हार जीत चलती रहती है,
फ़िक्र नहीं बिल्कुल करना ।
आऐं कितने आँधी-तूफ़ाँ,
कर्म निरंतर तुम करना ।।
पीछे कभी न हटना बंदे,
बन जा फ़ौलादी चट्टान ।
हौंसला रखना बुलंद रे,
रहना हरदम सीना तान ।।
विजय-पताका आसमान में,
फहरा देना नौनिहाल ।
दीवार एक हिमगिरि के माफिक,
बन जाना एक अद्भुत ढाल ।।
मुस्कान एक बन अंगारे की,
आन-बान पर मर-मिटना ।
हार जीत चलती रहती है,
फ़िक्र नहीं बिल्कुल करना ।।
बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज"
कोटा (राजस्थान)
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