श्रम का सौन्दर्य

 

मेहनत का रंग भी होता अजीब है

बिना किसी मेकअप के

बिना किसी फेशियल के

चेहरा खूब  चमकता है ...... 

न तो कोई काजल की जरूरत है

न तो किसी लाली की

मेहनत के रंग के सामने

हर रंग फीका होता  है...... 

चेहरे पर स्वाभिमान का

एक अलग ही तेज चमकता है

जो खुद के पैरों पर खड़ा होता है

उसमें एक अलग ही अकड़ होता है....... 

दुनिया को अपनी मुट्ठी में

रखने की ताकत वह रखता है

उसके कदमों तले

ये सारा जहाँ होता है....... 

अपने  ही मेहनत से भगीरथ ने

माँ  गंगा को पृथ्वी पर  लाया था

समुद्र मंथन करके इंसान ने

सागर से अमृत निकाला था....... 

---- ओमप्रकाश पाण्डेय


आषाढ़ के बादल


क्यो चुप्पी साधे हो आषाढ़ी बादल

उमसती गर्मी से तन - मन बेचैन है 

रोज कहते हो कल आऊँगा 

बरखा रानी को संग लाऊँगा

आते हो पर चुपचाप ही चले जाते हो

बिना बरसे बरखा को भी संग ले जाते हो

ऐसी क्या नाराज़गी दिल में लिये हो

क्या तुम भी हमसे मुँह फेरे हुए हो

देखो ना ताल तलैया सूखे है 

वृक्ष और विटप भी सूख रहे हैं 

किसान बीज बो चुके है खेत में 

उनमें अंकुर निकलवाओ ना 

बादल भैया आओ ना

इतना ना तरसाओना

क्या तुम्हे गिल्ली डंडा याद नहीं 

और आँख मिचौली की फरियाद नहीं 

अब आ भी जाओ ना नखरे दिखलाओ

उस दिन अरावली की पहाड़ियों को

तुमने अपने आलिंगन में  लिया था

लेकिन फिर बिना बरसे ही चले गये 

तुम जब डेरा डालते हो 

दिल प्रसन्न हो जाता है

परंतु थोड़ी देर में ही छितरा जाते हो

तब बहुत बुरा लगता है 


© शुभदा भार्गव 

      अजमेर  ।


"आशिकाना सावन"

 "आशिकाना सावन"


सखी सावन का जो फिर आना हुआ है,

नादान दिल ये मेरा यूं दीवाना हुआ है।

सौंधी-सौंधी महक उठी है धरा से, 

जमीं को नमी का नज़राना हुआ है।


इन खुशबुओं से मैं बेखबर तो नहीं हूं, 

पहले भी इन गलियों में जाना हुआ है।

रात भर है नहाया ये शहर बारिशों में,

हरियाली का सुबह शामियाना हुआ है। 


बारिश की रुत में बला की कशिश़ है, 

फिर दिल में किसी का ठिकाना हुआ है।

बूंद-बूंद में है तस्वीर-ए- यार की,

उफ! बेकरारी का कैसा फ़साना हुआ है।


सावन से जुड़ी है हर इक दिल की यादें, 

हर श़मा का सावन परवाना हुआ है।

वो जवां मुस्कुराहटें वो हसीं शरारतें, 

उस जमाने को गुजरे जमाना हुआ है। 


यूं शरमा के खुद से खुदी में लिपटना, 

कसम से यह समां कातिलाना हुआ है।

ऐ सावन की बारिश जरा थम के बरसो, 

दिल हद से ज्यादा आशिकाना हुआ है।

© डॉ. श्वेता सिन्हा 

आयोवा, अमेरिका


मेघ महिमा



   मेघ महिमा

जल जीवन है और मेघ-वर्षा इसका सबसे सशक्त स्रोत है। इस परिच्छेद में इसी कारण कवि ने मेघ-वर्षा को पृथ्वी के संवर्धन का मूल तत्व बताया है साथ ही इसे पृथ्वी को अक्षुण्ण बनाए रखने का मूल कारण उद्घोषित करते हुए इसे अमृत के रूप में महिमामंडित किया है।

1. समय से होने वाली मेघ-वर्षा के कारण ही धरा स्वयं को अक्षुण्ण रखने में समर्थ है। अर्थात् पृथ्वी के चराचर स्वरूप का संवर्धन इस मेघ-वर्षा के कारण ही संभव हो सका है अन्यथा यह कभी का नष्ट हो गया होता। यही कारण है कि वर्षा को अमृत की संज्ञा दी जाती है।

2. ⁠*संसार में जितने भी स्वादिष्ट खाद्य-पदार्थ हैं वे सभी वर्षा के कारण प्राप्त होते हैं। जल ही जीवन है, इसी कारण वह प्रत्येक जीवधारी के भोजन का प्रमुख अंग है।*

3. भले ही पृथ्वी चारों ओर समुद्र से घिरी है लेकिन यदि वर्षा न हो तो सारी पृथ्वी पर अकाल का प्रकोप छा जाए। यही दर्शाता है कि वर्षा मानव-जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण है।

4. यदि स्वर्ग के झरने सूख जायें अर्थात् यदि वर्षा न हो तो किसान खेतों में हल जोतना ही छोड़ देंगे क्योंकि बिना वर्षा के फसल का उत्पादन संभव ही नहीं है।

5. यद्यपि अत्यधिक वर्षा से बाढ़ आ जाती है और कभी-कभी तो यह प्लावन का रूप भी ले लेती है, फिर भी यही वर्षा समयान्तर में समूची धरा को फिर से हरा-भरा कर देती है और जीवनोपयोगी बन जाती है।

6. यदि आकाश से पानी की बौछारें आना बंद हो जायें अर्थात् यदि वर्षा न हो तो किसी भी प्रकार की वनस्पति, यहाँ तक कि घास का उगना भी बंद हो जाएगा।

7. यदि आकाश समुद्र-जल को पीना और उसे फिर समुद्र को वापिस करने का चक्र समाप्त कर दे तो इस शक्तिमान समुद्र में ही कुत्सित, वीभत्सता का प्रकोप था जाएगा अर्थात् यदि समुद्र के जल का वाष्पीकरण और उसके प्रतिफलन से होने वाली वर्षा का चक्र थम जाए तो स्वयं समुद्र की उपादेयता ही समाप्त हो जाएगी और वह विद्रुपित हो जाएगा।

8. यदि स्वर्ग का जल सूख जाए अर्थात् वर्षा होनी बंद हो जाये तो न तो पृथ्वी पर यज्ञ-याग (होम-हवन) संभव हो सकेंगे और न ही भोज ही आयोजित हो सकेंगे।

9. यदि ऊपर से जल-धारायें आनी बंद हो जायें अर्थात् यदि वर्षा होनी बंद हो जाए तो इस पृथ्वी पर न तो दानियों का दान रहेगा और न ही तपस्वियों का तप क्योंकि बिना जल के इस धरा पर कुछ भी संभव नहीं है।

10. जल पृथ्वी पर जीवन का मूलाधार है, इसी कारण वर्षा के बिना कुछ भी संभव नहीं है। यहाँ तक कि सदाचार भी अन्तत: वर्षा पर ही आश्रित है।

 कुरल काव्य ग्रंथ 

प्रेषक सुबोध कुमार जैन बैंगलोर 

भारत के पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' जी के जन्म दिवस पर अनेक कार्यक्रम

 सुप्रसिद्ध साहित्यकार, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भारत के पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' जी के जन्म दिवस पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए.

 एक ओर थानों स्थित अटल लेखक ग्राम में नगर के  अनेक स्कूल एवं कॉलेज के छात्र-छात्राओं, लेखक एवं बुद्धिजीवियों द्वारा वृक्षारोपण कार्यक्रम किया गया, वहीं दूसरी ओर स्पर्श हिमालय विश्वविद्यालय में एक वृहद रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया.

     डॉ. निशंक के डालनवाला स्थिति कार्यालय मे शहरों अनेक साहित्यकारों ने एक शुभकामना संगोष्ठी का आयोजन किया और डॉ. निशंक को शुभकामनायें दी. दिल्ली मे होने के कारण डॉ. निशंक ने ऑन लाइन आकर सबका धन्यवाद किया. इस कार्यक्रम मे पद्मश्री डॉ. बी.  के.  ऐस. संजय, पद्मश्री माधुरी बर्थवाल, डॉ. निशंक की कनिष्ठ पुत्री विदुषी निशंक,  लेखक रमाकांत वेंजवाल, भाषाविद बीना वेंजवाल, लेखिका उषा कोटानाला, साहित्यकार मुकेश नौटियाल, उत्तराखंड उच्च शिक्षा निदेशालय की पूर्व निदेशक डॉ. सविता मोहन, एवं डॉ. बेचैन कंडियाल सहित अनेक वर्ष साहित्यकार एवं गणमान्य लोग उपस्थित थे.

 डॉ. निशंक को जन्मदिवस की शुभकामना देने के लिए एक ऑनलाइन कार्यक्रम भी आयोजित किया गया जिसमें देश एवं विदेशों के अनेक साहित्यकारों ने सम्मिलित होकर डॉ. निशंक के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा की. साथ ही उन्हें जन्मदिवस की शुभकामनाएं दी और उनकी दीर्घायु की कामना की.

 हिमालय विरासत न्यास द्वारा आयोजित साम 7.30 पर शुरू हुए इस कार्यक्रम में भारत सहित विश्व के अनेक देशों के प्रवासी साहित्यकार, लेखक और हिंदी सेवियों ने  डॉ. निशंक को अपनी शुभकामनाएं दी. 

        डॉ. निशंक खुद इस पटल पर हाजिर रहे और अंत मे सभी का धन्यबाद ज्ञापित किया.उन्होंने कहा कि यह उनका सौभाग्य है कि लोग मुझे इतना स्नेह देते हैं और मेरे जन्म दिवस पर जगह- जगह स्वयं कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यही मेरी ऊर्जा और ताकत है.

       कार्यक्रम के अंत में आयोजक संस्था हिमालय विरासत न्यास की अध्यक्ष आशना नेगी ने सबका धन्यवाद किया.

       कार्यक्रम देर रात 11 बजे   तक चलता रहा. कार्यक्रम का संचालन वरिष्ट लेखक डॉ. वेद प्रकाश  ने किया.

कार्यक्रम भारत से डॉ. योगेंद्रनाथ शर्मा 'अरुण'

प्रख्यात शिक्षाविद् एवं वरिष्ठ साहित्यकार, डॉ. बनवारी लाल गौड़

वरिष्ठ साहित्यकार एवं उद्योगपति, प्रोफे. अजय कुमार भागी अध्यक्ष,दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ, डॉ. कीर्ति काले

ख्याति प्राप्त कवयित्री, प्रो. रमा, प्राचार्य हंसराज कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय, डॉ. बी.एल. गौड, वरिष्ठ साहित्यकार एवं गौड़संस इंडिया के स्वामी, प्रो. मंजुला राणा केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर, डॉ.  किरण खन्ना, पंजाब विश्वविद्यालय, डॉ. परमजीत कुमार पंजाब, डॉ.  रवि कुमार,  डॉ. विजय मिश्रा हंसराज कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय, डॉ. ममता कुँवर, स्पर्श हिमालय विश्वविद्यालय उत्तराखंड, प्रो. अजय पाल सिंह देशभक्ति विश्वविद्यालय पंजाब, प्रिया राय, लेखिका अगरतला, डॉ. राम शर्मा मध्य प्रदेश, डॉ. नीरज भारद्वाज दिल्ली सहित अनेकों वरिष्ट साहित्यकार सामिल थे.  

        विदेशों से जय वर्मा,

वरिष्ठ साहित्यकार एवं हिंदीसेवी ब्रिटेन, डॉ. राम प्रसाद भट्ट, साहित्यकार जर्मनी, डॉ. अश्विनी के. गाँवकर, लेखिका नीदरलैंड, डॉ. अभिषेक त्रिपाठी, साहित्यकार आयरलैंड, रामा शर्मा 

सम्पादक हिन्दी की गूंज 

जापान, डॉ. इंद्रजीत सिंह वरिष्ठ साहित्यकार रूस, 

प्रो. पुष्पिता अवस्थी प्रसिद्ध लेखिका नीदरलैंड, डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी, वरिष्ठ लेखक चीन, डॉ. शिप्रा शिल्पी अध्यक्ष सर्जनी,जर्मनी, डॉ. शैलजा सक्सेना, प्रसिद्ध कवयित्री कनाडा, डॉ. योजना शाह जैन कवयित्री जर्मनी, अर्चना पैनूली कथाकार यू. एस. सहित अनेकों वरिष्ठजन सामिल थे.


गीत


मन पागल है,प्रेम में तेरे,

जीवन इक अभिलाषा है।

ईश पिया है,पिया ईश है,

यह मन की परिभाषा है।।


व्याकुल मन की पीर पिया ने

जानी तो वो ईश हुआ।

मीरा के कोमल हृदय का,

सब कुछ वह जगदीश हुआ।

मन के झंकृत स्पंदित सब,

तारों में वह रहता है।

एकाकार बनकर वह फिर,

प्रेम की बातें कहता है।

इस भव से परभव तक जाना,

यहि अलौकिक आशा है।

ईश पिया है,पिया ईश है,

यह मन की परिभाषा है।।


मीरा उसमें वो मीरा में,

कोई जान न पाया है।

यही भावना भक्ति सब कुछ,

जिसमें ईश समाया है।

मन पागल बस ढूँढ रहा है,

उस हरि को,उस माही को।

इन साँसों के संग में चलने,

वाले साथी राही को।

झूठा जग माया की गठरी,

भ्रम है एक निराशा है।

ईश पिया है,पिया ईश है,

यह मन की परिभाषा है।।


जिस दिन खोकर,जिस दिन पाकर,

मैं मीरा बन जाऊँगी ।

मैं गिरधर की दासी बनकर,

खुद में जोत जलाऊँगी।

लोकलाज सब तज कर जीवन,

मन पागल हो जायेगा।

मेरा ईश मुझी में रमकर,

प्रेम की बंशी बजायेगा।

सच तो यही है वो अनंत है,

मेरा उसमें वासा है।

ईश पिया है,पिया ईश है,

यह मन की परिभाषा है।।


सरिता "कोहिनूर"

वारासिवनी

जिला-बालाघाट म.प्र. 

पिन --481331


महत्वपूर्ण जीवन


"महर्षि रमण "के आश्रम के पास गांव में एक व्यक्ति रहता था ! वह रोज-रोज के गृह-क्लेश से परेशान था ।एक दिन उसने परेशान होकर "आत्महत्या "करने का विचार बनाया ताकि रोज-रोज के कलह से छुटकारा मिल सके , परंतु आत्महत्या करना इतना आसान व सरल नहीं था ।घर की सभी जिम्मेदारियां भी उसी के कंधे पर थी ।वह व्यक्ति परेशानी की हालत में" महर्षि रमण" के आश्रम में पहुंचा और अपनी सारी "मन की व्यथा " को बता कर आत्महत्या करने के उपाय पर उनके विचार जानने चाहे ।

महर्षि उस वक्त पत्तल बनाने में व्यस्त थे। उस व्यक्ति की बात सुनते और पत्तले बनाते रहे ।

उस व्यक्ति को उनकी तल्लीनता देख कर आश्चर्य हो रहा था ,कि उसे "सब्र "न हुआ तो महर्षि से पूछा - "स्वामी जी आप इन पत्तलो को बनाने में इतनी मेहनत क्यों कर रहे हैं?  जबकि आप जानते हैं ,कि बस एक बार के भोजन के बाद यह कूड़े -कचरे में फेंक दी जाएगी !

महर्षि ने मुस्कुरा कर कहा--" तुम ठीक कहते हो, परंतु किसी वस्तु का पूरा उपयोग हो जाने के बाद उसे फेंकना बूरा नहीं है, बुरा तो कहा जाएगा जब उसका उपयोग किए बिना ही अच्छी अवस्था में उस वस्तु को कूड़े -कचरे में फेंक दिया जाए! तुम तो शिक्षित भी हो और अनुभवी भी मेरे कहने का आशय समझ गए होंगे ?

महर्षि की बात सुनकर उस व्यक्ति ने केवल जीने का उत्साह आया बल्कि "आत्महत्या "का विचार भी त्याग दिया !

"हमें भी ईश्वर ने जो "मानव जीवन "की सौगात दी है! हम उसका पूर्ण व श्रेष्ठ उपयोग स्वयं व परहित के लिए करें। "

धन्यवाद 

श्रीमती राजकुमारी वी. अग्रवाल शुजालपुर मंडी मध्य प्रदेश


सर्व दोष प्रयश्चित विधान सम्पन्न

वर्षा रितु सभी धर्म में भक्ति का प्रवाह लेकर आती है साधु संत इस ऋतु में चातुर्मास की स्थापना करते हैं 4 महीने तक एक स्थान पर रहकर भक्ति साधना आराधना करते हैं और उनके सानिध्य में भक्त जैन पूजा पाठ आदि से प्रभु के गुणगान करते हैं श्री  चंद्र प्रभु चैत्यायलय मगरपट्टा में भी श्रावण मास के प्रथम सप्ताह में सर्वदोष प्रायश्चित विधान का अति भव्यता से आयोजन किया गया शताब्दिक भक्तों ने एक साथ बैठकर अष्ट द्रव्य से भगवान का अभिषेक शांति धारा और पूजन की विधान के संयोजक रतन मंजरी जैन अर्पण जैन गुंजन जैन रहे उल्लेखनीय है सभी व्रत का शुभारंभ इन्हीं चातुर्मास में होता है और डॉक्टर नीलम जैन ने सभी को सर्वदोष प्रायश्चित विधान का महत्व बताया और कहा कि संसार में रहते हुए अपने प्रतिदिन के  कार्यों में हम सब लोग जाने अनजाने अनेक गलती  अज्ञानता वश करते हैं हमें इस सबके लिए प्रायश्चित कर स्वयं को शुद्ध करना चाहिए हमें अपने अंतर मन को शुद्ध रखना चाहिए

उल्लेखनीय है भगवान महावीर के प्रथम दिव्या देशना श्रावण मास की प्रतिपदा  को ही संसार को सुनने को मिली थी  जैन धमावलंबी इस दिन को वीर शासन जयंती के रूप में मनाते है



एक कविता राम के नाम


कोई मुझे देखे कि देखते हुए

सब रंग आसमां के सितारों में आ गए।


बहुत नासमझ हैं, सब जानते हुए

जाने क्यों  लोग मेरी बातों में आ गए ।


जिन्हें न कह सका, जज़्बात बहुत थे

अल्फ़ाज़ बन के मेरी किताबों में आ गए।


हसरतें लाखों थीं पूरी भी हो गईं 

बेवज़ह  के किस्से ख्वाबों में आ गए।


एक राम थे जो बाहर, भटका तो न मिले 

न जाने कब चुपके से वो मेरी आंखों में आ गए।

============

-डॉ राजेश श्रीवास्तव

निदेशक रामायण केन्द्र भोपाल


कारगिल के योद्धा मतवाले

 

कारगिल के योद्धा मतवाले 

भारत  माता   के   रखवाले 

मर मिटे जो आन की खातिर 

खदेड़ दिये जितने थे शातिर 

लहू का क़तरा जिनका एक,

देश  - प्रेम  की     आहुति ।

जन-गण-मन सारा जहान जो,

कर   रहा    है      स्तुति ।।

जिनकी शान में उठा तिरंगा 

उमड़  उठी  हैं   यमुना-गंगा 

किया जिन्होंने जीवन स्वाह 

आज  वही  इतिहास गवाह 

शौर्य-अदम्य वीरता जिनकी ,

बने वही थे बल्लभ -भाले ।

टूट पड़े वो जी-जान पर,

कारगिल के योद्धा मतवाले ।।

# बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज",

          कोटा (राजस्थान)


करगिल के बालिदानियों के परिवार को समर्पित


करगिल के जो थे बलिदानी,

उनकी भी थी प्रेम कहानी

उनके सीनों में भी दिल था 

चढ़ता यौवन, मस्त जवानी 

कुछ वे जिनका ब्याह हुआ था 

कुछ की केवल हुई सगाई 

कुछ की घर में बात चली थी 

कुछ बाँकों की आँख लड़ी थी 

कुछ ऐसे थे जिनके घर में 

पत्नी और छोटे बच्चे थे 

प्यार सभी के दिल में सच्चा

फूलों में सुगन्ध के जैसा 

प्रेम संजोए अपने दिल में 

वे सीमा पर खड़े हुए थे 

प्रत्युत्तर देने दुश्मन को 

चट्टानें वह खड़ी चढ़े थे 

रणचंडी की बलि वेदी पर 

चौरासी दिन यज्ञ हुआ था 

घृत आहुति से नहीं 

वीर के प्राणों से 

यह यज्ञ हुआ था 

जीता था भारत इस रण में 

विजय पताका लहरायी थी 

पर यह विजय सैनिकों के 

प्राणों के बदले में आयी थी 

कितने हुए हताहत कितनी 

ज़ख्मी होकर घर लौटे थे 

कितने बन्दी और गुमशुदा 

हम जिनको ना गिन सकते थे 

इन सबके जो तार जुड़े थे 

परिजन और परिवार जुड़े थे 

पुत्र, पिता, प्रेमी, पति, भाई 

विजय ज्योति पर भस्म हुए थे 

उनकी पत्नी बिलख रही थीं

बहिनों की थाली की राखी 

शून्य दिशा में धूर रही थीं 

पत्थर सी माँओं की आँखे 

आँसू के बिन सूख गयी थीं 

माथे के सिन्दूर मिटे थे 

कहीं चूड़ियाँ टूट रही थीं 

बिलख रहे थे बच्चे छोटे 

माँयें बेसुध पड़ी हुयी थीं 

सावन बरस रहा था झर-झर

सूने झूले वहाँ पड़े थे 

मेंहदी के रंगों से रीती 

प्रिया हथेली देख रही थी 

पड़ी हुई थीं राहें सूनी 

जहाँ अभी तक आँख बिछी थी 

और प्रतीक्षा की घड़ियों की 

हृदय-गती अवरुद्ध हुई थीं 

शोक मग्न आकाश हुआ था 

सावन भी रोता था जैसे

बादल के आँखों के आँसू

रुधिर धरा का धोते जैसे 

बीत गया वह युद्घ पुराना 

यादें क्षीण हुईं मानस से 

पर जिनके प्रियवर सोये थे 

आँखों के तारे खोये थे 

बसर दर बरस यह बरसातें 

उनके घाव हरे करती है 

झूला, मेंहदी, कजरी, राखी 

यादों से विह्वल करती हैं 

सावन आये या ना आये 

इनकी आँखे नम रहती हैं 

पतझड़, शीत, शरद, गर्मी में 

भी वर्षा होती रहती है… 

यह आँखे निशि-दिन रोती हैं 

#शैली


अल्प शिक्षित



प्रोफेसर रविशंकर अपने तीन अन्य प्रोफेसरों के साथ एक सेमीनार से कार द्वारा लौट रहे थे। चारों के बीच संस्कार संस्कृति और मानव मूल्यों के हृास पर गर्मागर्म बहस चल रही थी। सबका यह मानना था कि आज हर आदमी देश और समाज से कटकर स्वयं के दायरे में सिमटता जा रहा है, वह केवल अपने लाभ के बारे में सोचता है।
कार प्रोफेसर रवि शंकर चला रहे थे। अचानक वे बोले-”कार ववलिंग कर रही है, लगता है पेट्रोल खत्म होने वाला है।“
”क्या?“ सबने हैरानी से प्रोफेसर रवि शंकर की ओर देखा।
”कार एक दो किलोमीटर से ज्यादा नहीं चल पाएगी।” रविशंकर चिन्तित स्वर में बोले।
सब लोग परेशान हो उठे। दूर-दूर तक कोई पेट्रोल पम्प नजर नहीं आ रहा था। एक सज्जन ने अपने मोबाइल पर गूगल पर पेट्रोल पम्प की लोकेशन चेक की। वे बोले-यहां से सात किलोमीटर दूर एक कस्बा है, वहां पेट्रोल पम्प है।
”अब क्या होगा?“ सबके चेहरों पर गहरी चिन्ता झलक रही थी।
रविशंकर बोले-”अब जो होगा देखा जाएगा। जहां तक कार चल सकती है चलते हैं।“
बे लोग अभी एक किलोमीटर आगे बढ़े होंगे कि सड़क किनारे एक गाँव पड़ा, छोटा सा गाँव था। कुल मिलाकर बीस-पच्चीस मकान रहे होंगे। एक बड़े से मकान के पास उन्होंने कार रोक दी।
रवि शंकर ने मकान का दरवाजा खटखटाया।
थोड़ी देर बाद एक प्रौढ़ व्यक्ति ने दरवाजा खोला। मजबूत कदकाठी वाला वह व्यक्ति ठेठ ग्रामीण लग रहा था। उसने प्रश्नवाचक निगाहों से रविशंकर की ओर देखा।
देखिए हम लोग कार से महानगर जा रहे हैं। महानगर अभी लगभग सौ किलोमीटर दूर रह गया है मगर हमारी कार का पेट्रोल खत्म हो गया है। क्या आप इसमें हमारी मदद कर सकते हैं? रविशंकर विनम्र स्वर में बोले।
”यहां से लगभग छः किलोमीटर आगे एक कस्बा है वहां पेट्रोल पम्प है उस पर आपको पेट्रोल मिल जाएगा।” गृह स्वामी ने बताया।
मगर हमारी कार वहां तक नहीं पहुंच पाएगी। बड़ी मुश्किल से हम यहां तक आ पाये हैं।
वह आदमी कुछ समय कुछ सोचता रहा फिर उसने कहा-”आइए अन्दर आइए देखते हैं क्या हो सकता है?“
रविशंकर ने आवाज देकर अपने साथियों को भी बुला लिया। उस व्यक्ति ने उन सबको अपनी बैठक में बैठाया।  वह अन्दर गया और ट्रे में चार गिलास पानी लेकर आया। मेज पर पानी रखते हुए बोला-”आप लोग पानी पीजिए। चाय बन रही है। मैं पेट्रोल के बारे में पता करके आता हूँ।“ यह कहकर वह चला गया।
थोड़ी देर बाद उसकी बारह वर्षीय बेटी गर्मागर्म चाय और बिस्किट रख गई। सब लोग चाय पीने लगे।
कुछ देर बाद वह आया। उसके एक हाथ में एक केन थी। वह बोला-“मेरी मोटरसाइकिल में कुछ पेट्रोल था। उसमें से पाइप द्वारा मैंने पेट्रोल निकालकर इस केन में भर दिया है। एक-डेढ़ लीटर होगा। इससे आपकी कार आराम से कस्बे तक पहुँच जायेगी।“
सबके चेहरे प्रसन्नता से चमक उठे। चाय पीने के बाद चलने से पहले रविशंकर ने उसे पेट्रोल के दो सौ रुपए देने चाहे । मगर उसने रुपए लेने से साफ इन्कार कर दिया। वह बोला आप मेरे गाँव आए हैं मेरे मेहमान हैं । आपकी मदद करना हमारा फर्ज है । मैं तो खुश हूं कि मैं आप लोगों के काम  आ सका ।
गाँव के इस अल्प शिक्षित व्यक्ति की बात सुनकर उन सब बुद्धिजीवियों को उसकी तुलना में अपना कद बहुत बौना लग रहा था।

सुरेश बाबू मिश्रा
साहित्य भूषण
ए-979, राजेन्द्र नगर, बरेली-243122 (उ॰प्र॰)
मोबाइल नं. 9411422735,

ग़ज़ल

  ग़ज़ल

                  

दिल की तहरीर को पढ़ने का हुनर आता है।

तेरे चेहरे पे तेरा हाल नज़र आता है।।


रात भर लड़ के हुआ लाल लहू से सूरज,

तब कहीं जा के उजाला ये इधर आता है।


कोई मासूम सी चिड़िया के अगर पर कुतरे,

देखकर ख़ूं मेरी आंखों में उतर आता है।


आज जंगल में दरिन्दे भी हैं दहशत में बहुत,

ओढ़कर खाल सियासत की बशर आता है।


सींचता हूं मैं इसे और जतन करता हूं,

शाख पर यूं ही नहीं यार समर आता है।


सारी खुशियां औ' तरक्की वो यहीं पाएगा,

बस यही सोच के हर कोई शहर आता है।


ज़िन्दगी का है सफ़र आप संभलकर चलिए,

ये वो दरिया है कि हर रोज भंवर आता है।


और वादे न करो प्यार जताया न करो,

दिल का हर ज़ख़्म हरा हो के उभर आता है।


ख़ून ज़ज़्बात का मैं उनको पिलाता हूं विजय,

तब कहीं जा के ये लफ़्ज़ों में असर आता है।


         2

परेशां वो बहुत रहते हैं जिनको याद रहता है।

भुलक्कड़ है ये दिल बस इसलिए ही शाद रहता है।।


यहां हर सुख मुहैया है मगर मन ख़ुश नहीं फिर भी,

उसे देखो अभावों में भी वो आबाद रहता है।


मेरे सर पर है आशीर्वाद मां का इसलिए ही तो,

ख़ुशी औ' सुख से मेरा हर समय संवाद रहता है।


मुसीबत में बिखर जाऊं कोई पारा नहीं हूं मैं,

हर इक हालात में मेरा जिगर फौलाद रहता है।


फकीरों साधु संतों का ठिकाना हो नहीं सकता,

कलन्दर हैं ये इनका मन तो बस आज़ाद रहता है।


ज़रूरत से जियादा पा गया है इसलिए ही तो,

ख़ुदी का ही हमेशा बस उसे उन्माद रहता है।


घृणा, नफ़रत ये सारे द्वेष तुम सब भूल जाओगे,

कभी उससे मिलो वो स्नेह का अनुवाद रहता है।


ग़ज़ल, गीतों की इस दुनिया में हूं मसरूफ़ मैं इतना,

कि जैसे याद में शीरीं की ही फरहाद रहता है।


विजय मशहूर है दुनिया में उसको खोजते हो क्या,

अरे सीधा पता है वो अहमदाबाद रहता है।

                  विजय तिवारी, अहमदाबाद

                 


गुरु महिमा

  डा. राजलक्ष्मी शिवहरे 

    पहली गुरु मां ।

    बहुत कुछ सिखाया उन्होंने।

    पिता भी गुरु।

    संसार में रहना कैसे।

    सीखा उनसे बहुत।

    भाइयों ने हर पल सिखाया 

    जहां भी गणित में अटके

    क्लास में रुतबा था।

    फिर तो बाबाजी ने 

    भी सब सिखाया।

    बाद में गुरुजी ने

    बोलना सिखाया।

    जो कुछ हैं वो सब

    गुरुओं की महिमा है।

    तराशा, सहलाया कभी

    डांट भी पड़ी परंतु 

    प्यार भी मिला।

    सभी को जिनसे सीखा।

    कोटि-कोटि नमन।


आस्था

 

अनिता रश्मि 

                 

    टूटे-फूटे, कटे-छिजे मास्टर साहब अंतिम साँसें गिन रहे हैं। जीवन के कई रंग देखते, सहते, झेलते पतझड़ आ गया। वे सोचते थे, 'जीवन नीरस है। दुखों से भरा है। संघर्षों से तोड़नेवाला है। मनुष्य पर आस्था-विश्वास कम करनेवाला है।'

 टूटन की तमाम बातों ने उन्हें घेर लिया था। 

 एकाएक एक आदमी कमरे में आकर उनके पैर छूने लगा।  "सर, पहचाना? मैं आपका स्टूडेंट श्यामू। आपने मुझे मुफ्त में पढ़ाया था।"

थोड़ी पहचान उभरी। 

"आजकल मैं कलेक्टर बन यहीं अपनी सेवाएँ दे रहा हूँ। आपने इतनी अच्छी शिक्षा और संस्कार दिए। नहीं तो मैं अभी जूत्ते ही सिलता रहता।" 

वह पुनः पैर छूने लगा। उनकी अधमुंँदी आँखों में भोर का उजास भर गया। वे आँखें खोल, टकटकी बाँध नए सूर्य की चमकदार रश्मियों को देखते रहे। फिर से जीवन, संस्कार, नैतिकता पर आस्था जमने लगी।

 साश्चर्य बुदबुदाहट,  

"सबसे ईमानदार कलेक्टर मेरा शिष्य!"

और उनकी कब की बेचैन, तकलीफ़ से तड़पती, हताश वृद्ध आँखों में विश्वास का बिरवा अंकुरित हो उठा। 


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कठपुतली

 कठपुतली 

ओहो मम्मी,तुम क्या करोगी इंस्टा अकाउंट खोलकर ! सवि ने अपनी माँ को लगभग चिल्लाते हुए जवाब दिया।

वर्तमान युवा होती पीढ़ी की यही परेशानी है कि उन्हें अपने आगे सभी लोग पिछड़े हुए लगते हैं ।

रजनी कई दिनों से बेटा - बेटी को देख रही थी । दोनों में बस साल भर का अंतर था । सोलह और सत्रह साल के ही थे । लेकिन व्यवहार ऐसा जैसे किसी और ही ग्रह से आये हों ।सारा दिन बस फ़ोन या टेबलेट हाथ में रहता । बेटी सारा दिन सीसे के सामने मेकअप लगाकर नाचती सी रहती, और बेटा हर वक़्त लैपटॉप या फ़ोन पर  गेम खेलता रहता ।

पति काम के चक्कर में अक्सर बाहर ही रहते । दो बच्चों के साथ रजनी सब कुछ सम्भालती हुई हर वक़्त परेशान सी रहती । बच्चों से कुछ कहती तो जवाब मिलता, अरे मम्मी तुम्हें कुछ नहीं पता ।बस हर वक़्त पढ़ाई और काम के पीछे पड़ी रहती हो । बेटी तो उसे अपने मौलिक अधिकार भी  गिनाने लग जाती । 

अभी कल ही उसे पड़ोस वाले गुप्ता जी ने बताया था कि आपकी लड़की के तो बहुत फॉलोवर हैं इंस्टा पर काफ़ी फ़ेमस है बिटिया सोशल मीडिया पर !

रजनी को समझ नहीं आया था,कि क्या जवाब दे । उसका तो दूर दूर तक सोशल मीडिया से कोई लेना देना नहीं था । लेकिन गुप्ता जी की कुटिल मुस्कान उसे चुभने लगी थी । 

इसलिए घर आते ही उसने बेटी सवि को अपना अकाउंट खोलने के लिए कहा था, लेकिन बेटी ने झल्लाकर साफ़ मना कर दिया । 

रजनी ने सोचा बेटे से बोलकर अकाउंट खुलवा लेगी।

बेटे के पास अपनी इच्छा लेकर जा ही रही थी कि सोफ़े पर लेटकर पकड़े हुए फ़ोन पर देखा, बेटा किसी लड़की से बात कर  रहा था ,जिसने ना के बराबर कपड़े पहने हुए थे । रजनी को देख बेटा थोड़ा सकपका गया । लेकिन रजनी उस से कुछ कहती, वो ख़ुद रजनी से बोल पड़ा ।

मम्मी , तुम ना फेसबुक जॉइन कर लो । ये इंस्टाग्राम है ना तुम्हारे मतलब का नहीं है । तुम्हारी उम्र वालों के लिए एफबी  बेस्ट है । आओ बैठो मैं तुम्हारा अकाउंट बना देता हूँ, और अकाउंट बन गया।

सब बहुत आसान था, बेटे ने समझा दिया अच्छे से ।

धीरे- धीरे रजनी भी फेसबुक चलाना सीख गई । अब गुप्ता जी ही नहीं बल्कि आसपास के और भी लोग उसकी फ्रेंड लिस्ट में जुड़ गये थे ।

धीरे-धीरे  उसे भी हर वक़्त फ़ोन हाथ में लेकर रहने की आदत पड़ गई । हर वक़्त नोटिफिकेशन बजता ही रहता । कहाँ तो उसने सोचा था कि इंस्टाग्राम पर जाकर बच्चों को देखेगी कि क्या करते रहते हैं । फिर उन्हें सही ग़लत समझा कर फ़ोन पर कम रहने के लिए प्रोत्साहित करेगी,पढ़ाई की अहमियत समझायेगी पर यहाँ  तो स्वयं ही सोशल मीडिया के हाथों की कठपुतली बन कर रह गई ।


मंजु तिवारी कुमार 


रसोई से राष्ट्रपति भवन तक की लेखन यात्रा

 रसोई से राष्ट्रपति भवन तक की लेखन यात्रा 

                        - डॉ मृदुल कीर्ति


साझा संसार नीदरलैंड्स द्वारा आयोजित 'संस्कृत की वैश्विक विरासत' ऑनलाइन आयोजन सम्पन्न हुआ। इस आयोजन में

बी बी सी लंदन से सेवानिवृत्त वरिष्ठ पत्रकार विजय राणा ने मृदुल कीर्ति से उनके वैदिक ग्रन्थों के पद्यबद्ध अनुवाद पर रोचक प्रश्न पूछे। मृदुल कीर्ति (आस्ट्रेलिया) ने सभी प्रश्नों का बहुत ही सटीक और सारगर्भित उत्तर दिया। 

विजय राणा से संस्कृत यात्रा पर चर्चा में, मृदुल कीर्ति ने अपनी अनुदित पुस्तकों के विषय में बताया कि उन्होंने

सामवेद का पद्यानुवाद, ईशादि नौ उपनिषद हरिगीतिका छंद में हिन्दी अनुवाद, अष्टवक्र गीता - काव्यानुवाद, ईहातीत क्षण, श्रीमद भगवद गीता का ब्रजभाषा में अनुवाद किया है। ईशादि नौ उपनिषद का अनुवाद पुस्तकों का विमोचन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया। 

विजय राणा के वैदिक लोकतंत्र के सवाल पर मृदुल कीर्ति ने बताया कि वैदिक काल में यद्यपि राजा होता था लेकिन मंत्रियों का चयन योग्यता पर, सभी राजकार्य मंत्रियों की सलाह से होते थे। यहाँ तक कि गोधूलि वेला में उठती धूल से 

इस बात का ख्याल रखा जाता था कि धूल के कणों से जन जीवन में असुविधा न हो। उस काल में, पौधे की पत्ती तोड़ने के पहले, पौधे से प्रार्थना की जाती थी। 

वैदिक प्रजातंत्र में महिलाओं की भागीदारी के सवाल का जवाब देते हुए मृदुल कीर्ति ने बताया कि वैदिक काल में, महिलाओं की भागीदारी का उल्लेख बहुत विस्तार से मिलता है। उन दिनों पर्दाप्रथा न थी। महिलाएँ वाद विवाद में भाग लेती थी। यही नहीं वे वाद विवाद में जज की भूमिका भी निभाती थी। यहाँ तक महिला सैनिक भी होती थी और युद्ध में भी भाग लेती थी। 

भारतीय मनसा या बुद्धि में उपनिषदों का क्या स्थान है ? विजय राणा के प्रश्न पर, मृदुल कीर्ति ने उपनिषद का अर्थ समझाते हुए कहा कि उपनिषद शब्द 'उप' यानि निकट और 'निषद' यानि बैठना, इन दो शब्दों का अर्थ है गुरु के पास बैठना। उपनिषदों के मंत्र जीवन का संविधान हैं। जीवन विषयक जिज्ञासाएँ गुरू के पास बैठकर ही शांत हो सकती हैं। भारतीय समाज में गुरू शिष्य की अद्भुत परम्परा युगों युगों से रही है।  

शंकराचार्य के आध्यात्मिक विकास के योगदान प्रश्न पर, मृदुल कीर्ति ने अपने उत्तर में यह कहा कि यदि शंकराचार्य, जिनका जीवनकाल 32 वर्ष रहा, न होते तो हम अपनी आध्यात्मिक विरासत का बहुत कुछ खो चुके होते। 

संस्कृत की आज की स्थिति में सुधार कैसे हो ? इसके जवाब में मृदुल कीर्ति ने बताया माँ बाप को जानने के लिए ग्रन्थों की आवश्यकता नहीं होती है। ज्ञान अज्ञान का ही भाग है। ज्ञान से बोध की यात्रा के विषय में कठोपनिषद के यम और नचिकेता के संवाद का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि बाल संस्कार में परिवेश, परिवार और माँ बाप की विशेष भूमिका होती है। साथ ही मानव के व्यक्तित्व और आध्यात्मिक विकास के लिए संस्कृत का पाठ्यक्रम में होना आवश्यक है। 

वैदिक ग्रंथों के संस्कृत से हिंदी और ब्रजभाषा में पद्यानुवाद की प्रेरणा कहाँ से पाई ? विजय राणा इस प्रश्न के उत्तर में मृदुल कीर्ति ने कहा कि आत्मा रस की भूखी होती है। सामवेद काव्य-रस से भरा है। इस काव्यरस की भूख ने मन में वेद, उपनिषदों के प्रति जिज्ञासा जगा दी। मुझे उपनिषदों में पढ़ने को मिला कि राजा को विद्वान का आदर करना चाहिए। मैंने सामवेद का अनुवाद रसोईघर में लिखा। उसी समय एक जिद मन में खड़ी हो गई थी कि यह रसोईघर से शुरू हुई लेखन यात्रा राष्ट्रपति भवन तक हो। इसी जिद के चलते, बत्तीस बरस की आयु में, मेरी पुस्तक का विमोचन महामहिम राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन द्वारा किया गया था। यह लेखन यात्रा आज भी जारी है। 

इस आयोजन के संयोजक रामा तक्षक (नीदरलैंड्स) के एक प्रश्न के उत्तर में मृदुल कीर्ति ने कहा कि भारत सच में एक आध्यात्मिक राष्ट्र है। हर भारतीय परम सत्ता को मानता है। अपनी बात को पूरा करते हुए उन्होंने बताया कि दुख इस बात का है कि आज सम्पूर्ण विश्व नैतिक प्रलय के दौर में है। साथ ही देवनागरी लिपि के दार्शनिक पक्ष को खुलासा करते हुए कहा कि नागरी लिपि का दार्शनिक पक्ष उसके अक्षरों का आकार, गहन दर्शन और कलात्मकता अपने में समेटे है।

संस्कृत की वैश्विक विरासत आयोजन का आरम्भ, लंदन से इंदु बारोट चारण द्वारा, मृदुल कीर्ति द्वारा लिखित सरस्वती वंदना से किया। उन्होंने मंच का सफल संचालन भी किया। 

इस आयोजन में स्पेन से पूजा अनिल, कनाडा से शैलजा सक्सेना, सूरीनाम से सांद्रा लुटावन, लंदन से दिव्या माथुर व शन्नो अग्रवाल, भारत से डॉ मीरा गौतम, जयशंकर यादव, हरिराम पंसारी, सोनू कुमार पत्रकार व अन्य बहुत से जिज्ञासु जुड़े। 


रामा तक्षक


 साइप्रस में हिंदी का भविष्य 


डा. ममता जैन


साइप्रस भूमध्यसागर का अतिविस्तृत ,प्राकृतिक सुषमासंपन्न द्वीप है। यूरोप का यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है जहां प्रतिवर्ष 2.5 मिलियन से अधिक पर्यटक आते है ।इसे भूमध्य सागर का गहना कहा जाता है, यह ग्रीस के पूर्व में , मिस्र के उत्तर में ,तुर्की के दक्षिण में ,लेबनान सीरिया के पश्चिम में है। इसकी राजधानी और सबसे बड़ा शहर निकोसिया है। यहींं भारतीय दूतावास भी है।यह द्वीप 16 अगस्त 1960 को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र हुआ था  1961 में यह राष्ट्रमंडल का सदस्य बना । 1 मई 2004 के बाद से यूरोपियन संघ का सदस्य है । पुरातत्वविदो का यहां 10,000 वर्ष पूर्व मनुष्यों के निवास करने की प्रमाण मिले हैं, किंवदंती के अनुसार प्रेम की ग्रीक देवी अफोर्डिट यही उत्पन्न हुई थी।

 बहुभाषी ,बहुसांस्कृतिक होने के साथ-साथ साइप्रस बहुत धार्मिक भी है, यहां की आधिकारिक भाषाएं ग्रीक और तुर्की है, 90 के दशक  बहुराष्ट्रीय कंपनियों की स्थापना से हजारों भारतीय इंजीनियरों का यहां आगमन हुआ। यहां से भाषाई क्षेत्र विकसित हुए। हिंदी भाषी भारतीयों के ग्रुप बने , त्योहारों एवं पारस्परिक पारिवारिक सम्मिलन के माध्यम से अपनी हिंदी भाषा बोलचाल में बनी रही । धीरे-धीरे साहित्य के अभिरुचि रखने वालों का भी एक ग्रुप बना और छोटे-छोटे  कार्यक्रमों का आयोजन साहित्य सृजन संस्था, साइप्रस के माध्यम से प्रारंभ हुआ। डॉ ममता जैन की अध्यक्षता में डॉ. मनु सिन्हा ,अनाहिता चौथिया,एलिजाबेथ चारलोमबस, प्रीति भंडारे, शैली गुप्ता आदि द्वारा इस संस्था का गठन हुआ और प्रथम हिंदी पत्रिका अभिव्यक्ति के प्रकाशन का निर्णय लिया गया। इस पत्रिका का उद्देश्य सभी की साहित्यिक प्रतिभा का विकास करना था, हिंदी को बढ़ावा देना था। इस पत्रिका के प्रवेशांक के लिए तत्कालीन उच्चायुक्त डॉ. पवन वर्मा जी का शुभकामना संदेश प्राप्त हुआ, जिसके लिए डॉ. पवन वर्मा जी द्वारा भारत से विशेष रूप से हिंदी का सॉफ्टवेयर मंगाया गया था। उनके द्वारा हिंदी को बहुत प्रोत्साहन मिला, उनके कार्यकाल में हिंदी कार्यक्रमों की बहुलता रही ।कार्यवाहक उच्चायुक्त डॉ मनोहर वर्मा जी का भी पूर्ण सहयोग रहा। Amdocs कंपनी के भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम ने भी हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार को नई ऊंचाईया दी। समय-समय पर आयोजित कार्यक्रमों ने, प्रतियोगिताओं ने साइप्रस में हिंदी भाषा में  का तेजी से विस्तार किया। हिंदी भाषा सीखने के प्रति विदेशियों की भी रुचि बढ़ी ।भाषाओं के आदान-प्रदान हेतु कई केंद्र खुले ।भारतीय दूतावास एवं भारतीयो द्वारा स्थापित सांस्कृतिक संगठनों द्वारा हिंदी सीखने और सिखाने के कई उपक्रम किए गए। समय-समय पर पुस्तक- चर्चा, भाषा ज्ञान प्रतियोगिता में अन्य गतिविधियां  की जाने लगी, साइप्रस में रहने वाले भारतीयों के अतिरिक्त, , साइप्रस के मूल निवासियों द्वारा हिंदी का प्रयोग आपसी संवाद में होने लगा।" नमस्ते"," मैं अच्छी हूं"," आप क्या लेंगे"," भारत में आप किस राज्य से हैं "जैसे वाक्य विदेशियों में परिचय के समय विशेष लोकप्रिय होने लगे। हिंदी फिल्मो, गीतों  अन्य सांस्कृतिक तत्वों के माध्यम से हिंदी भाषा प्राणवंत होने लगी। वहां के सिनेमाघर में भारतीय फिल्मों के शो चलाये जाने लगे, भरतनाट्यम ,कत्थक भारतीय संगीत पर आधारित कार्यक्रम भी मेनहाल में आयोजित किए गये। जिसमें विदेशो की संख्या बहुत बहुतायत में  रहती थी । इसके अतिरिक्त भारतीय टी.वी ,चैनल रेडियो स्टेशन और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध हुए, जहां हिंदी सामग्री प्रसारित हुई।

 भारतीय एंबेसी में भारतीय पर्वों होली का, दीवाली का भी आयोजन हुआ। स्थानीय कवियों ने कवि सम्मेलन  आयोजित किये। अनेक कार्यक्रमों का संचालन  करने का अवसर मुझे मिला । प्रसन्नता का विषय यह है कि दूतावास के सभी अधिकारी इसमें रुचि रखते थे ,मेरे (डा. ममता जैन) काव्य संग्रह "साइप्रस नहीं लुभाता" का लोकार्पण भारतीय दूतावास निकोसिया में ही कार्यवाहक उच्चायुक्त श्री मनोहर वर्मा जी द्वारा किया गया, इस अवसर पर विशेष आमंत्रित प्रख्यात साहित्यकार डॉ. नीलम जैन जी को भी भारत से आमंत्रित किया गया था ।अनेक स्थानीय भारतीय भी वहां उपस्थित थे।  वर्तमान में साइप्रस में भारतीय योग एवं आयुर्वेद के प्रति रुचि बढी है। योग प्रशिक्षक और आयुर्वेद विशेषज्ञ ने हिंदी शब्दावली का प्रयोग अपने शिक्षण ,उपचार प्रक्रियाओं में किया जिससे स्थानीय लोगों में हिंदी सीखने की भावना जागृत हुई है ।भारतीय पर्यटकों एवं व्यापारियों की बढ़ती संख्या के साथ हिंदी भाषा का उपयोग व्यापार और पर्यटन उद्योग में भी बड़ा है होटल ,रेस्टोरेंट, टूर गाइड जैसे व्यवसायिक क्षेत्र में हिंदी अपनी जगह बनाने लगी है। छोटे- छोटे हिंदी पुस्तकालय कॉफी शॉप में शुरू हुए।

 साइप्रस में अब कुछ विश्वविद्यालय एवं स्कूलों में  भारतीय छात्रों को आकर्षित करने के लिए हिंदी भाषा पाठ्यक्रम प्रारंभ करने के प्रयास किया जा रहे हैं। यद्यपि इसमें अभी सफलता नहीं मिली, फिर भी कुछ संस्थानों ने भाषा और साहित्य के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए हिंदी पाठ्यक्रमों को भी सम्मिलित करना प्रारंभ किया है। साइप्रस में  हिंदी साहित्य  में योगदान देने वाले साहित्यकार बहुत कम है क्योंकि यह क्षेत्र हिंदी भाषी जनसंख्या का मुख्य केंद्र नहीं है । यद्यपि कुछ प्रवासी भारतीय साहित्यकार और लेखक, जो हिंदी साहित्य में रुचि रखते हैं, साइप्रस में भी सक्रिय है ।

इन सभी दृष्टिकोण से देखा जाए तो साइप्रस में हिंदी भाषा का भविष्य संभावनाओ से भरा हुआ है। हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के प्रति  बढ़ती रुचि को देखते हुए आने वाले समय में साइप्रस में हिंदी की स्थिति उत्तरोत्तर वृद्धि की ओरअग्रसर होगी ।



बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र में जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा का उपहार

 बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र में जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा का उपहार

आज बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र के तत्वावधान में आरंभ चैरिटेबल फाउंडेशन संस्थान द्वारा छात्र-छात्राओं के बीच स्कूल बैग और स्टेशनरी का वितरण किया गया। इस कार्यक्रम में लगभग 25 से 30 बच्चों को शिक्षा सामग्री प्रदान कर उनका उत्साह बढ़ाया गया।कार्यक्रम में गणमान्य अतिथि:श्रीमती श्यामा गुप्ता जी, साहित्यकार श्रीमती पदमा सक्सेना जी श्री महेश सक्सेना, केंद्र निदेश अनुपमा अनुश्री - अध्यक्ष आरंभ चैरिटेबल फाउंडेश:

आरंभ चैरिटेबल फाउंडेशन की अध्यक्ष, अनुपमा अनुश्री ने बच्चों को बधाई दी और उन्हें शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बच्चों से भविष्य में अच्छी तरह से पढ़ाई करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने का आह्वान किया।


श्रीमती पदमा सक्सेना जी ने बच्चों को शुभकामनाएं दीं और कार्यक्रम का सफल संयोजन किया।

केंद्र निदेशक, श्री महेश सक्सेना ने बच्चों को जीवन में सफल होने के लिए आवश्यक सिद्धांतों पर मार्गदर्शन दिया।

इस कार्यक्रम में बच्चों ने उपहार पाकर खुशी व्यक्त की और कुछ बच्चों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन नृत्य और गायन द्वारा किया।

 जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा सामग्री प्रदान कर उन्हें शिक्षा प्राप्त करने में प्रोत्साहित करना एक महत्वपूर्ण कार्य है। यह कार्यक्रम निश्चित रूप से इन बच्चों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा।


बेटी ही बचायेगी

 बेटी ही बचायेगी


कभी राधा कभी मीरा बनकर, 

प्रेम–पाठ सिखाएगी।

खुद अपयश ले लेगी कैकेयी, 

तुम को राम बनाएगी॥


कहीं कड़कती ज्वाला तो, 

कहीं रणचंडी बन जाएगी।

वही दुर्गा काली रूप धरे, 

ये असुरों से मुक्त कराएगी॥


निज स्तन का पान करा, 

वो त्रिदेव से लाज बचाएगी।

वही बनेगी सति अनुसुया, 

ये महा–काल बन जाएगी॥


सत्यवान के प्राण बनी जो, 

वो सावित्री ही कहलाएगी।

वही रचेगी जौहर भी  रण में, 

फिर पद्मावत रचवाएगी॥


तुलसी 'रामबोला' को बना, 

वो ही मानस लिखवाएगी।

तो भरी सभा में मूरख को भी, 

ये कालीदास बनाएगी॥


शाईनी–ऊषा वही बनेगी, 

इस हिंद का मान बढ़ाएगी।

आसमान का तारा बन कर, 

कल्पना सी खो जाएगी॥


सूने हाथ देख के भाई के, 

वो ही राखी थाल सजाएगी।

एक चुटकी सिंदूर की खातिर, 

ये अपना नाम मिटाएगी॥


गर नहीं हुआ भाई तो वह ही, 

चिता में आग लगाएगी।

जब भी जान फंसी संकट में, 

बेटी ही जान बचाएगी॥


वह नहीं रहेगी अबला अब, 

ये सबला अभी कहाएगी।

मत घबरा बेटी से बिल्कुल, 

अब तो बेटी ही बचाएगी॥

  -अरुण कुमार पाठक


                            

दिशा नयी अब देनी होगी

 

सुमिरन करें गणेश का,

पहल नयी अब करनी होगी ।

नव ऊर्जा से करें कर्म तो,

दिशा नयी अब देनी होगी ।।

चयन करें निज लक्ष्य का,

मार्ग हमें है अपनाना ।

रौंद चलें कांटों को जितने भी ,

हैं   उनको दफ़नाना  ।।

निर्माण करें नूतन भविष्य का,

युग स्वर्णिम बन उभरेगा ।

वर्तमान यदि हम सँवारें,

भविष्य स्वतः ही सँवरेगा  ।। 

हमको ही राहें अपनी जो,

स्वयं सुनिश्चित करनी होगी ।

नव ऊर्जा से करें कर्म तो,

दिशा नयी अब देनी होगी ।।

# स्वरचित/मौलिक/सर्वाधिकार सुरक्षित 

# बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज",

           कोटा (राजस्थान)


कश्मीर की पराद्वैत शैवदर्शन परम्परा : एक दृष्टि


 कश्मीर की पराद्वैत शैवदर्शन परम्परा : एक दृष्टि  

           

              प्रोफेसर डॉ सरोज गुप्ता, सागर (म प्र) 


भारतीय दार्शनिक परम्परा में षट्दर्शन प्रमुख हैं-न्याय,सांख्य,योग वैशैषिक,पूर्व मीमांसा, उत्तर मीमांसा जिसे वेदांत कहते हैं।ये सभी दर्शन वैदिक मान्यता पर विश्वास करते हैं। बौद्ध, जैन, चार्वाक, वैष्णव तथा कुछ आगमिक दर्शन वेद का विरोध करते हैं। कश्मीर शैव दर्शन एक मात्र ऐसा दर्शन है जो वैदिक परम्परा का पोषण करता हुआ अपना स्वतंत्र आगमिक स्वरुप रखता है।

                शैव दर्शन से स्पष्ट है कि इसमें परमेश्वर शिव सृष्टि के आदि कर्ता हैं। संसार का सृजन, पालन, संहार , निग्रह और अनुग्रह शिव ही करते हैं। अपने स्वरूप में वह परा , पश्यन्ती , मध्यमा और बैखरी इन वाक् शक्तियों - चित्शक्ति और आनन्दशक्ति को अपने में समाहित किए हैं। वाक् शक्तियों से शास्त्रों को प्रकट करने के लिए शिव की पांच शक्तियों से शिव के पांच मुखों- ईशान, तत्पुरुष, सद्योजात, वामदेव और अघोर का प्रादुर्भाव हुआ। 'शैवी मुखमिहोच्यते' परमेश्वर के पांच मुखों से बैखरी वाक् शक्ति प्रसारित होकर सभी तंत्रों-द्वैत, द्वैताद्वैत और अद्वैत इन तीन विभागों में प्रकट हुए। इन्हें शैवतंत्र, रुद्रतंत्र, भैरवतंत्र, अद्वैततंत्र, सिद्धातंत्र, नारसिंहकतंत्र, पिंगलाद्यतंत्र आदि नामों से जाना जाता है। कुछ में ज्ञान की प्रधानता है कुछ में क्रिया की प्रधानता है।इन सबका सार त्रिकशास्त्र या मालिनी सिद्धांत  है।

                 पूर्वकाल में शास्त्रों का ज्ञान ऋषियों आचार्यों के मुख में ही शिव शास्त्रों का रहस्य ठहरा रहता था । अपने ज्ञान का संक्रमण करने में ऋषिगण पूर्ण समर्थ होते थे परन्तु कलियुग के प्रभाव से ऋषि मुनि अति दुर्गम स्थलों में चले गये। शिवशास्त्रों का ह्रास हुआ, गुरु शिष्य परम्परा  विनष्ट होने की कगार पर पहुंच गयी।

                 कलियुग के प्रारंभ में इस लुप्तप्राय विद्या या शास्त्रों की पुनर्प्रतिष्ठा के लिए बुन्देलखण्ड के ऋषि दुर्वासा जी जो मंदाकिनी के तट पर चित्रकूट में साधना लीन थे। उनको  श्रीकण्ठनाथ शिव ने आज्ञा दी कि तुम अपने योगबल से शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करो। ऐसे बुन्देलखण्ड के महर्षि वन्दनीय ऋषि दुर्वासा को मैं प्रणाम करती हूं---

     "शिवाप्ति कारणम्,ताप वारणम्,लालितम् हृदि।

     द्वयं गुरोश् चरणरद्वयं,स्फुरतां मम्।१

वन्देऽत्रिनन्दनम्,विश्ववन्दितं करुणार्अर्णवम्।

कोप भट्टारकम् , पूर्ण योग दीक्षा प्रदम् गुरुं।2-

           महर्षि अत्रि अनुसुइया के पुत्र ऋषि दुर्वासा ने अपने तपोबल से तीन मानसिक पुत्रों को उत्पन्न किया। त्र्यंबकनाथ,आमर्दकनाथ और श्रीनाथजी,  जिन्होंने अद्वैत,द्वैत और द्वैताद्वैत शिवशास्त्रों का शुभारंभ किया।

इसप्रकार भारत की सुदीर्घ ज्ञान परंपरा में कश्मीर पराद्वैतशैव दर्शन, समस्त दर्शनों के नंदनवन का कल्पवृक्ष है।दिव्य भारतीय शिवभक्तों की साधना फल है ।साधना प्राप्ति की यह यात्रा वैदिक काल से लेकर कश्मीर शैव दर्शन तक हमें सर्वत्र दिखाई देती है।

          कश्मीर पुण्य धरा है। यहां के स्थान स्थान पर ऋषि मुनिजन साधनारत रहते थे।महामहेश्वर अभिनव गुप्त जी कहते हैं-"स्थाने स्थाने मुनि: अखिलै चक्रिरे,यन्निवासा ---कश्मीरेभ्य: परमथपुरं पूर्ण वृत्तेन तुष्टै"। अर्थात कश्मीर में साक्षात् शिव स्वयं अधिष्ठित थे।सारी वांछित सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए कश्मीर से उपयुक्त स्थान और कहीं नहीं था।शरद के चंद्र जैसी शुभ्र शारदा इस देश के लोगों में घर घर में बसी हुई हैं। वितस्ता नदी के किनारे प्रतिष्ठित महेश्वर के सिद्ध मंदिर में पूजाणं अर्चना करने एवं इस नदी में डुबकी लगाने से सारे पाप ताप कट जाते हैं। कश्मीर वह कल्पलता है जो भारत को तो विभूषित करती ही है साथ ही भोग और मोक्ष भी प्रदान करने वाली है। भारत में कश्मीर, उज्जयिनी और कांची विद्या, कला और संस्कृति के प्रमुख केंद्र रहे हैं। (उत्तर में कश्मीर,मध्यदेश में उज्जयिनी और दक्षिण में कांची )आचार्य शंकराचार्य ने कश्मीर में शारदा पीठ की स्थापना की जिससे इस क्षेत्र को शारदादेश भी कहा जाता है।ईसा की पहली शती से लेकर दशमी शताब्दी तक भारतीय मेधा चरमोत्कर्ष पर रही। शैवागमों , साहित्य शास्त्रों को वेद के समान परम पवित्र माना जाता रहा।शैवाद्वैत दर्शन के प्रतिष्ठापक त्र्यंबक आचार्य यहीं पर रहे।इनकी शिष्य परम्परा में दसवें आचार्य सोमानन्द हुए।सोमानन्द के शिष्य उत्पलदेव ,उत्पलदेव के शिष्य लक्ष्मण गुप्त और लक्ष्मण गुप्त के शिष्य समस्त शास्त्र परम्परा में पारंगत सूर्य के समान देदीप्यमान महामहेश्वर अभिनव गुप्त हुए। इसी प्रकार स्पंदशाखा के आद्य प्रवर्तक वसुगुप्त हुए जिन्होंने महादेव पर्वत की तलाई में तपस्या की तत्पश्चात् भगवान शंकर जी द्वारा स्वप्न में दिए आदेश से उन्हें शिवसूत्र प्राप्त हुए। संगमादित्य, वसुगुप्त,आचार्य क्षेमराज, ललितादित्य, कल्लटाचार्य,भट्टकल्लट आदि आचार्यों की सुदीर्घ परम्परा है।

        सातवीं शताब्दी के आसपास भारत में व्यापारियों आक्रमणकारियों की घुसपैठ प्रारंभ हो चुकी थी। इस्लाम का प्रवेश हो चुका था। ऐसे समय में भी कश्मीर शैव दर्शन पुष्पित पल्लवित होता रहा।

        कश्मीर शैव दर्शन एक मात्र ऐसा दर्शन है जो वैदिक परम्परा का पोषण करता हुआ अपना अलग अस्तित्व रखता है। 

        कश्मीर शैव दर्शन प्रमातृ दर्शन है।यह शाम्भव आदि योगाभ्यासों के द्वारा स्वयं साधक को प्रत्यक्ष रूप में परमेश्वर का दर्शन कराता है ।

         कश्मीर शैव दर्शन प्रत्यक्ष अनुभूतिपरक है ,तर्क की केवल इतनी ही उपयोगिता है कि वह अनुभूति के मार्ग में आने वाली शंकाओं को दूर करने और बोध को दृढ़ करने में सहायता करता है। 

          कश्मीर शैव दर्शन जो वास्तव में स्वयं अपनी ही महिमा से प्रकाशित है । प्रत्यक्ष रूप से जो साक्षात्कार किया गया है उसी वस्तु का वर्णन इसमें किया जाता है। इस दर्शन में साक्षात् देखे हुए वस्तु तत्व का प्रधान रूप से प्रतिपादन किया जाता है।

           कश्मीर शैव दर्शन का यह मत है कि यह संपूर्ण जगत एक तत्व है। यह तत्व परमेश्वर का स्वभाव रूप परिछिन्न संवित् तत्व है। यही संबित तत्व परमेश्वर के स्वतंत्र स्वभाव से ,अपनी महिमा द्वारा अपनी इच्छा से ,अपनी विलास लीला से, द्वैत अद्वैत रूप से, शुद्ध अशुद्ध रूप से, बंध मोक्ष रूप से, वैसे ही अपने को दिखाता है जैसे एक नट अपने विविध रूपों को नाना प्रकार के करतब करते हुए दिखाता है ।

          कश्मीर शैव दर्शन में पराद्वैत रूप परतत्व चिदैकघन है, यह चित् अपरिमित है, स्वतंत्र है,सर्वथा शुद्ध संवित् है। स्वयं अपने प्रकाश से प्रकाशमान शुद्ध चित् प्रकाश रूप है ।यह चित् प्रकाश अपने स्वभाव से विमर्शात्मक है। प्रकाश का नैसर्गिक स्वभाव विमर्श है, प्रतीति है। प्रकाश आभास है और विमर्श इसकी प्रतीति है। दोनों एक हैं इस मूलभूत शुद्ध संवित तत्व की प्रकाशरुपता उसकी ज्ञानात्मकता है और विमर्शरुपता क्रियात्मकता है। वस्तुतः  ज्ञान सर्वदा क्रियात्मक ही हुआ करता है परतत्व की ज्ञानात्मिका प्रकाशरुपता शिवता है और विमर्शात्मिका क्रियारूपता उसी परतत्व की शक्तियां है ।यह परतत्व शिवशक्त्त्यैक घन है। तात्पर्य है कि जो तत्व अपने अंतर्मुखी रूप में शिव रूप है वही अपने बाह्य प्रकाशोन्मुख अवस्था में शक्ति रूप होता है । अर्थात इन दोनों से परे वही तत्व है जो अपने स्वरूप में शिव शक्ति रूप है। शिव शिवशक्त्त्यैक  घन है इनका नैसर्गिक गुण आनंद है जिसे चिदानंदमय कहते हैं। प्रकाश का स्वभाव विमर्श है और विमर्श प्रवणता आनंदमयता है।

        जगतगुरु के रुप में प्रतिष्ठित भारत की ज्ञान परम्परा आज भी अक्षुण्ण है। सहस्त्राब्दियां बीत जाती हैं परन्तु भारतीय मेधा , ज्ञान विज्ञान का परम प्रकर्ष ,कालजयी रचनाओं की अनुगूंज, ज्ञान की चिंगारियां हमारे हृदयों में आज भी पुनीत भावना जागृत रखतीं हैं। कश्मीर शैव दर्शन मानवता और मानव जाति की शांति के लिए प्रेरणास्पद है।

        कश्मीर शैव दर्शन कुल,क्रम और  त्रिक् की सभी पद्धतियों के साथ ज्ञान -विज्ञान भेद, अनुपात प्रक्रिया, शाम्भोपाय,शाक्तोपाय,आणवोपाय,वर्णयोग,

कालाध्वा आदि विषयों का विस्तार से विवेचन करता है।मालिनीविजय तंत्र इस दर्शन का उपजीव्य ग्रंथ है। त्रिक् शैव दर्शन हमारे मानस तंतुओं को झकझोर कर दिव्यता प्रदान करते हैं।धर्म,जाति,वर्ग बंधनों से मुक्त यह दर्शन प्रत्येक भारतीय के लिए स्पृहणीय है।


प्रोफेसर सरोज गुप्ता

अध्यक्ष हिन्दी विभाग पं दीनदयाल उपाध्याय शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय सागर म प्र पिनकोड ४७०००१


जीवन में दुख का टेंडर भरा है तो सुख कैसे मिलेगा

 जीवन में दुख का टेंडर भरा है तो सुख कैसे मिलेगा               

निर्मल जैन

       वृक्ष किसी को अपनी छांव देने से मना नहीं करते, सूरज भी अपना प्रकाश फैलाने में कोई भेद-भाव नहीं करता है और न ही बादल के बरसने की उदारता में स्थान से कोई फर्क पड़ता है । ऋतु आने पर डाल  कोई भी हो कोयल का स्वर वही रहता है । फिर बुद्धि-विवेक संपन्न हमारा मन ही ऐसा क्यों है जो अनुकूलता में प्रसन्नता की बंसी बजाता है किंतु गम के पलों में खुशी की सरगम बजाना भूल जाता है । दुख को बदलने या मिटाने की कोशिश करना एक असफल प्रयास है । लेकिन हर गम में भी सरगम के स्वर खोज लेना यह एक सुखद समाधान है । संसार का एक भी दुख ऐसा नहीं है जिसमें सुख न छुपा हो । वास्तव में यह सुख या दुख, मानसिक ही है । दुख-सुख हमारे भावों में बसते हैं। कोई करोड़ों की संपत्ति होने पर भी हाय-हाय करता रहता है और दूसरा अपने सीमित साधनों में भी संतुष्ट और सुखी रहता है । सुखी अनुभव करने के लिए महत्व धन- वैभव का नहीं, बल्कि हमारे विचारों का है। जो जहां है जैसा है अगर वहां सुखी नहीं है तो वह फिर कहीं भी सुखी नहीं हो सकता है, और जो जहां है जैसा है अगर वहां सुखी है तो वह कहीं भी दुख का अनुभव नहीं कर सकता । इसलिए दुख का लोह-चुंबक बनकर नहीं जीना, खुश रहने की आदत डालनी है । सब दिन यदि एक समान हों तो जीवन में निराशा का साम्राज्य छा जाए। सुख और दुख दोनों मिलकर ही जीवन को समरस बनाते हैं।

      खुशी और गम एक दूसरे के समानांतर चलते हैं जब एक शांत होता है तो दूसरा भी शिथिल पड़ जाता है । अपने दुख की चारदीवारी में घुट-घुट कर गलने की बजाय औरों की खुशी में अपनी खुशी खोजने का जादू सीखना है । उदास और उखड़ा-उखड़ा व्यक्तित्व आसपास में उदासी का कोहरा भर देता है और खुशी का सूरज चाहते हुए भी मुस्कान की किरणें नहीं बिखेर सकता । हमारे मन की एक और विचित्रता है कि हम दुख के लिए जितना चिंतित और उत्सुक रहते हैं उतना सुख के लिए उत्कंठित नहीं । एक बार का अपमान मन को जिंदगी भर याद रहता है किंतु सौ बार जो सम्मान मिला उसे भुला देता है । मन का ‘मैग्नेट’ हमेशा दुख को आकर्षित करता है । क्या  इसलिए कि हमें दुख में रस है । कभी अपने आप से एक प्रश्न करके देखें की रोशनी की मौजूदगी में जिस उत्साह से चले थे क्या उतने ही उल्लास से अंधेरी डगर पर चल पाएंगे ? हम सभी पर धर्म सत्ता व कर्म सत्ता का शासन चलता है । इसलिए जीवन में सुख और दुख दोनों मिलते ही रहते हैं । हमने जिस चीज का टेंडर भरा है वही तो हमारे लिए खुलेगा और मिलेगा । जिस सुख की तलाश में हम अथक रूप से भागे-फिरते हैं, उसे पा जाने के बाद भी शांति और सुख कहाँ ? एक नई चिंता शुरू हो जाती है कि वह सुख बना रहे, बचा रहे । फिर उसे बचाने और बनाए रखने में जो दुख उपजता है, वह बढ़ता ही जाता है। महत्व पूर्ण यह भी है कि दुख भी बड़े काम की चीज है । कई बार तो दुखों के ये झंझावात ही महानता और जीवन में विशेष उपलब्धियों का कारण बनते हैं । दुख  हमें धर्म की, प्रभु की याद दिलाता है । धर्म की शरण में जाते ही सद्बुद्धि का दरवाजा खुलता है और आनंद की  स्वर लहरी गुंजायमान होने लगती है ।


"गुरु पूर्णिमा पर विशेष " " सद्गुण सबसे बड़ा खजाना"

 " सद्गुण सबसे बड़ा खजाना"

      " 

"गुरु गोविंद दोऊ खड़े

 काके लागू पाय। 

बलिहारी गुरु आपकी 

गोविंद दियो बताए ।।"

"गुरु व्यास जी ने चारों वेदों की रचना की थी !🙏🙏

वेदव्यास जी का जन्मदिन भी आषाढ़ की पूर्णिमा को होता है। इस कारण इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा ,व्यास पूर्णिमा व  मालवा में "गाकर पूर्णिमा ," " भैरव पूर्णिमा "के नाम से भी जाना जाता है !🙏🙏

अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं गुरुवर के आशीर्वाद ।🙏

"गुरुवर होते हैं सबके महान 

जो देते हैं सबको ज्ञान 

आओ गुरु पूर्णिमा पर करें

 सभी गुरुजनों को प्रणाम🙏 बाल जीवन संवारता है प्रथम गुरु "मां "🙏

सदाबहार ज्ञान सा गुरु" पिता"🙏

 प्रकाश पुंज का आधार पुंज" "गुरु"🙏

 गुरु है मेरा अनमोल ,जो सिखाते हैं ,आज का ज्ञान "बच्चे "🙏

नफरत पर प्यार का पाठ, सिखाया है गुरु ने "दोस्त"🙏

अ ज्ञान को मिटाकर ज्ञान का दीपक जलाया है। कभी प्यार से, कभी डांट से, जीवन खुशहाल बनाया है "जीवन साथी"🙏

 आओ इस गुरु पूर्णिमा पर करें अपने जीवन के ज्ञान के भंडार सभी गुरुजनों को करे प्रणाम 🙏गुरु पूर्णिमा की बहुत-बहुत शुभकामना बधाई🙏

 धन्यवाद

डा. श्रीमती राजकुमारी वी. अग्रवाल शुजालपुर मंडी मध्य प्रदेश


आसमान सोया है

 आसमान सोया है


हे चहुँओर पसरी मदमत्त चाँदनी !

इस क़दर मत इठलाओ,

अरी लरजती लहरो !

इतनी गर्जना मत करो,

ओ कल-कल करती नदियो !

अपने छपाकों को शांत कर लो,

अरे उस छोर पर घुमड़ते मेघो !

अपनी विद्युल्लता को कहीं छिपा लो,

हे निशा से अठखेलियाँ करते राकापति !

अपनी इस प्रणय-लीला को रोक लो, 

अरे अँधेरों को लजाते जुगनुओ !

कुछ देर कहीं और बसेरा कर लो, 

ओ नीरवता की लहरियों के कम्पनो !

कुछ देर अपने ध्वनि-आवर्त रोक लो,

हे स्वाति नक्षत्र की आस लगाये पपीहे !

अपनी पलकें पलभर को झुका लो,

देखो सदियों बाद वो आसमान सोया है !

वो निराश्रित-सा आसमान सोया है !!


योगेन्द्र कुमार


नारी

या देवी सर्वभूतेषु , शक्ति रूपेण संस्थिता ,

नमस्तस्यै नमस्तस्यै,नमस्तस्यै नमो नमः।।


सारे संसार का सार है नारी,                                 प्रकृति के हर प्राणी का अभिमान है नारी,


मंदिर में बजता शंखनाद है नारी ,                            इंसान के सर्वस्व और संस्कारों की पहचान है नारी,


कभी दुर्गा तो कभी काली है नारी,

कभी करुणा तो कभी अन्नपूर्णा है नारी,


जब पिता थककर घर आए,

तो माँ बन मातृत्व का अहसास दिलाती बेटी का रूप है नारी,


अपने भाई की खुशियों की हर पल दुआ करती,

ऐसी भाई की कलाई पर बँधा रक्षा-सूत्र, बहन का रूप है नारी,


जब बात पति के प्राणों पर आ जाए, 

तो यम के सामने अटल खड़ी सती का रूप है नारी,

 

अपने बच्चों के लिए जो मौत से भी लड़ जाए,

ऐसी महान वीरांगना माँ का रूप है नारी,


आज समाज के हर क्षेत्र में सक्रिय है नारी,

पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है नारी,

 

इस धरा की तो क्या बात करूँ मैं , 

अंतरिक्ष में भी परचम लहरा दिया जिसने, इस धरती पर ऐसा चमत्कार है नारी ।


भगवान भी जिसके आगे नतमस्तक हो जाएँ,

ईश्वर की ऐसी अप्रतिम रचना है नारी ।।


धन्यवाद ,

शीतल गुप्ता

देश में बढ़ रही है भीख मांगने वालों की संख्या


 देश में बढ़ रही है भीख मांगने वालों की संख्या

2026 तक भिक्षा वृति मुक्त भारत बनाने में खड़ी हैं कठोर चुनौतियां

 हेमलता म्हस्के

अपने देश में अब भीख मांगने पर रोक लगेगी क्योंकि उनके संरक्षण और पुनर्वास के लिए कोशिश की जा रही है। देश में भीख मांगने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है और इसे खत्म करने की दिशा में अभी तक गंभीरता से कोई कोशिश नहीं की जाती है हालांकि भिक्षा वृति  के खिलाफ कुछ राज्यों में कानून भी बने हैं लेकिन वे  इतने कारगर नहीं हैं, जिससे इस पर पूरी तरह से रोक लग सके। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भिखारियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को जो सिफारिशें भेजी हैं, उनमें भिक्षा वृति में लगे लोगों की स्थिति में सुधार और उनके पुनर्वास की शुरुआत हो सकती है। 
अभी हाल ही में आयोग के महासचिव भरत लाल ने केंद्र और राज्य सरकारों से जल्द से जल्द सिफारिश पर अमल करने और अगले दो महीने में इस पर की गई समस्त कार्रवाई की रिपोर्ट पेश करने को कहा है। आयोग ने भिखारियों को भी बराबर का हक दिए जाने की वकालत करते हुए कहा है कि भिक्षा में लगे लोगों की मौजूदगी हाशिए पर पड़े और कमजोर समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों को दर्शाती हैं । भिक्षा  वृति का कारण सिर्फ गरीबी नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक और आर्थिक समस्या है जहां शिक्षा और रोजगार से वंचित लोग अपनी आजीविका के लिए भीख मांगने को  मजबूर होते हैं। यह समस्या खासकर शहरों में अधिक दिखाई पड़ती है । हर बड़े और छोटे शहरों में धार्मिक और पर्यटन स्थलों पर भीख मांगने वालों में ज्यादातर महिलाएं, बच्चे, किन्नर, बुजुर्ग और दिव्यांग होते हैं । अपने देश में भीख मांगना  एक अहम सामाजिक समस्या रही है जिसके पीछे  गरीबी ,शिक्षा की कमी, बेरोजगारी , सामाजिक असमानता और दिव्यांगता आदि वजहें हैं। 
 2011 की जनगणना के अनुसार में जहां देश में करीब चार लाख से अधिक लोग भिक्षा वृति से जुड़े हुए थे । वहीं मौजूदा समय में उनकी संख्या बढ़कर करीब 7 लाख पहुंचने का अनुमान है। भिखारियों की संख्या बढ़ने का यह अनुमान केंद्रीय  सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से शहरों को  भिक्षा वृति मुक्त बनाने को लेकर शुरू किए गए अभियान के दौरान लगा है । शहरों में इस अभियान को शुरू करने से पहले इनका सर्वे कराया गया था हालांकि यह योजना मौजूदा समय में करीब 30 शहरों में ही चलाई जा रही है जिसका लक्ष्य 2026  तक  भिक्षा वृति  मुक्त भारत बनाने का है। लेकिन इसे लेकर राज्यों का जो रवैया है उनमें इस लक्ष्य को हासिल कर पाना एक बड़ी चुनौती है।
भारत के राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने भीख मांगने में लगे गरीब, अशिक्षित बच्चों, महिलाओं और दिव्यांगजनों के संरक्षण और पुनर्वास के लिए केंद्र और राज्य सरकारों तथा संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासन द्वारा कार्रवाई के लिए आठ प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने को कहा है। सिफारिश के मुताबिक केंद्रीय
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय  को  नगर निगमों और सरकारी एजेंसियों की सहायता से निर्धारित मापदंडों पर पहचाने गए भीख मांगने में लगे लोगों का एक केंद्रीकृत डेटाबेस बनाने की सलाह दी गई है। आयोग ने
भीख मांगने में लगे  लोगों के संरक्षण और पुनर्वास पर एक राष्ट्रीय नीति का मसौदा तैयार करने की सिफारिश की है, ताकि लक्षित वित्तीय सहायता, व्यावसायिक प्रशिक्षण, गरीबी उन्मूलन और निरंतर निगरानी और पर्यवेक्षण के साथ रोजगार के अवसरों सहित उनके लिए कल्याणकारी योजनाएं  बनाने और उन्हें कार्यान्वित किया जा सके। आयोग ने 
यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा है कि सामाजिक सुरक्षा हेतु डिजिटल और प्रिंट मीडिया दोनों में जागरूकता अभियान शुरू कर संगठित/जबरन भीख मांगने की समस्या को सभी रूपों में समाप्त किया जा सके।
 आयोग  ने केंद्र और राज्य सरकारों से भीख मांगने वाले लोगों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने के उद्देश्य से रणनीति विकसित करने के लिए कहा है। आयोग ने चिंता जाहिर की है कि  सरकारों द्वारा कई पहलों और कल्याणकारी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के बावजूद देश भर में भीख मांगने की समस्या अभी तक बनी हुई है। ।
आयोग ने कहा है कि संगठित समूह अक्सर कमजोर बच्चों को भीख मांगने के लिए प्रेरित करते हैं, ताकि इन समूहों के नेता समृद्ध हो सकें। कुछ मामलों में, भीख मांगने में लगे लोगों खासकर बच्चों का अपहरण तक कर लिया जाता है और उन्हें भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे उनके अपहरणकर्ताओं को काफी धन प्राप्‍त होता है। जबरन भीख मांगने के किसी भी रैकेट पर अंकुश लगाने के लिए मानव दुर्व्‍यापार विरोधी कानून बनाने के लिए एक समाजशास्त्रीय और आर्थिक प्रभाव मूल्यांकन करना जरूरी है। इस कानून में भीख मांगने को मानव दुर्व्‍यापार के मूल कारणों में से एक के रूप में पहचाना जाना चाहिए और अपराधियों के खिलाफ दंडात्मक अपराध शामिल किए जाने चाहिए।
 आयोग ने भीख मांगने की प्रथा से जुड़े मुद्दों का समाधान करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण को अपनाने की जरूरत बताई है। इस समस्या के समग्र समाधान के लिए सामाजिक कल्याण हस्तक्षेप, बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच, उनके अधिकारों की रक्षा और उन्हें समाज में फिर से शामिल करने में मदद करने के लिए मजबूत कानूनी ढाँचा और प्रवर्तन करने की जरूरत बताई है। आयोग ने कहा है कि भीख मांगने के कारण को सामने लाने के लिए  भिखारियों के सर्वेक्षण, पहचान, मानचित्रण और डेटा बैंक तैयार करना, भिक्षावृत्ति में लगे लोगों का पुनर्वास, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, कानूनी और नीतिगत ढाँचा, गैर सरकारी संगठनों, नागरिक समाज संगठनों, निजी क्षेत्र, धर्मार्थ ट्रस्टों आदि के साथ सहयोग, वित्तीय सेवाओं तक पहुँच, जागरूकता पैदा करना, संवेदीकरण और निगरानी शामिल हैं।
 भीख मांगने में लगे लोगों की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्थिति के साथ एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने के लिए नगर निगमों या सरकारी एजेंसियों की मदद से विस्तृत जानकारी एकत्र करने के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय  द्वारा एक मानकीकृत सर्वेक्षण प्रारूप विकसित किया जाना चाहिए, जिसे सभी हितधारकों के लिए सुलभ एक ऑनलाइन पोर्टल/डैशबोर्ड पर नियमित रूप से अपडेट किया जाना चाहिए;
आयोग ने कहा है कि  यह सुनिश्चित करें कि भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों की पहचान प्रक्रिया पूरी होने के बाद, उन्हें शहरों या जिलों में स्थित आश्रय गृहों में लाया जाए, और उन्हें निवासियों के रूप में पंजीकृत किया जाए तथा राज्यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों या अधिकृत एजेंसियों में संबंधित विभागों/नगरपालिकाओं/ग्राम पंचायतों द्वारा पहचान पत्र जारी किए जाएं;
 आश्रय गृह उन्हें उचित आवास और भोजन की सुविधा, कपड़े, स्वास्थ्य सेवा, आधार कार्ड, राशन कार्ड और बैंक खाते खोलने में सहायता सहित अन्य जरूरी सेवाएं मुहैया करे। जरूरत पड़े तो अधिकारी भिखारियों के लिए शिविर आयोजित कर उन्हें जानकारी दे।
 भिक्षावृत्ति को कम करने के लिए जगह जगह जागरूकता सृजन शिविर आयोजित करें और विभिन्न सरकारी कल्याणकारी योजनाओं और स्वरोजगार सहित रोजगार के अवसरों के बारे में जानकारी प्रसारित करें।
लाभार्थियों को शिक्षित, संवेदनशील बनाया जाना चाहिए तथा उन्हें केंद्र, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र  की  विभिन्न योजनाओं/सेवाओं जैसे खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, आवास, वित्तीय सुरक्षा, पेयजल, रसोई गैस, बिजली आदि से संबंधित लाभ प्राप्त करने के लिए जरूरी सहायता की जानी चाहिए। बच्चों, महिलाओं, वृद्धजनों, दिव्‍यांगजनों  तथा भीख मांगने में शामिल मादक द्रव्यों के सेवन के आदी लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए। साथ ही यह
 सुनिश्चित करें कि आश्रय गृह भीख मांगने में शामिल लोगों के पुनर्वास की प्रक्रिया का समर्थन करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य परामर्श, नशामुक्ति और पुनर्वास सेवाएं प्रदान करें। आश्रय गृह
के निवासियों को चिकित्सा सहायता और बीमा के लिए सरकारी योजनाओं से जोड़ा जाना चाहिए।खासकर
 सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 ए के तहत अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत सरकारी या निजी स्कूलों में भीख मांगने में शामिल 6-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को पंजीकृत और नामांकित किया जाए। आश्रय गृहों के निवासियों को उनकी योग्यता, क्षमता और वरीयता के अनुसार सरकारी मान्यता प्राप्त व्यावसायिक केंद्रों के सहयोग से कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे सम्मान का जीवन जी सकें। आश्रय गृह ऐसी भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए कॉर्पोरेट से भी संपर्क कर सकते हैं।
 गैर सरकारी संगठन/नागरिक समाज समूह आश्रय गृहों के निवासियों को स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बनाने और स्वरोजगार के लिए ऋण प्राप्त करने में सहायता कर सकते है।  सरकार इन निवासियों/एसएचजी को ऋण देने के लिए बैंकों को प्रोत्साहन या सब्सिडी प्रदान करने पर भी विचार कर सकती है।
राज्य और नगर निगम के अधिकारी भीख मांगने में लगे लोगों को उनके अधिकारों और हकों के बारे में जागरूक करने के लिए एक जन-संपर्क और मोबिलाइजेशन तंत्र स्थापित करें ताकि उनका शोषण रोका जा सके
राज्य/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन डिजिटल और प्रिंट मीडिया दोनों में अभियान शुरू करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संगठित/जबरन भीख मांगने की सामाजिक बुराई को सभी रूपों में समाप्त किया जा सके। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, गैर सरकारी संगठनों/सीएसओ और मानव अधिकार संरक्षकों सहित विभिन्न हितधारकों को शामिल करके भीख मांगने के खिलाफ़ सेल (संगठित और असंगठित) शुरू किए जा सकते हैं।
अपने देश में 20 11 में हुई जनगणना के अनुसार भारत में 2,21 673 पुरुष और 1,91,997 महिलाओं सहित 4,13,670 भिखारी हैं। इनमें पश्चिम बंगाल में  सबसे अधिक भिखारी 81,244, इसके बाद उत्तर प्रदेश में 65,835, आंध्र में 30218, बिहार में 29,723  मध्य प्रदेश में 28695, राजस्थान में 25,853 भिखारी हैं। दिल्ली में 2,187 और चंडीगढ़ में 121 और लक्षद्वीप में केवल दो भिखारी हैं। दादरा नगर हवेली में 19, दमन दीव में 22 और अंडमान निकोबार में 56 भिखारी हैं।

यमुना की विलीनता: प्रेम की पराकाष्ठा

 यमुना की विलीनता: प्रेम की पराकाष्ठा 


हां! यही प्रेम है ....... यमुना की विलीनता..

गंगा की गाथाओं में यमुना की कथा खो सी गयी , उसकी त्याग तपस्या में यमुना की व्यथा खो सी गयी ।
गंगा की महानता और विशालता में यमुना की प्रेम कहानी गुम हुई ।
 सबके विष का पान करके , सबके प्रेम की पीड़ा को लेकर के उज्ज्वला से श्यामवर्ण  होकर , श्याम के प्रेम में डूबकर , श्याम के प्रेम को देखकर ,खोकर ,आत्मसात कर श्याम की हो गयी । श्याम उसके तट पर कन्हैया हो जाता है। प्रेम करता है, रास रचाता है, प्रेम को उसकी पराकाष्ठा तक ले जाता है और  इस प्रेम को देख वो श्याम मय होती है, उसकी हो जाती है, उसके रंग में रंग जाती है। जैसे जैसे रास बढ़ता है वो उतनी ही प्रेम मय होती जाती है। प्रेम से प्रेम उपजता है ईर्ष्या नहीं, यही है प्रेम की पराकाष्ठा।
      वो शिव की पीड़ा हरती है ( सती के अग्नि प्रवेश के बाद विरही शिव को विष्णु ने यमुना में स्नान करने की सलाह दी और तत्पश्चात् वो शांत हुए), वो राधा के प्रेम की साक्षी बनती है और विरह की सहभागिनी बनती है ।
  कृष्ण जन्म की साक्षी है, वसुदेव के यमुना पार करते समय कृष्ण के चरण स्पर्श को सब सीमायें तोड़ देना चाहती है, जब प्रेम सीमायें तोड़ता है तो प्रेमी को स्वयं चरण देने पड़ते हैं स्पर्श को, वाह - क्या प्रेम है ! वो प्रेम ही क्या जो सीमायें न तोड़ दे, वो प्रेम ही क्या जो प्रेम की असीमता को स्वीकार न कर ले ,जो ईश्वर को भी विवश न कर दे ! 
   खुसरो बाज़ी प्रेम की 
  खेलूँ पी के संग 
जीत गयी तो पिया मिले 
हारूँ पी के संग 
                       फिर भी शांत चुपचाप प्रेममयी बहती रही,  प्रेम की पीड़ा सहती रही, बहती रही .......

      विश्व प्रसिद्ध ताजमहल भी सारे विश्व में प्रेम प्रतीक के रूप में विख्यात हो गया शायद यमुना के किनारे निर्मित हुआ और यमुना में व्याप्त प्रेम की धार उसकी सहायक हो गयी और वो मोहब्बत की निशानी बन गया । यमुना के जल में समाया हुआ राधा कृष्ण का प्रेम ही था जिसने अपने किनारे निर्मित ताजमहल को अपना प्रेम तत्त्व प्रदान कर दिया। पूर्णिमा की रात जो प्रेम रस यमुना के जल में घुला उसने हो तो चांदनी रातों में ताजमहल को प्रेम की कान्ति से चमका दिया। 
प्रेम के जल से भरी पूरी यमुना आगे बढ़ी। बढ़ते बढ़ते गंगा के निकट आने लगी। वो गंगा जो उसके कृष्ण हरि  के चरण कमलों का स्पर्श कर उपजी थी। वो यमुना जो हरि के जन्म को जानकर उनके चरण स्पर्श को व्यग्रता के साथ उमड़ पड़ी। वही यमुना जब गंगा के निकट पहुंची तो विष्णुपाद से उत्पन्न गंगा की ओर भी उसे व्यग्रता से उमड़ी। भूल गई सबकुछ। बस उसे दिख रहे थे अपने हरि के चरण स्पर्श का स्पंदन जो गंगा की लहरों में लहरा था। भूल गई अपनी पहचान को, भूल गई अपने अस्तित्व को और समा गई जाकर अपने छूटे हुए प्रेमी के चरणों से उपजी गंगा के अस्तित्व में। ज्यों समा गई हो अपने चाहने वाले की बांहों में। ज्यों खो गई हो अपने स्वामी के अस्तित्व में। 
 संगम में प्रेम की पूर्णता की परिणति होती है जब वो स्वयं को खो देती है भूल जाती है अपनी पहचान भी संगम में विलीन होकर। आगे बहती है सिर्फ़ गंगा , गंगा और गंगा!
                       और गंगा की धारा में यमुना की धारा लुप्त हो जाती है ! आह ! गंगा तुम्हारी महानता में सरस्वती को अदृश्य होना पड़ा और यमुना को विलीन !
श्याम की प्रिया, प्रेम  साक्षिणी, विष्णु की गंगा को अपना सर्वस्व दान कर चल देती शिव की नगरी काशी की ओर कभी जिसका संताप हरा था।


       #विनीता मिश्रा
          लखनऊ 

नहीं में ठीक हूँ

नहीं में ठीक हूँ 


अपने छोटे से बच्चे के साथ रितु ट्रक में से उतरती है। वह वे अपने पति का जॉब भोपाल में लगने के कारण भोपाल किराए के मकान में शिफ्ट होती है। गृहस्थी का समान उतारा जा रहा था। तभी एक छोटा-सा दुबला, पतला-सा लड़का। उसकी मदद की मंशा से कहता है। आंटी जी आपके बच्चे को मैं गोदी में ले लेता हूं। आप सामान उतारने में मदद करवा दो।

उसका चेहरा साधारण-सा था। पुराने से कपड़े, पतला दुबला-सा लड़का पर बातों में मिठास रितु को प्रभावित कर देती है।


"बेटा जी! आप मेरे बेटे को लेकर बैठ जाओ। मैं जरा देर से फिर बेटे को लेती हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद सहयोग के लिए।"


सारा सामान उतारने के बाद रितु ने उस लड़के को मदद के लिए धन्यवाद के साथ आइसक्रीम खिलाती है।


वह लड़का,..पास में ही बने किराए के तीन कमरो रहता है।


"बेटे आपका नाम क्या है।"

रितु ने बड़े प्यार से पूछा।


"आंटी जी मेरा नाम तो मां-बाप ने विजय रखा है! पर, यहाँ सब छोटू कहते हैं।"


ठीक है। छोटू,अब आप आराम करो! मैं सामान जमाती हूं। 


छोटू! उठकर अपने घर में जाता है और झाड़ू निकलता है। ताऊ-ताई और उसके तीनों बच्चे आ जाते हैं। उन सब को नाश्ता देने के बाद, फिर बहुत सारे बर्तन गैलरी ला के रखता है। रितु के कमरे से उनके घर का आना-जाना सब काम दिखता है,क्योंकि दोनों किराएदार के बीच में एक ही गैलरी थी। जहाँ पर छोटू बर्तन मांज रहा था। पास में लेट-बाथ था। फिर चाचा के कपड़े बाथरूम में रखे! पानी रखकरके, छोटू चला जाता है। ताऊ नहा कर निकलते हैं। सबके कपड़े धोता है और डालता है। फिर एक-एक करके सभी लोग छोटू की पुकार करने लगते हैं। किसी को कपड़े, किसी को खाने की दरकार थी, किसी का बैग जमा दें और जरा-सी भी देरी होने पर छोटू की कुटाई हो जाती है। जरा एक छोटू और कई आवाज़, उसे तुरंत ही काम करने को कहते है। जब कभी सब घर से बाहर जाते है। तब छोटू की जिंदगी में कुछ सुकून आता है। उस पर भी जाने से पहले ताई काम की लिस्ट थमा करके जाती है। अब यह रोज की दिनचर्या छोटू की रितु देखती-रहती थी। बेचारा दिन-भर काम में लगा रहता है। सुबह पांच बजे पानी भरने के लिए उठता और पानी के बर्तनों की लाइन लगाकर बैठ जाता है।


एक दिन रितु सोच रही थी:,.. मेरे मकान की शिफ्टिंग के समय यदि यह सब लोग होते हैं, तो शायद मैं छोटू से बात भी नहीं कर पाती है! क्योंकि पूरे समय में, जब से मैं आई हूँ। सुबह पाँच बजे से रात के बारह तक! छोटू की पुकार निरंतर चलती रहती है। बेचारा छोटा-सा बच्चा, इन सबको तरस नहीं आती। उसे मासूम-से बच्चे पर कितना अत्याचार करते हैं।


"तभी छोटू की रोने की आवाज़ आती है। ताऊ का बड़ा लड़का उसे बेल्ट से मार रहा था। मेरी रोटी में से तूने रोटी खाई।"

लड़का कहते हुए मार रहा था।


"नहीं भाई। मैं नहीं खाई। आज तो रात की रोटी भी नहीं बची थी, मैंने तो सुबह से खाना ही नहीं खाया! क्योंकि ताई और आप कहते हो:,... रात की रोटी खाना। मुझे आज सुबह से नाश्ता खाने को भी नहीं मिला है। मैंने कुछ नहीं खाया भाई।"

छोटू रोते-रोते सिसकते हुए बोल रहा था। 


"क्या? तेरे पापा ने यहाँ पर खाना रख दिया है। तू फ्री खाएगा।"


लड़का आँखे लाला करके बोला। 


वह करुण आवाज़!,...रितु के दिल दिहलाने बाली थी। 


रितु मन मार कर अपनो घर के काम करने लगने कोशिश करती हैं।

पर! आपने को रोक नहीं पाती है।


"बड़ी हिम्मत करके रितु बोलती है। इस मासूम को बच्चे पर इतने अत्याचार मत करो। मत मारो बस, अब बस भी करो ना।"


रितु के कहने पर भी वह लड़का कुछ देर रुक तो जाता है।

 

पर! रितु जैसे ही घर में अंदर आती है। उसे लड़के की आवाज़ रितु के कानों में आती है।


 “हमारे घर के मामले में वह कौन होती है! बोलने वाली,..अपना घर देखें।”


लड़का कहते हुए, दरवाज़ा बंद कर बाहर चला जाता है।


रितु मन-मन सोचती है। कम से कम अट्ठारह साल का यह लड़का होगा और इतना असभ्य इतना क्रूर कैसे संस्कार है। इस घर के लोगों के।


फिर कुछ देर बाद ताई और उसके दोनों बच्चे उसके साथ आते हैं।


छोटू दर्द से कराहते हुए ज़मीन पर लौट लग रहा था।


"क्यों रे छोटू,...तुझे क्या हुआ क्यों पड़ा हुआ है?"


ताई अपने कर्कश आवाज़ में छोटू पूछती है।


छोटू अपनी पूरी व्यथा बताता है।


"अरे! माँ वह रोटी मैं खाकर चली गई थी।" 


तभी बीच में सबसे छोटी लड़की बोल उठी।


"चल छोटू बात मत बढ़ा हाथ-मुंह धोनकर काम पर लग जा। जो होना था, हो गाया! ज़्यादा रोना-धाना मत कर और किसी से कुछ कहना मत।"


ताई डाटते हुए बोली। 


छोटू उठा। रोते-सिसकते हुए काम करता रहा।


रितु दो दिनों के लिए अपने मायके आई और फिर घर आना पर दहीबड़ा बनाया है।


"छोटू इधर आओ मेरे पास आओ।" 


छोटू को गैलरी में काम करता देखकर, अकेला देखकर! रितु बहुत धीरे-से बुलाती है।


छोटू का चेहरा एकदम सूखा हुआ! छुहारे-सा दिख रहा था और हाथ-पांवों में मानो जान ना हो। रितु ने प्यार से बिठाया।


"लो छोटू! यह दहीबडे़ खा के बताओ,तो मैं कैसे बनाये हैं?

खालो ना।" 


रितु ने बड़े प्यार से कहाँ। 


पहले रितु देखती है। वह सकुचाते हुए दो निवाले ही खा पाया था कि ताई छोटी लड़की बिना इज्ज़त के आनन-फानन में अंदर आ जाती हैं। छोटू को वह घूरती है। छोटू खाने का बर्तन रखकर चला जाता है। 


कुछ देर बाद छोटू के रोने की आवाज़ आती है।


रितु रात को अपने बच्चे को लेकर गैलरी में घूम रही थी कि उसकी नज़र छोटू पर गई। वह ताऊ के लोहे के पलंग के नीचे एक टाट को बिछाकर एक फटा चद्दर ओढ़ कर लेटा था।

रितु देखकर मन ही मन दुःखी होती है और अपने बच्चों को सुलाने कमरे में चली जाती है।


"छोटू!,... उठ पानी के बर्तन रख। नल आते ही पहले अपना पानी भरना। बाद किसी को भरने देना।" 


ताई रजाई में लेटे-लेटे बोल रही थी। 


रितु पानी के बर्तन लेकर आती है। ठंड के कारण शॉल-स्वेटर पहनाकर भी वह कांप रही थी। छोटू ठंडी ज़मीन पर फटे से स्वेटर में दोनों पैरों में मुंह डालकर बैठा हुआ कांप रह था।


"अरे छोटू! बेटा आपने इतनी ठंड में स्वेटर भी नहीं पहना और कितना कांप रहे हो। जाओ स्वेटर पहन के आओ। बेटा जाओ ना!,...  नल में पानी आ भी गया था। मैं नहीं भरूंगी। आपके बर्तन भर के रख दूँगी। वैसे भी अभी बहुत समय है। पानी आने में, जाओ ना बेटा स्वेटर पहन लो।"


रितु छोटू के सर पर हाथ फेरते हुए प्यार से कहती है। 


‘तब छोटू की मन की गांठें खुल जाती है।’ 


"नहीं!,.. अंटी मैं स्वेटर नहीं पहन सकता हूँ। मेरे पास मात्र एक ही स्कूल का स्वेटर है। उसमें भी कई छेद है। यदि वह भी गीला हो गया तो स्कूल में मार पड़ेगी। ‘नहीं मैं ठीक हूँ।’


कहते-कहते छोटू की आँखों के कौरे गीले होने लगी।


"अच्छा तो मेरा शाल ओढ़ लो। कुछ ठंड से राहत तो मिलेगी।"


रितु ने अपना शाल छोटू को दे दिया। 


"छोटू एक बात बताओ!,...उस दिन दही बड़े खाते-खाते क्यों छोड़ कर चले गए थे?"


रितु ने पूछा।

"आंटी जी क्या बताएं? अपने प्यार से कहा तो;... मैंने खा लिया था और ताई की छोटी लड़की ने मुझे खाते देख लिया और जाकर ताई को बता दिया। ताई ने यह कहकर मुझे बहुत मारा,...कि जब तक मेरे घर में सब लोग खाना नहीं खा लेते। मैं तुझे खाना नहीं देती। तूने बैगर पूछे वहाँ खाया, तो खाया कैसे?,...सजा के तौर पर उस रात भूखा ही सोया था।"

छोटू बोलते-बोलते रो पड़ा था।

छोटू तुम्हारे माँ-बाप कहाँ पर है? 

"वे तो गाँव में रहते हैं और मुझे यहाँ पर इन सब का अत्याचार झेलने के लिए पहुँचा दिया। मुझे लगता है!,...मैं उन सबके लिए जीवित ही नहीं हूँ, कभी कोई ख़बर ही नहीं लेते है।

बोलते हुए छोटू रोने लगा।

आज छोटू के मन के दुख आँखों के द्वारा बाहर आ रहे थे।

आंटी से गले लगा कर अब कुछ छोटू को अपनापन महसूस हो रहा था।


सरिता बघेल 'अनामिका'

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