गम को दिल से भूल जाना सीख लो ,
थोड़ा सा तुम मुस्कराना सीख लो ।
गम समुन्दर की तरह जीवन में हैं ,
खुशियों के गोते लगाना सीख लो ।
थोड़ा सा तुम ------------------------
गम अमावश-रात सी पल-पल है साथ ,
चाँदनी-पूनम से खुशियाँ सीख लो ।
थोड़ा सा तुम ---------------------------
गम हैं काँटों की चुभन ता-उम्र पर ,
फूलों से तुम मुस्कराना सीख लो ,
थोड़ा सा तुम --------------------------
गम हैं बर्फ़ानी हवा ढाती सितम ,
ओस की बूँदों से खुशियाँ सीख लो ,
थोड़ा सा तुम -------------------------
जैसे ऊसर हो जमीं होते हैं गम ,
लहराती फसलों से खुशियाँ सीखलो।
थोड़ा सा तुम ----------------------
गम है पतझड़ और सूखी डालियाँ ,
हरित-पत्रों से खुशी तुम सीख लो ।
थोड़ा सा तुम ----------------------
हर कदम जैसे धुआँ होते हैं गम ,
ऋतु-बसंती से खुशी तुम सीख लो ।
थोड़ा सा तुम ----------------------
गम हैं तपती धूप जीवन में मगर ,
चाँद की शीतल से खुशियाँ सीखलो।
थोड़ा सा तुम ---------------------
गम हैं ढलती शाम का सूरज अगर ,
ऊगते सूरज से खुशियाँ सीख लो ।
थोड़ा सा तुम --------------------
गम हैं दिल की दिल से बढ़तीं दूरियाँ ,
दिल से दिल की दूरियाँ तुम जीतलो ।
थोड़ा सा तुम --------------------
गम हैं करते काम सब अब स्वार्थ के ,
करके परस्वार्थ खुशी और मौज लो ।
थोड़ा सा तुम -----------------------
गम हैं मानव अब नहीं मानव रहा ,
मानवता से हर खुशी को लूट लो ।
थोड़ा सा तुम ---------------------
गम है कैसे दूर हों ये गम “मुकेश” ,
गम में भी खुशियों के पल तुम ढूढ़ लो ।
थोड़ा सा तुम मुस्कराना सीख लो ।
=== मुकेश कुमार श्रीवास्तव ===
दमोह ( म० प्र० )
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