संतोष शुक्ला
जून का प्रथम सप्ताह सन १९५८ हाईस्कूल का परीक्षाफल घोषित हुआ। मैं द्वितीय श्रेणी में बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुई थी। मेरी सहेली पड़ोस में ही रहती थी, वह तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुई थी। उसके पापा ने इस खुशी में उसे उपहार दिए। मेरे बाबू जी को यह बात पता चली। उन्होंने मुझसे पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए? उस समय गोला गोकर्णनाथ में लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना अच्छा नहीं माना जाता था। मैंने उनसे उपहार स्वरूप इंटर पढ़ाने की बात कही, वो सहर्ष तैयार हो गए। मैंने यह परीक्षा भी द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की।
बी.ए. की पढ़ाई के लिए कोई डिग्री कालेज नहीं था। पढ़ाई रुक गई। उसी समय विवाह की बात मथुरा से चली। मेरे होनेवाले ससुर जी का पत्र आया, उन्होंने बी.ए. की परीक्षा दिलाने पर जोर दिया। मैंने कानपुर से व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में परीक्षा देकर प्रथम वर्ष की परीक्षा अच्छे नम्बर से उत्तीर्ण की। विवाह सम्पन्न हुआ, मैं मथुरा आ गई। ससुर जी ने किशोरी रमण महिला महाविद्यालय में प्रवेश दिलाया। यह परीक्षा भी मैंने द्वितीय श्रेणी में अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण की। मेरी बी.ए. की डिग्री मेरे ससुर जी का मुँह दिखाई का उपहार था। सासु माँ ने एल.टी. कराने का उपहार दिया।
मेरे ताऊ ससुर जी संस्कृत से एम. ए. तथा विद्यावाचस्पति करने को प्रेरित किया। मैंने सभी की इच्छाओं को अपने कठिन परिश्रम से पूरा किया। प्रवक्ता पद की प्राप्ति के लिए फिर हिन्दी से भी एम.ए. पास किया। मायके और ससुराल दोनों पक्ष से अमूल्य उपहार मिले । अपने विद्यालय में हिन्दी, संस्कृत में शत प्रतिशत परीक्षाफल देकर जिला विद्यालय निरीक्षक के द्वारा कर्तव्य निष्ठ एवं परिश्रमी शिक्षिका का उपहार प्राप्त किया। मुझे ऐसे बहुमूल्य उपहार मिले जिनका न बँटवारा हो सकता है न छीना या चुराया जा सकता है। फलस्वरूप सेवानिवृत्ति के बाद आज भी पेंशन के रूप में लाभान्वित हो रही हूँ। विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम्।
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