आदमी का क़त्ल कोई कर गया है।

                   🌹 ग़ज़ल🌹

इस क़दर दहशत से बच्चा भर गया है। 

आदमी को देखते ही डर गया है।।


मत परेशां हो ख़बर कुछ भी नहीं है, 

आदमी का क़त्ल कोई कर गया है। 


हार कर वो इस तरह बैठा है जैसे, 

बोझ कोई ज़िन्दगी का धर गया है। 


मौन तू साधे रहा जब बोलना था,

कुछ नहीं होगा कि अब अवसर गया है। 


वो लुटेंगे और फिर बरबाद होंगे, 

क़ाफ़िलों के साथ में रहबर गया है। 


काम पे उसके पुरस्कृत मैं हुआ हूँ, 

और हर इलज़ाम उसके सर गया है। 


बारहा समझाया है कस्तूरी तुझमें, 

पर इसे वो ढूँढ़ने बाहर गया है। 


अब तो दुनिया-ए-अदब में मैं ही मैं हूँ, 

ये सुना है कि विजय तो मर गया है। 

                  विजय तिवारी, अहमदाबाद

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