नहीं में ठीक हूँ
अपने छोटे से बच्चे के साथ रितु ट्रक में से उतरती है। वह वे अपने पति का जॉब भोपाल में लगने के कारण भोपाल किराए के मकान में शिफ्ट होती है। गृहस्थी का समान उतारा जा रहा था। तभी एक छोटा-सा दुबला, पतला-सा लड़का। उसकी मदद की मंशा से कहता है। आंटी जी आपके बच्चे को मैं गोदी में ले लेता हूं। आप सामान उतारने में मदद करवा दो।
उसका चेहरा साधारण-सा था। पुराने से कपड़े, पतला दुबला-सा लड़का पर बातों में मिठास रितु को प्रभावित कर देती है।
"बेटा जी! आप मेरे बेटे को लेकर बैठ जाओ। मैं जरा देर से फिर बेटे को लेती हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद सहयोग के लिए।"
सारा सामान उतारने के बाद रितु ने उस लड़के को मदद के लिए धन्यवाद के साथ आइसक्रीम खिलाती है।
वह लड़का,..पास में ही बने किराए के तीन कमरो रहता है।
"बेटे आपका नाम क्या है।"
रितु ने बड़े प्यार से पूछा।
"आंटी जी मेरा नाम तो मां-बाप ने विजय रखा है! पर, यहाँ सब छोटू कहते हैं।"
ठीक है। छोटू,अब आप आराम करो! मैं सामान जमाती हूं।
छोटू! उठकर अपने घर में जाता है और झाड़ू निकलता है। ताऊ-ताई और उसके तीनों बच्चे आ जाते हैं। उन सब को नाश्ता देने के बाद, फिर बहुत सारे बर्तन गैलरी ला के रखता है। रितु के कमरे से उनके घर का आना-जाना सब काम दिखता है,क्योंकि दोनों किराएदार के बीच में एक ही गैलरी थी। जहाँ पर छोटू बर्तन मांज रहा था। पास में लेट-बाथ था। फिर चाचा के कपड़े बाथरूम में रखे! पानी रखकरके, छोटू चला जाता है। ताऊ नहा कर निकलते हैं। सबके कपड़े धोता है और डालता है। फिर एक-एक करके सभी लोग छोटू की पुकार करने लगते हैं। किसी को कपड़े, किसी को खाने की दरकार थी, किसी का बैग जमा दें और जरा-सी भी देरी होने पर छोटू की कुटाई हो जाती है। जरा एक छोटू और कई आवाज़, उसे तुरंत ही काम करने को कहते है। जब कभी सब घर से बाहर जाते है। तब छोटू की जिंदगी में कुछ सुकून आता है। उस पर भी जाने से पहले ताई काम की लिस्ट थमा करके जाती है। अब यह रोज की दिनचर्या छोटू की रितु देखती-रहती थी। बेचारा दिन-भर काम में लगा रहता है। सुबह पांच बजे पानी भरने के लिए उठता और पानी के बर्तनों की लाइन लगाकर बैठ जाता है।
एक दिन रितु सोच रही थी:,.. मेरे मकान की शिफ्टिंग के समय यदि यह सब लोग होते हैं, तो शायद मैं छोटू से बात भी नहीं कर पाती है! क्योंकि पूरे समय में, जब से मैं आई हूँ। सुबह पाँच बजे से रात के बारह तक! छोटू की पुकार निरंतर चलती रहती है। बेचारा छोटा-सा बच्चा, इन सबको तरस नहीं आती। उसे मासूम-से बच्चे पर कितना अत्याचार करते हैं।
"तभी छोटू की रोने की आवाज़ आती है। ताऊ का बड़ा लड़का उसे बेल्ट से मार रहा था। मेरी रोटी में से तूने रोटी खाई।"
लड़का कहते हुए मार रहा था।
"नहीं भाई। मैं नहीं खाई। आज तो रात की रोटी भी नहीं बची थी, मैंने तो सुबह से खाना ही नहीं खाया! क्योंकि ताई और आप कहते हो:,... रात की रोटी खाना। मुझे आज सुबह से नाश्ता खाने को भी नहीं मिला है। मैंने कुछ नहीं खाया भाई।"
छोटू रोते-रोते सिसकते हुए बोल रहा था।
"क्या? तेरे पापा ने यहाँ पर खाना रख दिया है। तू फ्री खाएगा।"
लड़का आँखे लाला करके बोला।
वह करुण आवाज़!,...रितु के दिल दिहलाने बाली थी।
रितु मन मार कर अपनो घर के काम करने लगने कोशिश करती हैं।
पर! आपने को रोक नहीं पाती है।
"बड़ी हिम्मत करके रितु बोलती है। इस मासूम को बच्चे पर इतने अत्याचार मत करो। मत मारो बस, अब बस भी करो ना।"
रितु के कहने पर भी वह लड़का कुछ देर रुक तो जाता है।
पर! रितु जैसे ही घर में अंदर आती है। उसे लड़के की आवाज़ रितु के कानों में आती है।
“हमारे घर के मामले में वह कौन होती है! बोलने वाली,..अपना घर देखें।”
लड़का कहते हुए, दरवाज़ा बंद कर बाहर चला जाता है।
रितु मन-मन सोचती है। कम से कम अट्ठारह साल का यह लड़का होगा और इतना असभ्य इतना क्रूर कैसे संस्कार है। इस घर के लोगों के।
फिर कुछ देर बाद ताई और उसके दोनों बच्चे उसके साथ आते हैं।
छोटू दर्द से कराहते हुए ज़मीन पर लौट लग रहा था।
"क्यों रे छोटू,...तुझे क्या हुआ क्यों पड़ा हुआ है?"
ताई अपने कर्कश आवाज़ में छोटू पूछती है।
छोटू अपनी पूरी व्यथा बताता है।
"अरे! माँ वह रोटी मैं खाकर चली गई थी।"
तभी बीच में सबसे छोटी लड़की बोल उठी।
"चल छोटू बात मत बढ़ा हाथ-मुंह धोनकर काम पर लग जा। जो होना था, हो गाया! ज़्यादा रोना-धाना मत कर और किसी से कुछ कहना मत।"
ताई डाटते हुए बोली।
छोटू उठा। रोते-सिसकते हुए काम करता रहा।
रितु दो दिनों के लिए अपने मायके आई और फिर घर आना पर दहीबड़ा बनाया है।
"छोटू इधर आओ मेरे पास आओ।"
छोटू को गैलरी में काम करता देखकर, अकेला देखकर! रितु बहुत धीरे-से बुलाती है।
छोटू का चेहरा एकदम सूखा हुआ! छुहारे-सा दिख रहा था और हाथ-पांवों में मानो जान ना हो। रितु ने प्यार से बिठाया।
"लो छोटू! यह दहीबडे़ खा के बताओ,तो मैं कैसे बनाये हैं?
खालो ना।"
रितु ने बड़े प्यार से कहाँ।
पहले रितु देखती है। वह सकुचाते हुए दो निवाले ही खा पाया था कि ताई छोटी लड़की बिना इज्ज़त के आनन-फानन में अंदर आ जाती हैं। छोटू को वह घूरती है। छोटू खाने का बर्तन रखकर चला जाता है।
कुछ देर बाद छोटू के रोने की आवाज़ आती है।
रितु रात को अपने बच्चे को लेकर गैलरी में घूम रही थी कि उसकी नज़र छोटू पर गई। वह ताऊ के लोहे के पलंग के नीचे एक टाट को बिछाकर एक फटा चद्दर ओढ़ कर लेटा था।
रितु देखकर मन ही मन दुःखी होती है और अपने बच्चों को सुलाने कमरे में चली जाती है।
"छोटू!,... उठ पानी के बर्तन रख। नल आते ही पहले अपना पानी भरना। बाद किसी को भरने देना।"
ताई रजाई में लेटे-लेटे बोल रही थी।
रितु पानी के बर्तन लेकर आती है। ठंड के कारण शॉल-स्वेटर पहनाकर भी वह कांप रही थी। छोटू ठंडी ज़मीन पर फटे से स्वेटर में दोनों पैरों में मुंह डालकर बैठा हुआ कांप रह था।
"अरे छोटू! बेटा आपने इतनी ठंड में स्वेटर भी नहीं पहना और कितना कांप रहे हो। जाओ स्वेटर पहन के आओ। बेटा जाओ ना!,... नल में पानी आ भी गया था। मैं नहीं भरूंगी। आपके बर्तन भर के रख दूँगी। वैसे भी अभी बहुत समय है। पानी आने में, जाओ ना बेटा स्वेटर पहन लो।"
रितु छोटू के सर पर हाथ फेरते हुए प्यार से कहती है।
‘तब छोटू की मन की गांठें खुल जाती है।’
"नहीं!,.. अंटी मैं स्वेटर नहीं पहन सकता हूँ। मेरे पास मात्र एक ही स्कूल का स्वेटर है। उसमें भी कई छेद है। यदि वह भी गीला हो गया तो स्कूल में मार पड़ेगी। ‘नहीं मैं ठीक हूँ।’
कहते-कहते छोटू की आँखों के कौरे गीले होने लगी।
"अच्छा तो मेरा शाल ओढ़ लो। कुछ ठंड से राहत तो मिलेगी।"
रितु ने अपना शाल छोटू को दे दिया।
"छोटू एक बात बताओ!,...उस दिन दही बड़े खाते-खाते क्यों छोड़ कर चले गए थे?"
रितु ने पूछा।
"आंटी जी क्या बताएं? अपने प्यार से कहा तो;... मैंने खा लिया था और ताई की छोटी लड़की ने मुझे खाते देख लिया और जाकर ताई को बता दिया। ताई ने यह कहकर मुझे बहुत मारा,...कि जब तक मेरे घर में सब लोग खाना नहीं खा लेते। मैं तुझे खाना नहीं देती। तूने बैगर पूछे वहाँ खाया, तो खाया कैसे?,...सजा के तौर पर उस रात भूखा ही सोया था।"
छोटू बोलते-बोलते रो पड़ा था।
छोटू तुम्हारे माँ-बाप कहाँ पर है?
"वे तो गाँव में रहते हैं और मुझे यहाँ पर इन सब का अत्याचार झेलने के लिए पहुँचा दिया। मुझे लगता है!,...मैं उन सबके लिए जीवित ही नहीं हूँ, कभी कोई ख़बर ही नहीं लेते है।
बोलते हुए छोटू रोने लगा।
आज छोटू के मन के दुख आँखों के द्वारा बाहर आ रहे थे।
आंटी से गले लगा कर अब कुछ छोटू को अपनापन महसूस हो रहा था।
सरिता बघेल 'अनामिका'