जनता निचुड़ी जा रही, सुधि लेगा अब कौन?

 जनता निचुड़ी जा रही, सुधि लेगा अब कौन?

एक–

राजनीति को क्या कहें, शब्द सभी हैं मौन।

जनता निचुड़ी जा रही, सुधि लेगा अब कौन?

दो–

मुख पर चुगली नाचती, लिये पनौती माथ।

वाम विधाता दिख रहा, छोड़ेंगे सब साथ।।

तीन–

अस्ली-नक़्ली सब यहाँ, भेद करेगा कौन?

बात 'बात' से कह रही, उत्तर हैं क्यों मौन?

चार–

सब चहुँ नंगे दिख रहे, गौरव से भरपूर।

समय तरेरे आँख हैं, होगा सब कुछ चूर।।

पाँच–

छवि राजा की धूसरित, पाप-पंक मे पाँव।

अन्धायुग है लौटता, समय चलेगा दावँ।।

छ: –

सत्ता खेती बन गयी, फ़स्ल दिखे हर ओर।

जनता जोहे बाट है, होगा कबतक भोर।।

 आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज

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