सॉनेट

चलो चाँद पर

बंटाढार किया धरती का चलो चाँद पर

जाति धर्म संपत्ति देश वादों में बँटकर,

हाय हाय मर-मार रहे खुद को खुद डटकर,

एक दूसरे को लूटें सरहदें फाँदकर,

खाएँ न खिचड़ी अमन-चैन से कभी रांँधकर,

पीट निबल को बार बार सबलों से पिटकर,

यही सभ्यता मानव की मत व्यर्थ गर्व कर,

ढोता है अर्थी सच की जो आप काँध पर।


काम क्रोध मद लोभ मोह क्यों पाल रहा है?

मिटा रहा कुदरत को जीवन पर संकट बन,

काश! सुधरकर जीवन को नवजीवन दे दे।

अहंकार की सुरा हाय क्यों ढाल रहा है?

रक्षा करे प्रकृति की रक्षा कवच सदृश तन,

मंगल का मंगल कर चंदा के सँग खेले।।

आचार्य संजीव वर्मा सलिल 

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