


तब ढूँढ-ढूँढ कर कहीं से वह 

तिनके बटोर कर लाते हैं

और खाना संचित करने को

कुछ अपने नीड़ बनाते हैं l


-शन्नो अग्रवाल

शोषण

     

                                                                                                                                                               “हिम्मत,ओ हिम्मत अरे हिम्मत सिंह जी”

महिंदर ने मेमसाब की चढ़ती हुई आवाज़ सुनी। वह जानता था कि जब भी मेमसाब, हिम्मत को हिम्मत सिंह जी कहकर पुकारती हैं,, तब उनका पारा सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ होता हैं। वह कोठी के मुख्यद्वार की रखवाली छोड़कर अंदर भागा। मेमसाब कही बाहर जाने के लिए तैयार होकर छत पर खड़ी थी। अब ऐसे में यह मरदुआ हिम्मत कहाँ जाकर मर गया?  शायद गाँव से उसकी बीबी का फ़ोन आ गया होगा। अब हम लोग अपने परिवार को गांव में छोड़कर दो पैसे कमाने के लिए यहाँ शहर में मालिक लोगों को जी हुजूरी करते रहते हैं । घर परिवार के सारे काम हमारी बीबियाँ ही तो करती हैं, उनके पास हमारी मेमसाब जैसे हर काम के लिए अलग अलग नौकर तो नहीं ना हैं। ऊपर से हमारी बीबियाँ हर बात के लिये हमसे पूछती रहती हैं, मेमसाब जैसे नही जो साहेब की एक बात नहीं सुनती, हमेशा ऊँची आवाज़ में चिल्लाकर ही बात करती हैं। छत पर से मेमसाब ने चिल्लाकर पूछा "ये हिम्मत कहाँ मर गया हैं, मैंने उसे ठीक ४ बजे गाडी तैयार रखने को कहाँ था, अब ऐन पौने चार बजे यह कहाँ चला गया। मुझे एक बहुत जरुरी समारोह में जाना हैं। उसका मोबाइल भी लग नहीं रहा। ।"

"वह यही आस पास गया होगा मेमसाब आता ही होगा, मैं उसे ढूंढकर लाता हूँ," महिंदर का यह कहना था की मेमसाब फिर भड़क गई, अब तुम कोठी की रखवाली छोड़कर उस हिम्मत को ढूंढने जाओगे, तुम लोगों को अपनी जिम्मेदारी का ज़रा भी एहसास नहीं हैं , पगार लेना हो, होली दिवाली की बख्शीश मांगनी हो तो भीगी बिल्ली की तरह समय से पहले आ जाते हो, और काम का कहो तो नानी दादी याद आती हैं। इनसे कहकर तुम दोनों की तनख्वाह में से पैसे कटवाउंगी। तुमने ही उसे साहब से यह कहकर लगवाया था ना की मेरे गांव का हैं, मेहनती हैं,। 

अब रामु को देखो, उसने मेरी रसोई कितनी अच्छी तरह से संभाली हैं, जो भी कहती हूँ, जिस वक़्त भी कहती हूँ सामने हाजिर कर देता है। अब खड़े खड़े मेरा मुँह क्या देख रहे हो, जाओ उसे पकड़ कर लाओ, जरूर किसी गुमटी पर खड़ा होगा। और हाँ, जब साहब आएंगे तो उन्हें कह देना कि मैं "पुरुषों द्वारा महिलाओं के शोषण" पर होने वाली गोष्ठी में जा रही हूँ और देर रात लौटूंगी। 


डॉ. नितीन उपाध्ये 

प्राध्यापक 

दुबई (संयुक्त अरब अमीरात)

 सॉनेट

चलो चाँद पर

बंटाढार किया धरती का चलो चाँद पर

जाति धर्म संपत्ति देश वादों में बँटकर,

हाय हाय मर-मार रहे खुद को खुद डटकर,

एक दूसरे को लूटें सरहदें फाँदकर,

खाएँ न खिचड़ी अमन-चैन से कभी रांँधकर,

पीट निबल को बार बार सबलों से पिटकर,

यही सभ्यता मानव की मत व्यर्थ गर्व कर,

ढोता है अर्थी सच की जो आप काँध पर।


काम क्रोध मद लोभ मोह क्यों पाल रहा है?

मिटा रहा कुदरत को जीवन पर संकट बन,

काश! सुधरकर जीवन को नवजीवन दे दे।

अहंकार की सुरा हाय क्यों ढाल रहा है?

रक्षा करे प्रकृति की रक्षा कवच सदृश तन,

मंगल का मंगल कर चंदा के सँग खेले।।

आचार्य संजीव वर्मा सलिल 

 सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य (इसवी सन पूर्व ३२१-२९७

मयूर मल्लिनाथ वग्यानी, सांगली महाराष्ट्र

   चन्द्रगुप्त मौर्य जीका जन्म जैन कुल में हुआ था. उन्होने  नंद राजा को  हराके वो  मगध के राजा बन गये। उनकी राजधानी पाटलिपुत्र थी। इसके महामन्त्री चाणक्य थे। उसकी सहायता से उसने सम्पूर्ण भारत पर शासन किया। उनका राज्य ईरान, अफगानिस्तान से लेकर बंगाल उड़ीसा तक था


नंद वंश को समाप्त करने और सिंहासन पर बैठने के बाद, चंद्रगुप्त ने राज्य की सीमाओं का विस्तार करना शुरू कर दिया और ग्रीक राजा अलेक्जेंडर के वफादार सेनापति सेल्यूकस निकेटर को हराकर उत्तर-पश्चिम में कई राज्यों को अपने नियंत्रण में ले लिया। इस युद्ध में हारने के बाद सेल्यूकस ने अपनी पुत्री कार्नेलिया का विवाह चन्द्रगुप्त से करके संधि कर ली।

शादी में, चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी भेंट किये। और फिर उसने चाणक्य की मदद से सेल्यूकस के साथ ऐतिहासिक संधि की और नई मित्रता की शुरुआत की. इसके साथ ही अराकोसिया, (कंधार), गेड्रोसिया (बलूचिस्तान), पारोपमिसदाए (गांधार) चंद्रगुप्त को दिए जाने का उल्लेख मिलता है।

ग्रीक में चंद्रगुप्त का उल्लेख सैंड्रोकोट्टोस या एंड्रोकोटस के नाम से किया गया है। इस सफल ऑपरेशन के बाद चंद्रगुप्त की प्रसिद्धि पूरी दुनिया में फैल गई और मिस्र और सीरिया के तत्कालीन शक्तिशाली साम्राज्यों ने एशियाई महाद्वीप में पहली बार अपने राजनीतिक दूतावास स्थापित किए और इन देशों के राजदूतों को चंद्रगुप्त के दरबार में नियुक्त किया गया।

इतिहासकारोंका कहना की यूनानी राजदूत मेगस्थनीज चंद्रगुप्त के शासन और मौर्यों के वैभव से इतना प्रभावित हुआ कि उसने इंडिका नामक ग्रंथ लिखा। दुर्भाग्य से, इस ग्रंथ का अधिकांश भाग आज मौजूद नहीं है। परन्तु जो भाग अभी भी उपलब्ध है उससे चन्द्रगुप्त की शक्ति तथा चणक की प्रभावशाली नीति का आभास होता है, अपनी लिखा है कि शाही दरबार में जैन साधु उपस्थित थे। इसके अलावा तक्षशिला में जैन मुनियों की उपस्थिति का अभिलेख है, चंद्रगुप्त और सिकंदर की मुलाकात भी उसकी डायरी में अंकित है। वापस जाते समय, सिकंदर ने राज्य का प्रबंधन करने के लिए अपने सेनापतियों को भारत में छोड़ दिया था . 


पंजाब और उत्तर-पश्चिमी प्रांतों को विदेशी शासन से मुक्त कराने के लिए चंद्रगुप्त को यूनानी सेना से युद्ध करना पड़ा। यूनानी सेना को भारत से खदेड़ने के बाद चंद्रगुप्त मौर्य पंजाब, उत्तर-पश्चिम सीमा और सिंध प्रांत का स्वामी बन गया। चंद्रगुप्त के शासन वाले क्षेत्रों में बलूचिस्तान, अफगानिस्तान, गांधार, हिंदू कुश पर्वत श्रृंखला, काबुल, विंध्य पर्वत, बिहार, बंगाल, ओडिशा, दक्कन (आधुनिक महाराष्ट्र) और मैसूर शामिल थे।


मौर्य काल के दौरान, मगध क्षेत्र में मगधी प्राकृत, पाली प्रमुख भाषाएँ थीं, संस्कृत शिलालेखों या किसी भी समकालीन लिखित उपकरण में मौजूद नहीं थी। चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार उत्तर-पश्चिमी सीमाओं तक भी किया, जहाँ पैशाचिक और गांधारी प्राकृत जैसी भाषाएँ प्रयोग में थीं। इससे प्रारंभिक अनुमान लगाया जा सकता है कि चंद्रगुप्त ने अपने शासन काल में मगधी प्राकृत अथवा पाली को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थान दिया होगा।


जनता निचुड़ी जा रही, सुधि लेगा अब कौन?

 जनता निचुड़ी जा रही, सुधि लेगा अब कौन?

एक–

राजनीति को क्या कहें, शब्द सभी हैं मौन।

जनता निचुड़ी जा रही, सुधि लेगा अब कौन?

दो–

मुख पर चुगली नाचती, लिये पनौती माथ।

वाम विधाता दिख रहा, छोड़ेंगे सब साथ।।

तीन–

अस्ली-नक़्ली सब यहाँ, भेद करेगा कौन?

बात 'बात' से कह रही, उत्तर हैं क्यों मौन?

चार–

सब चहुँ नंगे दिख रहे, गौरव से भरपूर।

समय तरेरे आँख हैं, होगा सब कुछ चूर।।

पाँच–

छवि राजा की धूसरित, पाप-पंक मे पाँव।

अन्धायुग है लौटता, समय चलेगा दावँ।।

छ: –

सत्ता खेती बन गयी, फ़स्ल दिखे हर ओर।

जनता जोहे बाट है, होगा कबतक भोर।।

 आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज

बिनब्याही अपूर्णता


सुनो न!

तुम्हारी पूर्णता 

भाती नहीं मुझे; 

क्योंकि तुम मुझसे 

द्रुत गति मे चलायमान हो।

हाँ, मै अपूर्ण हूँ।

तुम मुग्ध हो, अपनी पूर्णता पर 

और मुझे गर्व है, अपनी अपूर्णता पर;

क्योंकि आज मुझे 

एहसास हो रहा है :–

कुछ रिक्तता बहुत ज़रूरी है,

ज़िन्दगी को तराशने के लिए।

मै काम्य कर्म से परे

काम्यत्व से रहित

कापथ से मुक्ति का 

आकांक्षक रहा हूँ।

तुम्हारा आक्रमिता-चरित्र

मुझे तुम्हारी ओर आकृष्ट नहीं कर सकता;

क्योंकि तुम्हारा गर्विता-रूप

गर्ह्यवादी प्रतीत होता आ रहा है।

मुझे तलाश है :–

एक मधुर और बिनब्याही अपूर्णता की;

जो अनसुनी, अनकही तथा अनदेखी रही हो;

वही अपूर्णता स्निग्ध है;

सौजन्य, सौम्य, सौरभित है;

बिनब्याही मंज़िल-सी।

आओ! माँग भर दें;

एक ऐसे अनुराग का प्रस्फुटन कर दें,

जिससे हम अद्वैत गवाक्ष से 

द्वैत पर द्वैधपूर्ण दृष्टि का अनुलेपन करते रहें

और हम अपूर्ण रहकर भी 

पूर्णता के साक्षी बनते रहें।

 आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज, 

गुरुनानक जी की 554वीं जन्म जयंती प्रकाशपर्व पर विशेष


गुरुनानक जी पर भगवान् महावीर का प्रभाव


प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली


शोध खोज करें तो क्या नहीं मिलता , भगवान् महावीर के चिंतन का प्रभाव पूरे भारत पर पड़ा था । उनके द्वारा बताई गई अहिंसा ,दया और करुणा की शिक्षाएं सभी संप्रदायों के संत ग्रहण करते थे ।.....

............डॉ गुप्ता यह मानते हैं कि सन् १५१० से १५१५ तक लगभग पांच वर्ष उन्होंने जैन तीर्थ स्थलों की यात्रा की थी । ऐसा प्रतीत होता है कि जैन तीर्थ यात्रा के दौरान गुरुनानक जी ने दिगंबर जैन मुनियों का बहुत सत्संग किया और उनसे बहुत प्रभावित हुए –

दइआ दिगम्बरु देह वीचारी ।आपि मरे अवरा नहीं मारी।।


गुरुनानक जी कहते हैं कि जिसमें दया है और दूसरे के शरीर का विचार है ,जो स्वयं मर जाये लेकिन दूसरों को मार नहीं सकते वे दिगंबर मुनि हैं । ...........


*सरल भाषा लिखना सरल नहीं है

डॉ. रामवृक्ष सिंह, पूर्व महाप्रबंधक ( हिन्दी), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, लखनऊ


यदि किसी व्यक्ति की शब्दावली और वाक्यों की समझ सीमित हो तो उसके लिए क्या सरल और क्या कठिन!परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग शब्दों, एक ही शब्द के अनेक पर्यायों और अनेक प्रकार की वाक्य-भंगिमाओं का चयन करना किसी विद्वान का ही काम हो सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र में और विशेषकर जनतांत्रिक व्यवस्थाओं में प्रशासन अपनी बात को अधिक से अधिक लोगों तक तभी पहुँचा सकता है, जब वह आम-फहम के शब्दों और उसमें प्रचलित वाक्य-भंगिमाओं का प्रयोग करे। तुलसीदास का उद्देश्य आम आदमी तक रामकथा को पहुँचाना था, इसलिए संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान होने के बावजूद उन्होंने रामचरित मानस की रचना तत्कालीन लोक-भाषा 'अवधी' में की। सम्राट अशोक ने अपनी जन-घोषणाएं तत्कालीन भाषा पालि में कीं और उनके लिए ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया। जैन मुनियों ने अपने ग्रंथ प्राकृत में लिखे, जबकि महात्मा बुद्ध ने अपने काल में लोक-व्यवहृत पालि का इस्तेमाल किया। सबका उद्देश्य एक ही था- अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचना।


आज यदि हमें जन-जन तक अपनी बात पहुँचानी है तो जनभाषाओं का इस्तेमाल करना होगा। वह भी सरल जनभाषाओं का। प्रायः अंग्रेजी पर यह तुहमत भेजी जाती है कि वह कठिन और दुरूह भाषा है, उसमें एक ही वाक्य में अनेक वाक्य संगुंफित होते हैं। इसे देखते हुए इंगलैंड में भी 'प्लेन इंगलिश' आन्दोलन चला। इस आन्दोलन के पुरोधाओं में सबसे प्रमुख नाम है सर अर्नेस्ट गॉवर्स का। उन्होंने सन 1948, 1951 और 1954 में क्रमशः Plain words, a guide to the use of English;  Plain words तथा The complete plain words ये तीन पुस्तकें इसी विषय पर लिखीं।


इंग्लैंड में ही 1979 में कठिन भाषा के विरोध और सरल भाषा के समर्थन में यह मत रखा गया गया कि Everyone should have access to clear and concise information.


1999 में तो एक विनियम ही बना दिया गया, जिसका नाम था 'Unfair Terms in Contract, Concise Information Regulation'. इसमें सरल व समझ आनेवाली भाषा (Plain and Intelligible language) को अनिवार्य बनाया गया।


2005 में लंदन बम कांड की रिपोर्ट में कहा गया कि आपात सेवाओं में हमेशा सरल भाषा का प्रयोग होना चाहिए, ताकि लोग उसे तत्काल समझ सकें। घुमावदार भाषा से जनहानि हो सकती है- 'Verbosity can lead to misunderstanding that could cost lives.'


हाल ही में आयरलैंड की संस्था NALA (National Adult Literacy Agency) ने सरल शब्दों में कोविड की ए टु जेड गाइड बनाई, ताकि वहाँ का सामान्य साक्षर और नवसाक्षर व्यक्ति भी इस महामारी से संबंधित सभी बातों को जान-समझ सके।


अमेरिका में भी लगभग 1970 से ही सरल भाषा आन्दोलन चल रहा है। वहाँ 1976 में Paper work Reduction Act  लाया गया।


1978 में राष्ट्रपति कार्टर ने आदेश दिया कि सरकारी विनियम किफायती और समझने में सरल होने चाहिए, ताकि आम जनता उन्हें सरलता से समझकर उनका पालन कर सके।


2010 में अमेरिका में Plain Writing Act लाया गया और इसे संघीय अनिवार्यता (Federal Requirement) बनाया गया।


कानूनी भाषा को प्रायः बहुत पेचीदा और उलझाऊ समझा जाता है। इस पर भी विद्वानों की निगाह गयी है।


1963 में डेविड मेलिंकॉफ ने कानून में सरल लेखन को लक्ष्य करके The Language of Law शीर्षक पुस्तक लिखी।


1979 में Richard Wydock ने Plain English For Lawyers पुस्तक लिखी।


अभी कुछ ही सप्ताह पूर्व भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री वाई डी चन्द्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने भी कहा कि It's not adequate that a decision is accurate, it must also be reasonable, logical and easily comprehensible.


लोकतंत्र को लोक का, लोक द्वारा लोक के लिए परिभाषित करने वाले लोकतांत्रिक समुदायों में सरल भाषा का कितना महत्त्व है, यह किसी से छिपा नहीं है। इसलिए लोकोन्मुख शासन को इस विषय पर बहुत गंभीरता से सोचना चाहिए।

हिन्दी संघ की राजभाषा है. किन्तु अनुवाद की प्रक्रिया में अंग्रेजी की अटपटी वाक्य शैली अपना लेने के कारण वह अच्छे अच्छे विद्वानों के भी पल्ले नहीं पड़ती. संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं का यही हाल है. इसलिए अब समय आ गया है कि हम अपनी भाषाओं को आम आदमी के समझने योग्य बनाएं.

आदमी का क़त्ल कोई कर गया है।

                   🌹 ग़ज़ल🌹

इस क़दर दहशत से बच्चा भर गया है। 

आदमी को देखते ही डर गया है।।


मत परेशां हो ख़बर कुछ भी नहीं है, 

आदमी का क़त्ल कोई कर गया है। 


हार कर वो इस तरह बैठा है जैसे, 

बोझ कोई ज़िन्दगी का धर गया है। 


मौन तू साधे रहा जब बोलना था,

कुछ नहीं होगा कि अब अवसर गया है। 


वो लुटेंगे और फिर बरबाद होंगे, 

क़ाफ़िलों के साथ में रहबर गया है। 


काम पे उसके पुरस्कृत मैं हुआ हूँ, 

और हर इलज़ाम उसके सर गया है। 


बारहा समझाया है कस्तूरी तुझमें, 

पर इसे वो ढूँढ़ने बाहर गया है। 


अब तो दुनिया-ए-अदब में मैं ही मैं हूँ, 

ये सुना है कि विजय तो मर गया है। 

                  विजय तिवारी, अहमदाबाद

लव सीट



एम्स्टर्डम के तूसिंस्की थियेटर के शाम के शो में, बारबरा ने प्रवेश किया तो उसने पाया कि उसके बैठने के लिए लव सीट सुरक्षित की गई है। यह देखकर वह अपने आप में कुछ बेचैनी सी महसूस कर रही थी। वह समय से पहले आ गई थी। इस कारण अपने आपको लव सीट पर बैठे पाकर उसे बहुत अजीब लग रहा था। 

लव सीट पर बैठकर उसे मानसिक तनाव सा हो रहा था। उसने किसी से डेटिंग का वायदा भी नहीं किया था। उसके दिमाग में एक ही बात घूम रही कि इस लव सीट पर बैठने वाला दूसरा कौन है? क्या मेरे साथ कोई मजाक होने जा रहा है? 

वह बहुत देर तक असमंजस में ही रही। उसके दिमाग में सवालों की उधेड़बुन और उलटफेर चलता रहा। 

थियेटर शो शुरू होने से ठीक पहले एक हमउम्र महिला बारबरा के पास आकर बैठ गई। लव सीट पर बैठते ही उस महिला ने बारबरा से संवाद साधते हुए कहा "अरे ! आज तो लव सीट पर बैठने को मिल रहा है।" 

इस वाक्य से दोनों महिलाओं के बीच संवाद शुरू हो गया। 

बारबरा ने कहा "आज हम लव सीट पर एक दूसरे की पड़ोसी हैं। आइये कमेडियन शो को आनंद लेते हैं।"

बाद में आई महिला ने कहा "मैं तो जीवन में अकेली हूं।"

बारबरा ने बात को आगे बढ़ाते हुए तुरंत कहा "मैं भी तो अकेली हूं। अच्छा हुआ लव सीट पर आपका साथ मिला।"

शो शुरू हुआ। कमेडियन ने मजाकिया अंदाज में बहुत सी बातें कही। कमेडियन को सुनकर लोगों की हंसी में पसीने छूट रहे थे। 

कमेडियन ने कहा "मुझे बच्चे कतई पसंद नहीं हैं।"

उसने अपनी बात को बच्चों से पुरुषों और पुरूषों से महिलाओं तक को एक ही जबान में लपेटते हुए कहना जारी रखा "पुरुष भी बहुत टेढ़े होते हैं और महिलाओं का तो कहना ही क्या !"

कमेडियन की इस तरह की मजाकिया बातों को सुन सुनकर लव सीट पर बैठी दोनों महिलाएं भी लोटपोट हो रही थी। वे बीच बीच में एक दूसरे की ओर देखकर 'लव सीट' शब्द कह ठहाका लगाने से भी न चूक रही थी। 

पटाकों से छूटते हंसी ठहाकों के साथ कमेडियन का शो समाप्त हुआ। 

तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट हो रही थी। थियेटर में एक ही 'तड़ तड़ तड़' तालियों की गूंज थी। 

तालियों की इस गूंज के बीच, स्टेज पर कमेडियन ने अपनी गर्दन और कंधे सहित ढ़ीले हाथों को जमीन की ओर झुकाए हुए कहा "आज मैंने कुछ भी शेष बचा कर नहीं रखा। मुझमें जितनी समझ थी सब उंडेल दी है।"

"इन तालियों से मेरी उंडेली समझ को नाप दो।"

"मेरी उंडेली समझ की शाबाशी में आप भी कंजूसी मत करो।" 

तालियों की गड़गड़ाहट हवा में और भी जोर से उभरी।

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच बारबरा की लव सीट पर बैठी पड़ोसिन ने कहा "आओ बार में चलकर कुछ पीते हैं।" 


रामा तक्षक

'नारी मुक्ति,


 कान्फ्रेंस हाल साहित्यकारों,पत्रकारों गणमान्य अतिथियों से और श्रोताओं से खचाखच भरा था।आज नारी मुक्ति जैसे महत्वपूर्ण विषय पर आलेख पढे जाने थे,चर्चा होनी थी।

                         निश्चित समय पर कार्यक्रम शुरु हुआ। अध्यक्ष,उपाध्यक्ष,मुख्य अतिथि का परिचय देने के बाद संचालक महोदय ने आगंतुक साहित्यकारों को क्रम से बुलाना प्रारंभ किया। 

नारी विमर्श पर चर्चा शुरू हुई। प्राचीन काल से आधुनिक काल तक की विवेचना,विष्लेषणा की गयी। नारी दुर्दशा से उत्तरोत्तर  नारी उत्थान की क्रमवार व्याख्या की गयी,एक से एक जोरदार भाषण दिए गये,वक्तव्य प्रस्तुत किये गये ऐसा लग रहा था जैसे स्वर्ण युग आ गया है नारी स्वतंत्रता का।पूर्ण स्वतंत्र हो गयी है नारी दासता की सदियों पुरानी जंजीरों से। 

उन ओजपूर्ण वक्तव्यों की चकाचौंध ने धरती-आकाश को एकाकार कर दिया था।  मन मस्तिष्क को सम्मोहित करने वाले विचार पुरुष वक्ताओं के मुख से सुनकर ऐसा लगा कि समाज सचमुच बदल गया है। कौन कहता है कि पुरुष प्रधान समाज स्त्रियों का सम्मान नहीं करता ,मन विचारों से सम्मोहित हो कर एक अलग ही यात्रा पर निकल पड़ा। वैदिक काल की व्यवस्था और स्त्री सम्मान की गाथा आधुनिक काल में दृष्टिगोचर होती सी प्रतीत हुई। उसमें बल का संचार हुआ,प्रण किया स्वयं से कि अब से वह स्वयं को शोषित नहीं होने देगी न ही घर में और न ही समाज में सो उसने भी जोर दार भाषण दिया नारी उत्थान और नारी विमर्श पर। 

जोरदार तालियों के बीच चर्चा का समापन हुआ। पत्रकारों ने ध्यान से सुना ,लिखा और कैमरों की चकाचौंध रोशनी ने हाॅल मे उजाला बिखरे ही रखा। 


लगभग आठ बजे कार्यक्रम की समाप्ति पर वह घर पहुँची तो सबका फूला हुआ मुख देखकर कपडे बदल सीधे रसोई में जा घुसी।

पूरे डेढ  घंटे की मेहनत कर सभी का खाना तैयार कर सबको खाना खिलाया। सभी ने चुपचाप खाना खाया और सोने  चले गए। 

चुप्पी बता रही थी कि माहौल कुछ अच्छा नहीं है। थोड़ी देर बाद उसने कोशिश की पति से बात करने की मगर आज पतिदेव ने घोषणा कर दी आगे से तुम्हारा देर रात गोष्ठी में  जाना बंद। तुम्हारा बाहर जाना,लिखना-पढ़ना बोलना और  खाने मे देर होना मुझे पसंद नहीं। 

साहस में भरी वह कह बैठी आज नारी शिक्षित है,समझदार हैं अपना अच्छा बुरा समझती है इसलिए उसे इस दासता से मुक्ति मिलनी ही चाहिए। 


रात के सन्नाटे को चीरती एक झन्नाटेदार थप्पड़ की आवाज बंद कमरे और ए सी की आवाज  में घुटकर रह गयी उसके साथ ही सिसकियों का तेज स्वर धीरे-धीरे मद्धम पड़ अपनी आवाज़ खो चुका था। भीगा तकिया ही गवाह था नारी मुक्ति का। 


सुबह के अखबार की सुर्खियाँ पुनः चर्चा का विषय थीं शहर में  ।


सोनम यादव गाजियाबाद महानगर

गढ्ढों का शहर

 शहर 


गढ्ढों का शहर है ये , गुंडों का शहर। 

रोटी पानी माँगते हैं, मिलता जहर। 

गढ्ढों का शहर  


सड़कें भी झूमती हैं ,झूमे सारे लोग। 

फैशन में लोग यहाँ ,ढाते हैं कहर।। 

गढ्ढों का शहर


गुड्डों का शहर ये ,बुढ्ढों का शहर। 

दिन रात खाँसते हैं, थोड़ा सा ठहर।। 

गढ्ढों का शहर 


दिन में अँधेरा यहाँ , रात भी अंधेरी। 

चोरों का ही राज चले , मचा है ग़दर।। 

गढ्ढों का शहर 


अमीरों का राज यहाँ , गरीबों का रोना। 

धन बल चलता है , कैसे हो बसर।। 

गढ्ढों का शहर 


पैसे की ही माया यहाँ , पैसे का ही जोर। 

गरीबी की बातें होती , झूठी ये नज़र।। 

गढ्ढों का शहर 


मुखड़े पर मुखौटा है ,मन में है चोर। 

नकली ये रिश्ते हैं , इनसे से डर।। 

गढ्ढों का शहर 


श्याम मठपाल ,उदयपुर

हार जीत चलती रहती है,

 

हार जीत चलती रहती है,

फ़िक्र नहीं बिल्कुल करना ।

आऐं कितने  आँधी-तूफ़ाँ,

कर्म निरंतर तुम करना ।।

पीछे कभी न हटना बंदे,

बन  जा  फ़ौलादी  चट्टान ।

हौंसला रखना बुलंद  रे,

रहना हरदम सीना  तान ।।

विजय-पताका आसमान में,

फहरा  देना  नौनिहाल ।

दीवार एक हिमगिरि के माफिक,

बन जाना एक अद्भुत  ढाल ।।

मुस्कान एक बन अंगारे की,

आन-बान पर मर-मिटना ।

हार जीत चलती रहती है,

फ़िक्र नहीं बिल्कुल करना ।।

 बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज"

               कोटा (राजस्थान)


 परम पूज्य आचार्य श्री सुनील सागर महाराज जी के आशीर्वाद से एक विशेष निबंध प्रतियोगिता रखी गई है जिसका विषय है जन-जन के महावीर 

 जिसमें पुरस्कारों की राशि तो आकर्षक है ही, इसमें देश , जाति, भाषा, धर्म आदि का कोई बंधन नहीं है क्योंकि भगवान महावीर जन जन के थे इसलिए प्रतियोगिता भी जन जन के लिए है। शीघ्र से शीघ्र रजिस्ट्रेशन करें 🙏

विश्व का सर्वप्रथम वेब पुस्तकालय

 http://vtlibrary.com      

विश्व का सर्वप्रथम वेब पुस्तकालय

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           वेब पुस्तकालय के खुलते ही आदरणीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. हरिवंश राय बच्चन और श्री गोपाल दास नीरज की तस्वीर नज़र आएगी तस्वीर के दाईं तरफ ऊपर मेनू लिखा हुआ है। मेनू पर क्लिक करते ही इस वेब पुस्तकालय में संकलित सभी साहित्यकारों की सूची आपके सामने उपस्थित हो जाएगी। इसमें से आप vijay tiwari के नाम पर क्लिक करते ही पुस्तकों की सूची सामने आएगी। जिसमें से धरा से गगन तक-2 पर क्लिक करते ही विश्व के इक्कीस देशों के हिन्दी रचनाकारों को  का यह अंतरराष्ट्रीय हिन्दी काव्य संकलन आपके सम्मुख खुल जाएगा। इसे पढें और आनन्द लें। 

     इस वेब पुस्तकालय को विश्व के तीस देशों के हजारों लोगों ने अभी तक देखा है। 

     आपके सम्मुख, आपकी सेवा में विश्व का यह सर्वप्रथम वेब पुस्तकालय प्रस्तुत है। आप भी इसका लाभ उठाएँ, आन्नद लें। विजय तिवारी

हर तरफ ‘पनौती‘

 हर तरफ ‘पनौती‘


हर तरफ पनौती छाया हुआ है। यह फिल्मों की दुनिया से निकलकर राजनीति के मंच पर आ गया है। क्रिकेट वर्ल्ड कप के फाइनल में भारत की हार के बाद सोशल मीडिया पर इस शब्द ने तेजी से जगह बनाई। इसके बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पनौती शब्द के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा तो पक्ष-विपक्ष ने इसे और चर्चा के केंद्र में ला दिया। इसके बाद चाहे राजनीतिक पार्टियां हों या आम आदमी अथवा भाषा के जानकार, सभी पनौती को भाव दे रहे हैं, जबकि अर्थ की दृष्टि से देखें तो पनौती तो भाव दिए जाने की कोई जरूरत महसूस नहीं होगी। जिस तेजी से पनौती शब्द ने विस्तार पाया है, आने वाले दिनों में यह शब्द पप्पू और फेंकू जैसे शब्दों के प्रयोग को भी पीछे छोड़ देगा। इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इसे भारत के संदर्भ में वर्ष 2023 के लिए वर्ड ऑफ  द ईयर का सम्मान हासिल हो जाए। इस शब्द की लोकप्रियता का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि गूगल पर 25 भाषाओं में इसका अनुवाद उपलब्ध है। इन भाषाओं में पनौती शब्द का प्रयोग करते हुए साधारण वाक्य बनाए गए हैं। इस वक्त भारत में गूगल पर सबसे अधिक खोजा जाने वाला शब्द बन गया है।

सामान्य अर्थाें में देखें तो यह शब्द ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयुक्त (प्रायः संज्ञा और अक्सर विशेषण के रूप में) जिसकी मौजूदगी होने भर से बनता काम बिगड़ जाता है। यानी ऐसा व्यक्ति जो अनलकी, अभागा और बुरी किस्मत वाला है। इस व्याख्या के पीछे कोई तार्किक आधार नहीं है, लेकिन जनसामान्य ने इसे इसी रूप में ग्रहण कर लिया है। इस शब्द की उत्पत्ति और व्याख्या का सिलसिला लगातार चल रहा है। भाषाविद् डॉ. सुरेश पंत का दावा है कि यह पन शब्द में औती प्रत्यय लगने से बना है। उनके अनुसार, हिंदी में औती प्रत्यय से अनेक शब्द बनते हैं। इनमें कटौती, चुनौती, मनौती, बपौती आदि शामिल हैं। हालांकि, संस्कृत और हिंदी के विद्वान डाॅ. राम विनय सिंह का कहना है कि संस्कृत में औती जैसा कोई प्रत्यय नहीं है। न ही हिंदी में प्रत्यय के तौर पर इसकी स्वीकार्यता है। हालांकि, डाॅ. राम विनय सिंह इस बात से सहमत हैं कि पनौती एक लोक शब्द है, जिसने अप-अर्थ ग्रहण कर लिया है।

वैसे, इस शब्द के संदर्भ में और कुछ व्याख्या करना चाहें तो कह सकते हैं कि यह दो शब्दों से मिलकर बना है- पन और औती। पन शब्द पनघट, पनबिजली और पनचक्की आदि में पानी के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। पनौती का अर्थ बाढ़ भी है। यहां भी पन यानी पानी के कारण संकट पैदा हो रहा है। इसलिए विनाशकारी बाढ़ भी पनौती ही है। फेसबुक पर एक टिप्पणी में दुर्गा शरण दुबे लिखते हैं, पनौती अर्थात पानी फिर जाना। पनौती मे कर्ता का भाव निहित है सो यह व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता हुआ विशेषण रूप मे प्रयुक्त किया जाने लगा है। हालांकि यह मानक शब्द नहीं है, यह जनसामान्य मंे प्रयुक्त देसज शब्द है। पन शब्द अवस्था या दशा से भी जुड़ा है। इससे बालपन, अल्हड़पन, युवापन जैसे शब्द भी बने हैं। हिंदू धर्म के कुछ ग्रंथों में चार पनोतियों (हालांकि, पनोती और पनौती, दोनों अलग शब्द हैं, लेकिन लोगों ने एक ही मानकर स्वीकार कर लिया है) का उल्लेख मिलता है। ये पनोती जीवन की चार अवस्थाओं-बालावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था (वृद्धावस्था)-से जुड़ी हैं।

पनौती को शनि की बुरी दशा का समय भी माना गया है। इसे साढ़े साती से कम प्रभाव वाला माना जाता है। यहां इसका अर्थ पौने या यानी 75 प्रतिशत के तौर पर भी ग्रहण ही किया जा सकता है। इसीलिए ऐसे लोगों को अक्सर शनिचरी या शनिचर भी कहा जाता है, हालांकि यह भी एक अनुमान ही है। पनौती शब्द के विषय में फेसबुक पर लिखी गई मेरी टिप्पणी पर कुछ मित्रों ने अपने भाषिक इलाकों में इस शब्द के संभावित अर्थ भी बताए हैं। इसके अर्थ के तौर पर नाशकेत (नासखेत), बिगाड़ू, मनहूस, नासपीटा, फिरौतिया आदि भी बताए गए हैं। इनका अर्थ भी बुरे के संदर्भ में भी है। इसी क्रम में फेसबुक मित्र डाॅ. सच्चिदानंद पांडेय ने लिखा, ‘ यह ज्योतिष का शब्द है, और मुंबइया भाषा से फिल्मों के जरिये भारत की आम जनता के पास पहुँचा। इसे खराब ग्रहदशा वाला समय माना जाता है। जैसे उत्तर भारत में शनि की ढैया, साढ़े साती आदि शब्द बोले जाते हैं, उसी तरह मुंबइया भाषियों में इसी खराब ग्रह के प्रभाव में चल रहे समय को उस ग्रह की पनौती कहते हैं। अब फिल्मी डायलागों में अक्सर ‘साला पनौती है‘, ‘पनौती चल रही है‘ इत्यादि सुनते-सुनते यह आम जन के प्रचलन में आया। इसी शब्द को खींचतान के अब ऐसे किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान तक के लिए प्रयुक्त किया जाने लगा जो काम बिगाड़ते हों।‘

कई बार किसी शब्द को आधिकारिक/सरकारी मान्यता भी हासिल हो जाती है। पनौती के मामले में भारत के निर्वाचन आयोग ने मान्यता बख्शने का काम किया है। आयोग ने इसे अपमानक शब्द के रूप में स्वीकार किया है। राहुल गांधी द्वारा अपने भाषण में प्रधानमंत्री को पनौती कहे जाने पर आयोग ने जो नोटिस दिया है, उसमें कहा गया है कि ‘पनौती’ शब्द प्रथम दृष्टया भ्रष्ट गतिविधियों से निपटने वाले जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 के दायरे में आता है। मतलब साफ है कि ये शब्द गाली के दायरे में आ रहा है।

अब इस शब्द को केवल भारत तक सीमित नहीं रखा जा सकता, ये पाकिस्तान में भी चर्चा में है और नेपाल के बागमती राज्य में तो एक शहर का नाम ही पनौती है। इस पर रवीश कुमार ने यूट्यूब पर एक रिपोर्ट भी की है। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि उत्तर प्रदेश में एक गांव का नाम भी पनौती है। इस शब्द को तारक मेहता का उल्टा चश्मा के अलावा परेश रावल और अक्षय कुमार की फिल्मों भी सुना गया है। इनका उल्लेख भी रवीश कुमार ने अपनी रिपोर्ट में किया है, लेकिन वे इस शब्द के भाषिक स्वरूप पर जाने की बजाय इसके राजनीतिक निहितार्थ पर ज्यादा ध्यान देते हैं और यह स्थापित करने का प्रयास करते हैं कि पनौती एक सकारात्मक और पवित्र अर्थ भी धारण किए हुए है।

पनौती और पनोती। दोनों शब्द अलग हैं, लेकिन लोगों ने दोनों को एक ही मानकर पनौती के तौर पर स्वीकार कर लिया है। आम लोगों में उच्चारण स्पष्टता के अभाव में दोनों को एक ही प्रकार से उच्चारित किया जा रहा है, जबकि दोनों के अर्थ भिन्न हैं। पनौती शब्द के मामले शब्दकोश भी हाथ खड़े कर देता है। हिंदीखोज डॉट कॉम पर सर्च करने पर लिखा आता है, ‘यह शब्द (पनौती) अभी हमारे डाटाबेस मे नही है।‘ केवल ऑनलाइन ही नहीं, हिंदी के शब्दकोशों में भी पनौती की मौजूदगी नहीं है, हालांकि पनोती जरूर मिलता है। पनोती के अर्थ का ऊपर की पंक्तियों में उल्लेख किया गया है।

वैसे, पनौती शब्द पर सबसे ज्यादा अधिकार मुंबइया हिंदी का ही दिखाई देता है। फिल्मों के जरिये ही इसने दुनिया भर की यात्रा की है। यह तय है कि आने वाले दिनों में फिल्मों, ओटीटी सीरीज आदि में इसका और ज्यादा प्रयोग सुनाई दे। वस्तुतः पनौती किसी एक भाषा का शब्द नहीं रह गया है। कुछ लोगों ने मराठी और गुजराती में इसका उत्स ढूंढने की कोशिश की, लेकिन अभी तक लोक-प्रयोग के अलावा कोई अन्य आधार नहीं मिला है। इन दोनों भाषाओं में भी ये शब्द प्रायः उन लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, जो किसी खास व्यक्ति या गतिविधि के चलते बुरा घटित होने में यकीन रखते हैं। जैसे घर से निकलते वक्त बिल्ली द्वारा रास्ता काट देना या किसी द्वारा छींक देना। आॅनलाइन माध्यमों पर इस बात का जिक्र भी किया गया है कि मराठी में बुरी खबर लाने वालों को भी पनौती बोला जाता है। दूर की कौड़ी ढूंढने वालों ने इसका संबंध तमिल शब्द पन्नादाई के साल भी जोड़ा है। दावा किया गया है कि पनौती शब्द पन्नादाई से विकसित हुआ है, जिसका एक अर्थ मूर्ख भी होता है।

इस शब्द के अभी तक के प्रयोग के आधार पर देखें तो कह सकते हैं कि ‘पनौती’ शब्द नकारात्मक अर्थ वाला शब्द है। यह शब्द उस इंसान या वस्तु के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो अपने आस-पास के लोगों के लिए बुरी सूचना की वजह बनता है। या फिर जिसकी वजह से कोई काम पूरा न हो सके, उस वजह को भी पनौती कह सकते हैं। पनौती की व्युत्पत्ति को समझने के लिए उसके इतिहास, स्वरूप और अर्थ के बारे में केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। यह अनुमान यह है कि जिस भी कारण कष्टदायक और डरावनी स्थितियां पैदा हो रही हों, वह पनौती है। यह कारण व्यक्ति भी हो सकता है और परिस्थिति भी है।

(यह एक प्रारंभिक टिप्पणी है। सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है। आपके सुझावों का स्वागत है।)

डाॅ. सुशील उपाध्याय


 प्राकृत भाषा का उत्थान बहुत आवश्यक है - आचार्य सुनील सागर जी


नई दिल्ली ,प्राकृत भाषा सिर्फ जैनागमों की भाषा ही नहीं है बल्कि यह आम भारतीयों की जनभाषा रही है ,इस भाषा ने भारत की मूल संस्कृति को सुरक्षित रखा है । अतः यदि हमें भारतीय मूल विचारधारा को जीवित रखना है तो भारत की प्राचीन भाषा प्राकृत का संरक्षण और संवर्धन बहुत आवश्यक है - यह विचार आचार्य सुनीलसागर जी ने ऋषभ विहार ,दिल्ली में प्राकृत परिचर्चा के अवसर पर मंगल उद्बोधन देते हुए व्यक्त किये । उन्होंने कहा कि प्राकृत हिंदी की दादी है क्यों कि प्राकृत के बाद अपभ्रंश और फिर हिंदी का जन्म हुआ ।

दिनाँक 11/11/23 को ऋषभ विहार स्थित सन्मति समवशरण सभा मंडप में प्राकृत परिचर्चा का आयोजन किया गया । इस अवसर पर जैन दर्शन के वरिष्ठ मनीषी डॉ रमेशचंद जैन ,बिजनौर (रोहिणी ) ने कहा कि प्राकृत भाषा का प्रभाव भारत की सभी भाषाओं के ऊपर पड़ा है और इसका कथा साहित्य बहुत विशाल है ।

प्रो वीरसागर जैन जी ने प्राकृत को सरल और सुबोध बताते हुए कहा कि शास्त्रों प्राकृत और संस्कृत की तुलना स्त्री और पुरुष के स्वभाव से की गई है । उन्होंने कहा कि सभी भाषाओं की जननी प्राकृत भाषा है ।


डॉ श्रेयांस कुमार जैन जी ,बड़ौत ने प्राकृत साहित्य को बहुत विशाल और व्यापक बताते हुए कहा कि हमलोग सिर्फ संस्कृत भाषा पढ़कर संतुष्ट हो जाते हैं जबकि बिना प्राकृत भाषा पढ़े और समझे हम संस्कृत साहित्य के सही भाव को नहीं समझ सकते । उन्होंने आचार्य सुनीलसागर जी द्वारा रचित प्राकृत साहित्य की भी चर्चा की । 

प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली ने कहा कि  एक समय था जब इजराइल की मूल भाषा हिब्रू पूरी तरह नष्ट हो चुकी थी ,मात्र एक व्यक्ति को उसका ज्ञान था ,उस देश ने अपने उत्कर्ष के काल में उस एक व्यक्ति के आधार पर अपनी मूल भाषा हिब्रू को इतना उन्नत किया कि वो आज वहां की राष्ट्र भाषा है । हमारे लिए तो आज भी लगभग एक हज़ार लोग ऐसे हैं जो प्राकृत भाषा जानते हैं तो हम उसे क्यों नहीं उठा सकते । आज हमें जनगणना में अपनी मातृभाषा प्राकृत लिखनी होगी तभी इस भाषा को सम्मान प्राप्त होगा । CA गौरव जैन ने प्राकृत भाषा के शिक्षण प्रशिक्षण पर बल दिया । आर्यिका माता जी ने आचार्य सुनीलसागर जी द्वारा विरचित प्राकृत साहित्य का विस्तृत परिचय दिया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री पंकज जैन IAS ने कहा कि मेरी शिक्षा आरम्भ से अंग्रेजी माध्यम से हुई ,मैं आईएएस बन गया ,लेकिन आज मुझे पता चल रहा है कि अपनी मातृभाषा की कितनी कीमत है ।आज इसके बिना हम धर्म का मर्म नहीं समझ सकते हैं ।


परिचर्चा का कुशल संचालन प्रो वीरसागर जैन जी ने किया । 


आरम्भ में प्राकृत मंगलाचरण डॉ रुचि जैन ने किया तथा अंत में चैयरमैन श्री विजय जैन जी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया ।

विदेश में नीलाम होने जा रही यह प्राचीन तीर्थंकर प्रतिमा किस जैनमंदिर की है ?

 

डॉ. अरिहन्त कुमार जैन, मुम्बई 

जैन पुरातत्त्व सम्बन्धी कुछ जानकारी के लिए मैं गूगल पर सर्च कर रहा था । देखते-देखते मुझे एक प्राचीन तीर्थंकर प्रतिमा जी। की फोटो ने आकर्षित किया। जब मैं सोर्स साइट पर गया तो पाया कि इस विदेशी वेबसाइट पर इस प्रतिमा की फोटो अलग-अलग। कोणों में alabaster-buddha-statue-in-the-dhyana-mudra के नाम से प्रस्तुत की गईं हैं और यह एक। giantauctionsstore.com नाम की एक auction  (नीलामी) की वेबसाइट पर उपलब्ध है, जिसका मूल्य $22,800 डॉलर रखा। गया है । मुझे विश्वास नहीं हुआ क्योंकि गौतम बुद्ध के नाम पर व्याख्यायित प्रस्तुत प्रतिमा स्पष्ट रूप से दिगंबर जैन तीर्थंकर की। प्रतिमा ही है । हालांकि तीर्थंकर भगवान का चिन्ह स्पष्ट नज़र नहीं आ रहा । प्रशस्ति आदि भी घिस दी गयी है । यदि ये जिनप्रतिमा। नवीन होती तो बहुत गंभीर बात नहीं थी, क्योंकि अच्छा मूर्तिकार मिल जाये तो देश-विदेश कहीं भी प्रतिमा जी बनाई जा सकती है। । लेकिन HD Quality में गौर से देखने पर यह दिगंबर जिनप्रतिमा किसी उत्खनन से प्राप्त प्राचीन तीर्थंकर प्रतिमा मालूम पड़ रही है, जो कि भारत में ही अधिक रूप से संभव है । यह देखकर मेरे मन में कई संदेहास्पद वैकल्पिक प्रश्न उठे हैं, जिसमें इस बात का काफी हद तक अनुमान लगाया जा सकता है कि इस प्रतिमाजी को भारत में किसी मंदिर, म्यूज़ियम आदि से चोरी कर विदेश में निर्यात किया गया है । क्योंकि आए दिन हमारे सामने देश के शहर/ गाँव आदि के जैन मंदिरों से जैन प्रतिमा चोरी की घटनाएँ सामने आती रहती हैं । पुलिस रिपोर्ट भी लिखी जाती है लेकिन प्रतिमा प्राप्ति का परिणाम प्रायः नगण्य ही रहता है । भले ही इस प्रतिमा के विषय में निश्चित रूप से मैं कुछ नहीं कह सकता, मात्र अनुमान लगा सकता हूँ; लेकिन इस तीर्थंकर प्रतिमाजी को लेकर भी मेरा संदेह कुछ ऐसा ही है । 


मुझे लगा इस विषय पर आप सभी का ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, और यह बात जन-जन तक पहुंचाना चाहिए । ताकि इस तीर्थंकर प्रतिमा जी को देखकर पूरे देश के कोने-कोने में कहीं भी इस तरह की प्रतिमाजी जैन मंदिर अथवा म्यूज़ियम से गायब हुई हों तो जैनबंधु या पुरातत्त्व विभाग उसे पहचान लें, ताकि इसका संज्ञान लिया जा सके । 

Website Link – 

https://giantauctionsstore.com/products/alabaster-buddha-statue-in-the-dhyana-mudra

इस तीर्थंकर प्रतिमा जी की ऊंचाई 19 इंच, चौड़ाई 9 इंच तथा लंबाई 23 इंच है । आप सभी दिये गए वेबसाइट के लिंक पर जाकर HD quality ज़ूम करके भी देख सकते हैं । यदि कोई प्रतिमाजी को पहचान लेता है, और यह बात सत्यापित और पुष्ट हो जाती है, तो आगे की कार्यवाही की जा सकती है । जो इसका विक्रय/नीलामी कर रहें हैं, उन वेबसाइट वालों से इस तीर्थंकर प्रतिमा के स्त्रोत आदि के बारे में जांच की जा सकती है और प्रमाण आदि देकर अथवा अन्य कानूनी कार्यवाही के द्वारा प्रतिमा जी को पुनः भारत लाकर स्थापित किया जा सकता है । खरीदना जैनबंधुओं के लिए चुटकी का खेल हो सकता है, लेकिन यह भविष्य के लिए ठीक नहीं होगा । ऐसे में और चोरियाँ होने की संभावना हो सकती है । क्योंकि यह मात्र एक प्रतिमाजी की बात नहीं है, बल्कि यह भारत की बहुमूल्य विरासत है, जिसके लिए भारत विश्व में जाना जाता है । यह हमारे देश की प्राचीनतम संस्कृति और पुरातत्त्व संरक्षण पर एक गंभीर प्रश्नचिन्ह है । वेबसाइट में दी गयी जानकारी के अनुसार इसका वेबसाइट के ऑफिस पता 1399 Kennedy Rd, Unit 10, 12, 13, Scarborough, ON, M1P 2L6, Ontario, Tel: 416-757-7786, Fax: 416-757-8786, Email: gahomesuperstore@gmail.com है । 


मेरी, श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा, ग्लोबल महासभा, विश्व जैन संगठन, जैन श्रमण संस्कृति बोर्ड (राजस्थान), दक्षिण भारत जैन सभा, जैन इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन, Jain Association in North America (JAINA), JITO आदि देश-विदेश में कार्य कर रही संस्थाओं आदि से अपील है कि अपनी ओर से यथायोग्य प्रयास करें; तथा सम्पूर्ण जैन समाज की तरफ से मेरी भारत के महामहिम राष्ट्रपति, माननीय प्रधानमंत्री, माननीय विदेश मंत्री तथा विदेशों में स्थापित जैनबंधुओं से अपील है, कि इस बात को गंभीरता से लेते हुए इस पर यथासंभव कार्यवाही करें और प्रतिमाजी को पुनः भारत लाने का प्रयत्न करें । 

जैन तथा जैनेतर बंधुओं से भी अपील है कि इस सूचना को जन-जन तक पहुंचाने में अपना सहयोग प्रदान करें ताकि यह सूचना उन तक पहुँच सके जो इस प्रतिमाजी से परिचित हों और…

विश्व धरोहर सप्ताह के अन्तर्गत कार्यशाला का आयोजन

 विश्व धरोहर सप्ताह 



 विश्व धरोहर सप्ताह के अंतर्गत  डेक्कन कॉलेज ऑफ़ आर्कियोलॉजी पुणे में ' हेरिटेज अवेयरनेस' के संदर्भ में एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया। जिसके अंतर्गत एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया ,जिसमें विभाग प्रमुख श्री पी. डी. साबले जी ने अपना विशेष व्याख्यान दिया ।जिसमें विशेष रूप से बताया गया कि किस तरह से भारत में जन जागरूकता के अभाव में हेरिटेज नष्ट हो रही है जबकि हमारे पास अत्यंत प्राचीन धरोहर है लेकिन हम उसका संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं इसलिए आवश्यक है कि हम इस और ध्यान दें और उन्होंने अनेक साइट्स के बारे में बताया जहां कार्य होना है, छात्रों ने इसमें विशेष अभिरुचि ली, 100 से भी अधिक छात्रों की उपस्थिति में इसे सफल बनाया, डॉ नीलम जैन जी द्वारा जैन हेरीटेज के बारे में बताया गया। सभी का धन्यवाद डॉ ममता जैन ने दिया ।

 लोकतंत्र की मजबूती के लिए मतदान जरूरी

 88 वर्षीय केशरबाई जैन ने घर से डाला वोट

सनावद।217 सोलंकी कालोनी में प्रातः 11 बजे वरिष्ठ पत्रकार ,संपादक, ओजस्वी वक्ता  राजेन्द्र जैन महावीर के घर उनकी 88 वर्षीय माताजी श्रीमती केशर बाई जी जैन ने मतदान दल क्र.8 के समक्ष अपना मतदान किया। मतदान दल के पीठासीन अधिकारी हरेसिंह सिसोदिया ने माइक्रो आब्जर्वर  सूर्यभान सिंह की उपस्थिति में मतदान दल के कैलाश इटारे, बीएलओ सुरेश रंगीले, पुलिस कर्मी आदि की उपस्थिति मतदान कराया। मतदान की गोपनीयता के लिए बूथ भी बनाया गया । मतदान से प्रसन्न केशरबाई जैन ने कहा कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए वोट देना जरूरी है सभी को वोट जरूर देना चाहिये  । वे कई वर्षों से वोट दे रही है। मतदान दल का स्वागत‌ करते हुए उनकी बहू अनुपमा जैन ने कहा कि भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 80 वर्ष से अधिक बुजुर्ग मतदाताओं के लिए घर से मत देने की प्रक्रिया स्वागत योग्य है। इससे बुजुर्ग जनों को लाभ मिल रहा है साथ ही मतदान की प्रक्रिया से कोई वंचित भी  नही हो रहा है। उन्होंने बताया कि यदि यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती तो उनकी सासुजी मतदान करने नहीं जा सकती थी। मतदान दल व भारत निर्वाचन आयोग का आभार व्यक्त किया।


केशरबाई जैन मतदान करते हुए। व मतदान के संबंध में अपने विचार व्यक्त करते हुए।
दिनाँक 10 नवम्बर 2023


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महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न

उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

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