महाश्रमण चंद्रगुप्त मौर्य ' पुरस्कृत


 डॉ. प्रतिभा जैन के जैन नाटक- 'महाश्रमण चंद्रगुप्त मौर्य ' को साहित्य कला परिषद दिल्ली द्वारा आयोजित 'मोहन राकेश नाटक प्रतियोगिता में 2023 का पुरस्कार मिला है यह हम सभी के लिए गौरव का विषय है इस नाटक में चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा महामुनि भद्रबाहु के सानिध्य में जैन धर्म स्वीकार कर श्रमण बनने की तथा श्रवण बेलगोला के चंद्र गिरी पर्वत पर समाधि-मरण लेने की कथा है


जिसे मेगास्थनीज की 'इंडिका' जैन ग्रंथ' परिशिष्ट पर्वन'... .राजवली कथे' आदि के द्वारा प्रमाणित कथा को नाट्य प्रवाह के अनुकूल रचा गया है इसका  मंचन प्रख्यात निर्देशिका भारतीय शर्मा के निर्देशन में दिल्ली के 'कमानी ऑडिटोरियम' में  किया गया है 

जैन सिद्धांतों से परिपूर्ण यह नाटक बहुत चर्चित रहा चक्रवर्ती सम्राट का जैन-मुनि बनना  दर्शकों के लिए नया और कौतूहल बढ़ाने वाला विषय था


अखिल विश्व हिंदी समिति, न्यूयॉर्क वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन


अखिल विश्व हिंदी समिति, न्यूयॉर्क ने शनिवार, 9 दिसंबर, 2023 को एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ईस्ट वेस्ट स्कूल ऑफ डांस, मोनरो, न्यूयॉर्क के निदेशक पंडित सत्य नारायण चरका थे। समिति  के अध्यक्ष डॉ. विजय मेहता ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया और सांस्कृतिक कार्यों की उपाध्यक्ष सुषमा मल्होत्रा को कार्यक्रम की संचालक थी ।इस सांस्कृतिक कार्यक्रम के अवसर पर “धरा से गगन तक-2”  काव्य संग्रह का लोकार्पण डॉ. मेहता के कर कमलों द्वारा किया गया।  सुषमा मल्होत्रा इस काव्य संग्रह की उप-सम्पादक हैं ।  अशोक सिंह “एक शे’र अर्ज़ किया है” के अध्यक्ष जिनकी कवितायेँ  इस संग्रह में शामिल हैं, वे भी इस के लोकार्पण के समय उपस्तिथ थे  ।  इस कार्यक्रम में अखिल विश्व हिंदी समिति के अन्य पदाधिकारी महासचिव डॉ. वेद मल्होत्रा, कोषाध्यक्ष रविन्द्र कुमार, और कार्यकारी उपाध्यक्ष प्रदीप टंडन, हिन्दू सेंटर के अध्यक्ष डॉ. रवि गोयल और ट्रस्टी डॉ. प्रवीण चोपड़ा भी उपस्थित थे।


थोड़ा सा तुम मुस्कराना सीख लो

गम को दिल से भूल जाना सीख लो ,

थोड़ा सा तुम मुस्कराना सीख लो ।

गम समुन्दर की तरह जीवन में हैं ,

खुशियों के गोते लगाना सीख लो ।

थोड़ा सा तुम ------------------------

गम अमावश-रात सी पल-पल है साथ ,

चाँदनी-पूनम से खुशियाँ सीख लो ।

थोड़ा सा तुम ---------------------------

गम हैं काँटों की चुभन ता-उम्र पर ,

फूलों से तुम मुस्कराना सीख लो ,

थोड़ा सा तुम --------------------------

गम हैं बर्फ़ानी हवा ढाती सितम  ,

ओस की बूँदों से खुशियाँ सीख लो ,

थोड़ा सा तुम -------------------------

जैसे ऊसर हो जमीं होते हैं गम ,

लहराती फसलों से खुशियाँ सीखलो।

थोड़ा सा तुम ----------------------

गम है पतझड़ और सूखी डालियाँ ,

हरित-पत्रों से खुशी तुम सीख लो ।

थोड़ा सा तुम ----------------------

हर कदम जैसे धुआँ होते हैं गम ,

ऋतु-बसंती से खुशी तुम सीख लो ।

थोड़ा सा तुम ----------------------

गम हैं तपती धूप जीवन में मगर ,

चाँद की शीतल से खुशियाँ सीखलो।

थोड़ा सा तुम ---------------------

गम हैं ढलती शाम का सूरज अगर ,

ऊगते सूरज से खुशियाँ सीख लो ।

थोड़ा सा तुम --------------------

गम हैं दिल की दिल से बढ़तीं दूरियाँ ,

दिल से दिल की दूरियाँ तुम जीतलो ।

थोड़ा सा तुम --------------------

गम हैं करते काम सब अब स्वार्थ के ,

करके परस्वार्थ खुशी और मौज लो ।

थोड़ा सा तुम -----------------------

गम हैं मानव अब नहीं मानव रहा ,

मानवता से हर खुशी को लूट लो ।

थोड़ा सा तुम ---------------------

गम है कैसे दूर हों ये गम “मुकेश” ,

गम में भी खुशियों के पल तुम ढूढ़ लो ।

थोड़ा सा तुम मुस्कराना सीख लो ।

===  मुकेश कुमार श्रीवास्तव ===

दमोह ( म० प्र० )

अमूल्य उपहार

 


संतोष शुक्ला 

जून का प्रथम सप्ताह सन १९५८ हाईस्कूल का परीक्षाफल घोषित हुआ। मैं द्वितीय श्रेणी में बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुई थी। मेरी सहेली पड़ोस में ही रहती थी, वह तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुई थी। उसके पापा ने इस खुशी में उसे उपहार दिए। मेरे बाबू जी को यह बात पता चली। उन्होंने मुझसे पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए? उस समय गोला गोकर्णनाथ में लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना अच्छा नहीं माना जाता था। मैंने उनसे उपहार स्वरूप इंटर पढ़ाने की बात कही, वो सहर्ष तैयार हो गए। मैंने यह परीक्षा भी द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की।


बी.ए. की पढ़ाई के लिए कोई डिग्री कालेज नहीं था। पढ़ाई रुक गई। उसी समय विवाह की बात मथुरा से चली। मेरे होनेवाले ससुर जी का पत्र आया, उन्होंने बी.ए. की परीक्षा दिलाने पर जोर दिया। मैंने कानपुर से व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में परीक्षा देकर प्रथम वर्ष की परीक्षा अच्छे नम्बर से उत्तीर्ण की। विवाह सम्पन्न हुआ, मैं मथुरा आ गई। ससुर जी ने किशोरी रमण महिला महाविद्यालय में प्रवेश दिलाया। यह परीक्षा भी मैंने द्वितीय श्रेणी में अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण की। मेरी बी.ए. की डिग्री मेरे ससुर जी का मुँह दिखाई का उपहार था। सासु माँ ने एल.टी. कराने का उपहार दिया।


मेरे ताऊ ससुर जी संस्कृत से एम. ए. तथा विद्यावाचस्पति करने को प्रेरित किया। मैंने सभी की इच्छाओं को अपने कठिन परिश्रम से पूरा किया। प्रवक्ता पद की प्राप्ति के लिए फिर हिन्दी से भी एम.ए. पास किया। मायके और ससुराल दोनों पक्ष से अमूल्य उपहार मिले । अपने विद्यालय में हिन्दी, संस्कृत में शत प्रतिशत परीक्षाफल देकर जिला विद्यालय निरीक्षक के द्वारा कर्तव्य निष्ठ एवं परिश्रमी शिक्षिका का उपहार प्राप्त किया। मुझे ऐसे बहुमूल्य उपहार मिले जिनका न बँटवारा हो सकता है न छीना या चुराया जा सकता है। फलस्वरूप सेवानिवृत्ति के बाद आज भी पेंशन के रूप में लाभान्वित हो रही हूँ। विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम्।

विनम्रता



एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया। नदी को लगा कि मुझमें इतनी ताकत है कि मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु और मानव आदि सभी को बहाकर ले जा सकती हूं। एक दिन नदी ने बड़े ही गर्वीले अंदाज में समुद्र से कहा- बताओ! मैं तुम्हारे लिए क्या-क्या लाऊं? मकान, पशु, मानव या वृक्ष, जो तुम चाहो, उसे मैं जड़ से उखाड़कर ला सकती हूं।


समुद्र समझ गया कि नदी को अहंकार हो गया है। उसने बड़ी ही विनम्रता से नदी से कहा- यदि तुम मेरे लिए कुछ लाना ही चाहती हो, तो थोड़ी सी घास उखाड़कर ले आओ।


नदी ने कहा:- बस, इतनी सी बात? अभी लेकर आती हूं।

फिर नदी ने अपने जल का पूरा जोर लगाया पर घास नहीं उखड़ी। नदी ने कई बार जोर लगाया, लेकिन असफलता ही हाथ लगी। आखिर नदी हारकर समुद्र के पास पहुंची और बोली- मैं वृक्ष, मकान और पहाड़ आदि तो उखाड़कर ला सकती हूं, मगर जब भी घास को उखाड़ने के लिए जोर लगाती हूं, तो वो नीचे की ओर झुक जाती है और मैं खाली हाथ ही ऊपर से गुजर जाती हूं।


समुद्र ने नदी की पूरी बात ध्यान से सुनी और मुस्कुराते हुए बोला- जो पहाड़ और वृक्ष जैसे कठोर होते हैं, वे आसानी से उखड़ जाते हैं, किंतु घास जैसी विनम्रता जिसने सीख ली हो, उसे प्रचंड आंधी-तूफान या प्रचंड वेग भी नहीं उखाड़ सकते हैं।


शिक्षा

जीवन में खुशी का अर्थ लड़ाईयां लड़ना नहीं, बल्कि उनसे बचना है। कुशलता पूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है, क्योंकि अभिमान फरिश्तों को भी शैतान बना देता है और नम्रता साधारण से व्यक्ति को भी फरिश्ता बना देती है।

बीज की यात्रा वृक्ष तक है, नदी की यात्रा सागर तक है, और मनुष्य की यात्रा परमात्मा तक है।

 संसार में जो कुछ भी हो रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं। इसलिए कभी भी ये भ्रम न पालें -  कि जो कुछ  किया मैने ही किया, मैं न होता तो क्या होता, मैं ही सर्वज्ञ हूं!!!

तनूजा 

Featured Post

महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न

उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

Popular