आसमान सोया है
हे चहुँओर पसरी मदमत्त चाँदनी !
इस क़दर मत इठलाओ,
अरी लरजती लहरो !
इतनी गर्जना मत करो,
ओ कल-कल करती नदियो !
अपने छपाकों को शांत कर लो,
अरे उस छोर पर घुमड़ते मेघो !
अपनी विद्युल्लता को कहीं छिपा लो,
हे निशा से अठखेलियाँ करते राकापति !
अपनी इस प्रणय-लीला को रोक लो,
अरे अँधेरों को लजाते जुगनुओ !
कुछ देर कहीं और बसेरा कर लो,
ओ नीरवता की लहरियों के कम्पनो !
कुछ देर अपने ध्वनि-आवर्त रोक लो,
हे स्वाति नक्षत्र की आस लगाये पपीहे !
अपनी पलकें पलभर को झुका लो,
देखो सदियों बाद वो आसमान सोया है !
वो निराश्रित-सा आसमान सोया है !!
योगेन्द्र कुमार
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