साइप्रस में हिंदी का भविष्य 


डा. ममता जैन


साइप्रस भूमध्यसागर का अतिविस्तृत ,प्राकृतिक सुषमासंपन्न द्वीप है। यूरोप का यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है जहां प्रतिवर्ष 2.5 मिलियन से अधिक पर्यटक आते है ।इसे भूमध्य सागर का गहना कहा जाता है, यह ग्रीस के पूर्व में , मिस्र के उत्तर में ,तुर्की के दक्षिण में ,लेबनान सीरिया के पश्चिम में है। इसकी राजधानी और सबसे बड़ा शहर निकोसिया है। यहींं भारतीय दूतावास भी है।यह द्वीप 16 अगस्त 1960 को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र हुआ था  1961 में यह राष्ट्रमंडल का सदस्य बना । 1 मई 2004 के बाद से यूरोपियन संघ का सदस्य है । पुरातत्वविदो का यहां 10,000 वर्ष पूर्व मनुष्यों के निवास करने की प्रमाण मिले हैं, किंवदंती के अनुसार प्रेम की ग्रीक देवी अफोर्डिट यही उत्पन्न हुई थी।

 बहुभाषी ,बहुसांस्कृतिक होने के साथ-साथ साइप्रस बहुत धार्मिक भी है, यहां की आधिकारिक भाषाएं ग्रीक और तुर्की है, 90 के दशक  बहुराष्ट्रीय कंपनियों की स्थापना से हजारों भारतीय इंजीनियरों का यहां आगमन हुआ। यहां से भाषाई क्षेत्र विकसित हुए। हिंदी भाषी भारतीयों के ग्रुप बने , त्योहारों एवं पारस्परिक पारिवारिक सम्मिलन के माध्यम से अपनी हिंदी भाषा बोलचाल में बनी रही । धीरे-धीरे साहित्य के अभिरुचि रखने वालों का भी एक ग्रुप बना और छोटे-छोटे  कार्यक्रमों का आयोजन साहित्य सृजन संस्था, साइप्रस के माध्यम से प्रारंभ हुआ। डॉ ममता जैन की अध्यक्षता में डॉ. मनु सिन्हा ,अनाहिता चौथिया,एलिजाबेथ चारलोमबस, प्रीति भंडारे, शैली गुप्ता आदि द्वारा इस संस्था का गठन हुआ और प्रथम हिंदी पत्रिका अभिव्यक्ति के प्रकाशन का निर्णय लिया गया। इस पत्रिका का उद्देश्य सभी की साहित्यिक प्रतिभा का विकास करना था, हिंदी को बढ़ावा देना था। इस पत्रिका के प्रवेशांक के लिए तत्कालीन उच्चायुक्त डॉ. पवन वर्मा जी का शुभकामना संदेश प्राप्त हुआ, जिसके लिए डॉ. पवन वर्मा जी द्वारा भारत से विशेष रूप से हिंदी का सॉफ्टवेयर मंगाया गया था। उनके द्वारा हिंदी को बहुत प्रोत्साहन मिला, उनके कार्यकाल में हिंदी कार्यक्रमों की बहुलता रही ।कार्यवाहक उच्चायुक्त डॉ मनोहर वर्मा जी का भी पूर्ण सहयोग रहा। Amdocs कंपनी के भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम ने भी हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार को नई ऊंचाईया दी। समय-समय पर आयोजित कार्यक्रमों ने, प्रतियोगिताओं ने साइप्रस में हिंदी भाषा में  का तेजी से विस्तार किया। हिंदी भाषा सीखने के प्रति विदेशियों की भी रुचि बढ़ी ।भाषाओं के आदान-प्रदान हेतु कई केंद्र खुले ।भारतीय दूतावास एवं भारतीयो द्वारा स्थापित सांस्कृतिक संगठनों द्वारा हिंदी सीखने और सिखाने के कई उपक्रम किए गए। समय-समय पर पुस्तक- चर्चा, भाषा ज्ञान प्रतियोगिता में अन्य गतिविधियां  की जाने लगी, साइप्रस में रहने वाले भारतीयों के अतिरिक्त, , साइप्रस के मूल निवासियों द्वारा हिंदी का प्रयोग आपसी संवाद में होने लगा।" नमस्ते"," मैं अच्छी हूं"," आप क्या लेंगे"," भारत में आप किस राज्य से हैं "जैसे वाक्य विदेशियों में परिचय के समय विशेष लोकप्रिय होने लगे। हिंदी फिल्मो, गीतों  अन्य सांस्कृतिक तत्वों के माध्यम से हिंदी भाषा प्राणवंत होने लगी। वहां के सिनेमाघर में भारतीय फिल्मों के शो चलाये जाने लगे, भरतनाट्यम ,कत्थक भारतीय संगीत पर आधारित कार्यक्रम भी मेनहाल में आयोजित किए गये। जिसमें विदेशो की संख्या बहुत बहुतायत में  रहती थी । इसके अतिरिक्त भारतीय टी.वी ,चैनल रेडियो स्टेशन और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध हुए, जहां हिंदी सामग्री प्रसारित हुई।

 भारतीय एंबेसी में भारतीय पर्वों होली का, दीवाली का भी आयोजन हुआ। स्थानीय कवियों ने कवि सम्मेलन  आयोजित किये। अनेक कार्यक्रमों का संचालन  करने का अवसर मुझे मिला । प्रसन्नता का विषय यह है कि दूतावास के सभी अधिकारी इसमें रुचि रखते थे ,मेरे (डा. ममता जैन) काव्य संग्रह "साइप्रस नहीं लुभाता" का लोकार्पण भारतीय दूतावास निकोसिया में ही कार्यवाहक उच्चायुक्त श्री मनोहर वर्मा जी द्वारा किया गया, इस अवसर पर विशेष आमंत्रित प्रख्यात साहित्यकार डॉ. नीलम जैन जी को भी भारत से आमंत्रित किया गया था ।अनेक स्थानीय भारतीय भी वहां उपस्थित थे।  वर्तमान में साइप्रस में भारतीय योग एवं आयुर्वेद के प्रति रुचि बढी है। योग प्रशिक्षक और आयुर्वेद विशेषज्ञ ने हिंदी शब्दावली का प्रयोग अपने शिक्षण ,उपचार प्रक्रियाओं में किया जिससे स्थानीय लोगों में हिंदी सीखने की भावना जागृत हुई है ।भारतीय पर्यटकों एवं व्यापारियों की बढ़ती संख्या के साथ हिंदी भाषा का उपयोग व्यापार और पर्यटन उद्योग में भी बड़ा है होटल ,रेस्टोरेंट, टूर गाइड जैसे व्यवसायिक क्षेत्र में हिंदी अपनी जगह बनाने लगी है। छोटे- छोटे हिंदी पुस्तकालय कॉफी शॉप में शुरू हुए।

 साइप्रस में अब कुछ विश्वविद्यालय एवं स्कूलों में  भारतीय छात्रों को आकर्षित करने के लिए हिंदी भाषा पाठ्यक्रम प्रारंभ करने के प्रयास किया जा रहे हैं। यद्यपि इसमें अभी सफलता नहीं मिली, फिर भी कुछ संस्थानों ने भाषा और साहित्य के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए हिंदी पाठ्यक्रमों को भी सम्मिलित करना प्रारंभ किया है। साइप्रस में  हिंदी साहित्य  में योगदान देने वाले साहित्यकार बहुत कम है क्योंकि यह क्षेत्र हिंदी भाषी जनसंख्या का मुख्य केंद्र नहीं है । यद्यपि कुछ प्रवासी भारतीय साहित्यकार और लेखक, जो हिंदी साहित्य में रुचि रखते हैं, साइप्रस में भी सक्रिय है ।

इन सभी दृष्टिकोण से देखा जाए तो साइप्रस में हिंदी भाषा का भविष्य संभावनाओ से भरा हुआ है। हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के प्रति  बढ़ती रुचि को देखते हुए आने वाले समय में साइप्रस में हिंदी की स्थिति उत्तरोत्तर वृद्धि की ओरअग्रसर होगी ।



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