'नारी मुक्ति,


 कान्फ्रेंस हाल साहित्यकारों,पत्रकारों गणमान्य अतिथियों से और श्रोताओं से खचाखच भरा था।आज नारी मुक्ति जैसे महत्वपूर्ण विषय पर आलेख पढे जाने थे,चर्चा होनी थी।

                         निश्चित समय पर कार्यक्रम शुरु हुआ। अध्यक्ष,उपाध्यक्ष,मुख्य अतिथि का परिचय देने के बाद संचालक महोदय ने आगंतुक साहित्यकारों को क्रम से बुलाना प्रारंभ किया। 

नारी विमर्श पर चर्चा शुरू हुई। प्राचीन काल से आधुनिक काल तक की विवेचना,विष्लेषणा की गयी। नारी दुर्दशा से उत्तरोत्तर  नारी उत्थान की क्रमवार व्याख्या की गयी,एक से एक जोरदार भाषण दिए गये,वक्तव्य प्रस्तुत किये गये ऐसा लग रहा था जैसे स्वर्ण युग आ गया है नारी स्वतंत्रता का।पूर्ण स्वतंत्र हो गयी है नारी दासता की सदियों पुरानी जंजीरों से। 

उन ओजपूर्ण वक्तव्यों की चकाचौंध ने धरती-आकाश को एकाकार कर दिया था।  मन मस्तिष्क को सम्मोहित करने वाले विचार पुरुष वक्ताओं के मुख से सुनकर ऐसा लगा कि समाज सचमुच बदल गया है। कौन कहता है कि पुरुष प्रधान समाज स्त्रियों का सम्मान नहीं करता ,मन विचारों से सम्मोहित हो कर एक अलग ही यात्रा पर निकल पड़ा। वैदिक काल की व्यवस्था और स्त्री सम्मान की गाथा आधुनिक काल में दृष्टिगोचर होती सी प्रतीत हुई। उसमें बल का संचार हुआ,प्रण किया स्वयं से कि अब से वह स्वयं को शोषित नहीं होने देगी न ही घर में और न ही समाज में सो उसने भी जोर दार भाषण दिया नारी उत्थान और नारी विमर्श पर। 

जोरदार तालियों के बीच चर्चा का समापन हुआ। पत्रकारों ने ध्यान से सुना ,लिखा और कैमरों की चकाचौंध रोशनी ने हाॅल मे उजाला बिखरे ही रखा। 


लगभग आठ बजे कार्यक्रम की समाप्ति पर वह घर पहुँची तो सबका फूला हुआ मुख देखकर कपडे बदल सीधे रसोई में जा घुसी।

पूरे डेढ  घंटे की मेहनत कर सभी का खाना तैयार कर सबको खाना खिलाया। सभी ने चुपचाप खाना खाया और सोने  चले गए। 

चुप्पी बता रही थी कि माहौल कुछ अच्छा नहीं है। थोड़ी देर बाद उसने कोशिश की पति से बात करने की मगर आज पतिदेव ने घोषणा कर दी आगे से तुम्हारा देर रात गोष्ठी में  जाना बंद। तुम्हारा बाहर जाना,लिखना-पढ़ना बोलना और  खाने मे देर होना मुझे पसंद नहीं। 

साहस में भरी वह कह बैठी आज नारी शिक्षित है,समझदार हैं अपना अच्छा बुरा समझती है इसलिए उसे इस दासता से मुक्ति मिलनी ही चाहिए। 


रात के सन्नाटे को चीरती एक झन्नाटेदार थप्पड़ की आवाज बंद कमरे और ए सी की आवाज  में घुटकर रह गयी उसके साथ ही सिसकियों का तेज स्वर धीरे-धीरे मद्धम पड़ अपनी आवाज़ खो चुका था। भीगा तकिया ही गवाह था नारी मुक्ति का। 


सुबह के अखबार की सुर्खियाँ पुनः चर्चा का विषय थीं शहर में  ।


सोनम यादव गाजियाबाद महानगर

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