“हिम्मत,ओ हिम्मत अरे हिम्मत सिंह जी”
महिंदर ने मेमसाब की चढ़ती हुई आवाज़ सुनी। वह जानता था कि जब भी मेमसाब, हिम्मत को हिम्मत सिंह जी कहकर पुकारती हैं,, तब उनका पारा सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ होता हैं। वह कोठी के मुख्यद्वार की रखवाली छोड़कर अंदर भागा। मेमसाब कही बाहर जाने के लिए तैयार होकर छत पर खड़ी थी। अब ऐसे में यह मरदुआ हिम्मत कहाँ जाकर मर गया? शायद गाँव से उसकी बीबी का फ़ोन आ गया होगा। अब हम लोग अपने परिवार को गांव में छोड़कर दो पैसे कमाने के लिए यहाँ शहर में मालिक लोगों को जी हुजूरी करते रहते हैं । घर परिवार के सारे काम हमारी बीबियाँ ही तो करती हैं, उनके पास हमारी मेमसाब जैसे हर काम के लिए अलग अलग नौकर तो नहीं ना हैं। ऊपर से हमारी बीबियाँ हर बात के लिये हमसे पूछती रहती हैं, मेमसाब जैसे नही जो साहेब की एक बात नहीं सुनती, हमेशा ऊँची आवाज़ में चिल्लाकर ही बात करती हैं। छत पर से मेमसाब ने चिल्लाकर पूछा "ये हिम्मत कहाँ मर गया हैं, मैंने उसे ठीक ४ बजे गाडी तैयार रखने को कहाँ था, अब ऐन पौने चार बजे यह कहाँ चला गया। मुझे एक बहुत जरुरी समारोह में जाना हैं। उसका मोबाइल भी लग नहीं रहा। ।"
"वह यही आस पास गया होगा मेमसाब आता ही होगा, मैं उसे ढूंढकर लाता हूँ," महिंदर का यह कहना था की मेमसाब फिर भड़क गई, अब तुम कोठी की रखवाली छोड़कर उस हिम्मत को ढूंढने जाओगे, तुम लोगों को अपनी जिम्मेदारी का ज़रा भी एहसास नहीं हैं , पगार लेना हो, होली दिवाली की बख्शीश मांगनी हो तो भीगी बिल्ली की तरह समय से पहले आ जाते हो, और काम का कहो तो नानी दादी याद आती हैं। इनसे कहकर तुम दोनों की तनख्वाह में से पैसे कटवाउंगी। तुमने ही उसे साहब से यह कहकर लगवाया था ना की मेरे गांव का हैं, मेहनती हैं,।
अब रामु को देखो, उसने मेरी रसोई कितनी अच्छी तरह से संभाली हैं, जो भी कहती हूँ, जिस वक़्त भी कहती हूँ सामने हाजिर कर देता है। अब खड़े खड़े मेरा मुँह क्या देख रहे हो, जाओ उसे पकड़ कर लाओ, जरूर किसी गुमटी पर खड़ा होगा। और हाँ, जब साहब आएंगे तो उन्हें कह देना कि मैं "पुरुषों द्वारा महिलाओं के शोषण" पर होने वाली गोष्ठी में जा रही हूँ और देर रात लौटूंगी।
डॉ. नितीन उपाध्ये
प्राध्यापक
दुबई (संयुक्त अरब अमीरात)
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