शहर
गढ्ढों का शहर है ये , गुंडों का शहर।
रोटी पानी माँगते हैं, मिलता जहर।
गढ्ढों का शहर
सड़कें भी झूमती हैं ,झूमे सारे लोग।
फैशन में लोग यहाँ ,ढाते हैं कहर।।
गढ्ढों का शहर
गुड्डों का शहर ये ,बुढ्ढों का शहर।
दिन रात खाँसते हैं, थोड़ा सा ठहर।।
गढ्ढों का शहर
दिन में अँधेरा यहाँ , रात भी अंधेरी।
चोरों का ही राज चले , मचा है ग़दर।।
गढ्ढों का शहर
अमीरों का राज यहाँ , गरीबों का रोना।
धन बल चलता है , कैसे हो बसर।।
गढ्ढों का शहर
पैसे की ही माया यहाँ , पैसे का ही जोर।
गरीबी की बातें होती , झूठी ये नज़र।।
गढ्ढों का शहर
मुखड़े पर मुखौटा है ,मन में है चोर।
नकली ये रिश्ते हैं , इनसे से डर।।
गढ्ढों का शहर
श्याम मठपाल ,उदयपुर
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