प्रो अनेकांत कुमार जैन
प्राचीन जैन साहित्य में धर्म नगरी अयोध्या का उल्लेख कई बार हुआ है ।जैन महाकवि विमलसूरी(दूसरी शती )प्राकृत भाषा में पउमचरियं लिखकर रामायण के अनसुलझे रहस्य का उद्घाटन करके भगवान् राम के वीतरागी उदात्त और आदर्श चरित का और अयोध्या का वर्णन करते हैं तो प्रथम शती के आचार्य यतिवृषभ अपने तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में अयोध्या को कई नामों से संबोधित करते हैं । जैन साहित्य में राम कथा सम्बन्धी कई अन्य ग्रंथ लिखे गये, जैसे रविषेण कृत 'पद्मपुराण' (संस्कृत), महाकवि स्वयंभू कृत 'पउमचरिउ' (अपभ्रंश) तथा गुणभद्र कृत उत्तर पुराण (संस्कृत)। जैन परम्परा के अनुसार भगवान् राम का मूल नाम 'पद्म' भी था।बाद में तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में प्राकृत ,अपभ्रंश में रामायण लिखने वाले सभी कवियों को कवि वंदना के रूप में प्रणाम भी किया है ,निश्चित रूप से उन्होंने रामचरित मानस की रचना से पूर्व उन ग्रंथों का स्वाध्याय किया था -
जे प्राकृत कबि परम सयाने ।भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने ॥
भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें ।प्रनवउँ सबहि कपट सब त्यागें ॥
भावार्थ -जो बड़े बुद्धिमान प्राकृत कवि हैं, जिन्होंने भाषा में हरि चरित्रों का वर्णन किया है, जो ऐसे कवि पहले हो चुके हैं, जो इस समय वर्तमान हैं और जो आगे होंगे, उन सबको मैं सारा कपट त्याग कर प्रणाम करता हूँ।- श्रीरामचरितमानस (बालकाण्ड )
संकलन
डॉ विजय जैन 'शाहगढ' भोपाल
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