डॉ. रामवृक्ष सिंह, पूर्व महाप्रबंधक ( हिन्दी), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, लखनऊ
यदि किसी व्यक्ति की शब्दावली और वाक्यों की समझ सीमित हो तो उसके लिए क्या सरल और क्या कठिन!परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग शब्दों, एक ही शब्द के अनेक पर्यायों और अनेक प्रकार की वाक्य-भंगिमाओं का चयन करना किसी विद्वान का ही काम हो सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र में और विशेषकर जनतांत्रिक व्यवस्थाओं में प्रशासन अपनी बात को अधिक से अधिक लोगों तक तभी पहुँचा सकता है, जब वह आम-फहम के शब्दों और उसमें प्रचलित वाक्य-भंगिमाओं का प्रयोग करे। तुलसीदास का उद्देश्य आम आदमी तक रामकथा को पहुँचाना था, इसलिए संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान होने के बावजूद उन्होंने रामचरित मानस की रचना तत्कालीन लोक-भाषा 'अवधी' में की। सम्राट अशोक ने अपनी जन-घोषणाएं तत्कालीन भाषा पालि में कीं और उनके लिए ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया। जैन मुनियों ने अपने ग्रंथ प्राकृत में लिखे, जबकि महात्मा बुद्ध ने अपने काल में लोक-व्यवहृत पालि का इस्तेमाल किया। सबका उद्देश्य एक ही था- अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचना।
आज यदि हमें जन-जन तक अपनी बात पहुँचानी है तो जनभाषाओं का इस्तेमाल करना होगा। वह भी सरल जनभाषाओं का। प्रायः अंग्रेजी पर यह तुहमत भेजी जाती है कि वह कठिन और दुरूह भाषा है, उसमें एक ही वाक्य में अनेक वाक्य संगुंफित होते हैं। इसे देखते हुए इंगलैंड में भी 'प्लेन इंगलिश' आन्दोलन चला। इस आन्दोलन के पुरोधाओं में सबसे प्रमुख नाम है सर अर्नेस्ट गॉवर्स का। उन्होंने सन 1948, 1951 और 1954 में क्रमशः Plain words, a guide to the use of English; Plain words तथा The complete plain words ये तीन पुस्तकें इसी विषय पर लिखीं।
इंग्लैंड में ही 1979 में कठिन भाषा के विरोध और सरल भाषा के समर्थन में यह मत रखा गया गया कि Everyone should have access to clear and concise information.
1999 में तो एक विनियम ही बना दिया गया, जिसका नाम था 'Unfair Terms in Contract, Concise Information Regulation'. इसमें सरल व समझ आनेवाली भाषा (Plain and Intelligible language) को अनिवार्य बनाया गया।
2005 में लंदन बम कांड की रिपोर्ट में कहा गया कि आपात सेवाओं में हमेशा सरल भाषा का प्रयोग होना चाहिए, ताकि लोग उसे तत्काल समझ सकें। घुमावदार भाषा से जनहानि हो सकती है- 'Verbosity can lead to misunderstanding that could cost lives.'
हाल ही में आयरलैंड की संस्था NALA (National Adult Literacy Agency) ने सरल शब्दों में कोविड की ए टु जेड गाइड बनाई, ताकि वहाँ का सामान्य साक्षर और नवसाक्षर व्यक्ति भी इस महामारी से संबंधित सभी बातों को जान-समझ सके।
अमेरिका में भी लगभग 1970 से ही सरल भाषा आन्दोलन चल रहा है। वहाँ 1976 में Paper work Reduction Act लाया गया।
1978 में राष्ट्रपति कार्टर ने आदेश दिया कि सरकारी विनियम किफायती और समझने में सरल होने चाहिए, ताकि आम जनता उन्हें सरलता से समझकर उनका पालन कर सके।
2010 में अमेरिका में Plain Writing Act लाया गया और इसे संघीय अनिवार्यता (Federal Requirement) बनाया गया।
कानूनी भाषा को प्रायः बहुत पेचीदा और उलझाऊ समझा जाता है। इस पर भी विद्वानों की निगाह गयी है।
1963 में डेविड मेलिंकॉफ ने कानून में सरल लेखन को लक्ष्य करके The Language of Law शीर्षक पुस्तक लिखी।
1979 में Richard Wydock ने Plain English For Lawyers पुस्तक लिखी।
अभी कुछ ही सप्ताह पूर्व भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री वाई डी चन्द्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने भी कहा कि It's not adequate that a decision is accurate, it must also be reasonable, logical and easily comprehensible.
लोकतंत्र को लोक का, लोक द्वारा लोक के लिए परिभाषित करने वाले लोकतांत्रिक समुदायों में सरल भाषा का कितना महत्त्व है, यह किसी से छिपा नहीं है। इसलिए लोकोन्मुख शासन को इस विषय पर बहुत गंभीरता से सोचना चाहिए।
हिन्दी संघ की राजभाषा है. किन्तु अनुवाद की प्रक्रिया में अंग्रेजी की अटपटी वाक्य शैली अपना लेने के कारण वह अच्छे अच्छे विद्वानों के भी पल्ले नहीं पड़ती. संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं का यही हाल है. इसलिए अब समय आ गया है कि हम अपनी भाषाओं को आम आदमी के समझने योग्य बनाएं.
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