अल्प शिक्षित



प्रोफेसर रविशंकर अपने तीन अन्य प्रोफेसरों के साथ एक सेमीनार से कार द्वारा लौट रहे थे। चारों के बीच संस्कार संस्कृति और मानव मूल्यों के हृास पर गर्मागर्म बहस चल रही थी। सबका यह मानना था कि आज हर आदमी देश और समाज से कटकर स्वयं के दायरे में सिमटता जा रहा है, वह केवल अपने लाभ के बारे में सोचता है।
कार प्रोफेसर रवि शंकर चला रहे थे। अचानक वे बोले-”कार ववलिंग कर रही है, लगता है पेट्रोल खत्म होने वाला है।“
”क्या?“ सबने हैरानी से प्रोफेसर रवि शंकर की ओर देखा।
”कार एक दो किलोमीटर से ज्यादा नहीं चल पाएगी।” रविशंकर चिन्तित स्वर में बोले।
सब लोग परेशान हो उठे। दूर-दूर तक कोई पेट्रोल पम्प नजर नहीं आ रहा था। एक सज्जन ने अपने मोबाइल पर गूगल पर पेट्रोल पम्प की लोकेशन चेक की। वे बोले-यहां से सात किलोमीटर दूर एक कस्बा है, वहां पेट्रोल पम्प है।
”अब क्या होगा?“ सबके चेहरों पर गहरी चिन्ता झलक रही थी।
रविशंकर बोले-”अब जो होगा देखा जाएगा। जहां तक कार चल सकती है चलते हैं।“
बे लोग अभी एक किलोमीटर आगे बढ़े होंगे कि सड़क किनारे एक गाँव पड़ा, छोटा सा गाँव था। कुल मिलाकर बीस-पच्चीस मकान रहे होंगे। एक बड़े से मकान के पास उन्होंने कार रोक दी।
रवि शंकर ने मकान का दरवाजा खटखटाया।
थोड़ी देर बाद एक प्रौढ़ व्यक्ति ने दरवाजा खोला। मजबूत कदकाठी वाला वह व्यक्ति ठेठ ग्रामीण लग रहा था। उसने प्रश्नवाचक निगाहों से रविशंकर की ओर देखा।
देखिए हम लोग कार से महानगर जा रहे हैं। महानगर अभी लगभग सौ किलोमीटर दूर रह गया है मगर हमारी कार का पेट्रोल खत्म हो गया है। क्या आप इसमें हमारी मदद कर सकते हैं? रविशंकर विनम्र स्वर में बोले।
”यहां से लगभग छः किलोमीटर आगे एक कस्बा है वहां पेट्रोल पम्प है उस पर आपको पेट्रोल मिल जाएगा।” गृह स्वामी ने बताया।
मगर हमारी कार वहां तक नहीं पहुंच पाएगी। बड़ी मुश्किल से हम यहां तक आ पाये हैं।
वह आदमी कुछ समय कुछ सोचता रहा फिर उसने कहा-”आइए अन्दर आइए देखते हैं क्या हो सकता है?“
रविशंकर ने आवाज देकर अपने साथियों को भी बुला लिया। उस व्यक्ति ने उन सबको अपनी बैठक में बैठाया।  वह अन्दर गया और ट्रे में चार गिलास पानी लेकर आया। मेज पर पानी रखते हुए बोला-”आप लोग पानी पीजिए। चाय बन रही है। मैं पेट्रोल के बारे में पता करके आता हूँ।“ यह कहकर वह चला गया।
थोड़ी देर बाद उसकी बारह वर्षीय बेटी गर्मागर्म चाय और बिस्किट रख गई। सब लोग चाय पीने लगे।
कुछ देर बाद वह आया। उसके एक हाथ में एक केन थी। वह बोला-“मेरी मोटरसाइकिल में कुछ पेट्रोल था। उसमें से पाइप द्वारा मैंने पेट्रोल निकालकर इस केन में भर दिया है। एक-डेढ़ लीटर होगा। इससे आपकी कार आराम से कस्बे तक पहुँच जायेगी।“
सबके चेहरे प्रसन्नता से चमक उठे। चाय पीने के बाद चलने से पहले रविशंकर ने उसे पेट्रोल के दो सौ रुपए देने चाहे । मगर उसने रुपए लेने से साफ इन्कार कर दिया। वह बोला आप मेरे गाँव आए हैं मेरे मेहमान हैं । आपकी मदद करना हमारा फर्ज है । मैं तो खुश हूं कि मैं आप लोगों के काम  आ सका ।
गाँव के इस अल्प शिक्षित व्यक्ति की बात सुनकर उन सब बुद्धिजीवियों को उसकी तुलना में अपना कद बहुत बौना लग रहा था।

सुरेश बाबू मिश्रा
साहित्य भूषण
ए-979, राजेन्द्र नगर, बरेली-243122 (उ॰प्र॰)
मोबाइल नं. 9411422735,

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