बेटी ही बचायेगी
कभी राधा कभी मीरा बनकर,
प्रेम–पाठ सिखाएगी।
खुद अपयश ले लेगी कैकेयी,
तुम को राम बनाएगी॥
कहीं कड़कती ज्वाला तो,
कहीं रणचंडी बन जाएगी।
वही दुर्गा काली रूप धरे,
ये असुरों से मुक्त कराएगी॥
निज स्तन का पान करा,
वो त्रिदेव से लाज बचाएगी।
वही बनेगी सति अनुसुया,
ये महा–काल बन जाएगी॥
सत्यवान के प्राण बनी जो,
वो सावित्री ही कहलाएगी।
वही रचेगी जौहर भी रण में,
फिर पद्मावत रचवाएगी॥
तुलसी 'रामबोला' को बना,
वो ही मानस लिखवाएगी।
तो भरी सभा में मूरख को भी,
ये कालीदास बनाएगी॥
शाईनी–ऊषा वही बनेगी,
इस हिंद का मान बढ़ाएगी।
आसमान का तारा बन कर,
कल्पना सी खो जाएगी॥
सूने हाथ देख के भाई के,
वो ही राखी थाल सजाएगी।
एक चुटकी सिंदूर की खातिर,
ये अपना नाम मिटाएगी॥
गर नहीं हुआ भाई तो वह ही,
चिता में आग लगाएगी।
जब भी जान फंसी संकट में,
बेटी ही जान बचाएगी॥
वह नहीं रहेगी अबला अब,
ये सबला अभी कहाएगी।
मत घबरा बेटी से बिल्कुल,
अब तो बेटी ही बचाएगी॥
-अरुण कुमार पाठक
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