डॉ. रामवृक्ष सिंह, लखनऊ
किसी ठोस पदार्थ को तरल / द्रव के साथ मिलाकर बार- बार रगड़ते हुए लेप जैसा बनाने की प्रक्रिया कहलाती है घोटना। जब हम छोटे थे, उस समय लकड़ी की तख्ती को काला पोतकर उसपर बांस, सरकंडे/ सेंठे या नरकट की कलम को सफेद दुधिया या दुद्धी में डुबा-डुबाकर लिखा जाता था। दुधिया की डली लाकर (दुकान से या नदी किनारे की मिट्टी से खोदकर) उसे दवात में घोला जाता था। घोलने के लिए दवात में कोई ठोस लकड़ी डालकर बार- बार फेटना जरूरी होता था। यह प्रक्रिया 'घोटना' कहलाती थी। तख्ती को कड़ाह (वह विशाल पात्र जिसमें गन्ने का रस पकाकर गुड़ बनाया जाता था) के पेंदे में जमी कालिख से पोतकर काला किया जाता और खूब अच्छे से सुखा लिया जाता। सूखने के बाद तख्ती की काली सतह को कांच की दवात के चिकने पेंदे से रगड़ा जाता, ताकि वह एकदम चमक जाए। रगड़ने की यह क्रिया भी घोटना कहलाती थी। ठंडाई बनाने के लिए सिल पर बट्टे से भांग और बादाम घोटने का काम होली के समय खूब करते हैं भंगेड़ी लोग। दवा की टिकिया पीसकर चूर्ण बनाने के लिए पत्थर का जो पात्र प्रयोग में आता है, उसे भी इसीलिए घोट्टा कहा जाता है कि उसमें टिकिया को बार- बार रगड़कर चूर्ण बनाया जाता है।
घोटने में प्रधान है बारंबारता। इसीलिए किसी पाठ, श्लोक, कविता या सूत्र को बार-बार रटकर याद करने की क्रिया भी घोटना या घोट्टा मारना कहलाती है। घोटना की प्रेरणार्थक क्रिया है घोटाना। यह घोटाना ही बन जाता है घुटाना। सिर के बालों को खोपड़ी से सफाचट कराकर, बिलकुल गंजा होने की क्रिया को भी 'घुटाना' कहते हैं। संभवतः इसलिए कि सिर छिलवाने या बाल उतरवाने की क्रिया में उस्तरे को बार-बार सिर पर घसीटना होता है। ओकार के उकार बनने का एक बड़ा उदाहरण है 'खोदाई' शब्द का 'खुदाई' बनना। 'घोटाई' शब्द से 'घुटाई' का बनना भी वैसा ही है।
हिन्दी में बिन्दी का बहुत महत्त्व है। इसका आशय यह नहीं कि हर जगह जबर्दस्ती बिन्दी चेप दी जाए। किन्तु लिखने वाले अक्सर यही करते हैं। मसलन एक से अधिक लोगों को संबोधित करने में ओकार तो आता है, किन्तु नासिक्य ध्वनि वाली बिन्दी नहीं। भाइयो, बहनो, देवियो- ये संबोधन के लिए सही रूप हैं, न कि भाइयों, बहनों और देवियों।
घोटना के साथ भी कुछ लोग यही करते हैं और घो पर अनावश्यक बिन्दी सटा देते हैं। घो पर बिन्दी लगते ही इस शब्द का अर्थ बदल जाता है। घोंटना शब्द में घुटन का भाव निहित है। घुटन यानी, श्वासनली के दबने या किसी अन्य बाधा के कारण सांस का अवरुद्ध होना। जब कोई गला दबाकर या तकिये आदि से नाक- मु़ंह दबाकर किसी की सांस लेने की क्रिया बाधित कर दे तो उसे दम घोंटना या गला घोंटना कहा जाता है। दम यानी हवा, सांस लेने में प्रयुक्त होनेवाली हवा। (बिरयानी बनाते समय हवा बरतन से बाहर न निकले, इसका जुगाड़ करने की क्रिया को दम लगाना और रुककर सांस लेने को दम लेना कहा जाता है)। इसीलिए जहाँ हम हवा की कमी के कारण सांस नहीं ले पाते,उसे दमघोंटू वातावरण कहते हैं।हालांकि घुटन के घु में नासिक्य ध्वनि नहीं है, किन्तु घोंटना में नासिक्य ध्वनि न हो तो उसका अर्थ बिलकुल अलग हो जाएगा, जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है। पूर्वांचल में घोंटना शब्द निगलने के लिए भी प्रयोग होता है। घोंटना और घूंट एक ही शब्द के दो रूप हैं। पहला यानी घोंटना क्रिया है, जबकि घूंट संज्ञा। कहते हैं मैं खून का घूंट पीकर रह गया।
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