विनम्रता



एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया। नदी को लगा कि मुझमें इतनी ताकत है कि मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु और मानव आदि सभी को बहाकर ले जा सकती हूं। एक दिन नदी ने बड़े ही गर्वीले अंदाज में समुद्र से कहा- बताओ! मैं तुम्हारे लिए क्या-क्या लाऊं? मकान, पशु, मानव या वृक्ष, जो तुम चाहो, उसे मैं जड़ से उखाड़कर ला सकती हूं।


समुद्र समझ गया कि नदी को अहंकार हो गया है। उसने बड़ी ही विनम्रता से नदी से कहा- यदि तुम मेरे लिए कुछ लाना ही चाहती हो, तो थोड़ी सी घास उखाड़कर ले आओ।


नदी ने कहा:- बस, इतनी सी बात? अभी लेकर आती हूं।

फिर नदी ने अपने जल का पूरा जोर लगाया पर घास नहीं उखड़ी। नदी ने कई बार जोर लगाया, लेकिन असफलता ही हाथ लगी। आखिर नदी हारकर समुद्र के पास पहुंची और बोली- मैं वृक्ष, मकान और पहाड़ आदि तो उखाड़कर ला सकती हूं, मगर जब भी घास को उखाड़ने के लिए जोर लगाती हूं, तो वो नीचे की ओर झुक जाती है और मैं खाली हाथ ही ऊपर से गुजर जाती हूं।


समुद्र ने नदी की पूरी बात ध्यान से सुनी और मुस्कुराते हुए बोला- जो पहाड़ और वृक्ष जैसे कठोर होते हैं, वे आसानी से उखड़ जाते हैं, किंतु घास जैसी विनम्रता जिसने सीख ली हो, उसे प्रचंड आंधी-तूफान या प्रचंड वेग भी नहीं उखाड़ सकते हैं।


शिक्षा

जीवन में खुशी का अर्थ लड़ाईयां लड़ना नहीं, बल्कि उनसे बचना है। कुशलता पूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है, क्योंकि अभिमान फरिश्तों को भी शैतान बना देता है और नम्रता साधारण से व्यक्ति को भी फरिश्ता बना देती है।

बीज की यात्रा वृक्ष तक है, नदी की यात्रा सागर तक है, और मनुष्य की यात्रा परमात्मा तक है।

 संसार में जो कुछ भी हो रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं। इसलिए कभी भी ये भ्रम न पालें -  कि जो कुछ  किया मैने ही किया, मैं न होता तो क्या होता, मैं ही सर्वज्ञ हूं!!!

तनूजा 

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