मेघ महिमा



   मेघ महिमा

जल जीवन है और मेघ-वर्षा इसका सबसे सशक्त स्रोत है। इस परिच्छेद में इसी कारण कवि ने मेघ-वर्षा को पृथ्वी के संवर्धन का मूल तत्व बताया है साथ ही इसे पृथ्वी को अक्षुण्ण बनाए रखने का मूल कारण उद्घोषित करते हुए इसे अमृत के रूप में महिमामंडित किया है।

1. समय से होने वाली मेघ-वर्षा के कारण ही धरा स्वयं को अक्षुण्ण रखने में समर्थ है। अर्थात् पृथ्वी के चराचर स्वरूप का संवर्धन इस मेघ-वर्षा के कारण ही संभव हो सका है अन्यथा यह कभी का नष्ट हो गया होता। यही कारण है कि वर्षा को अमृत की संज्ञा दी जाती है।

2. ⁠*संसार में जितने भी स्वादिष्ट खाद्य-पदार्थ हैं वे सभी वर्षा के कारण प्राप्त होते हैं। जल ही जीवन है, इसी कारण वह प्रत्येक जीवधारी के भोजन का प्रमुख अंग है।*

3. भले ही पृथ्वी चारों ओर समुद्र से घिरी है लेकिन यदि वर्षा न हो तो सारी पृथ्वी पर अकाल का प्रकोप छा जाए। यही दर्शाता है कि वर्षा मानव-जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण है।

4. यदि स्वर्ग के झरने सूख जायें अर्थात् यदि वर्षा न हो तो किसान खेतों में हल जोतना ही छोड़ देंगे क्योंकि बिना वर्षा के फसल का उत्पादन संभव ही नहीं है।

5. यद्यपि अत्यधिक वर्षा से बाढ़ आ जाती है और कभी-कभी तो यह प्लावन का रूप भी ले लेती है, फिर भी यही वर्षा समयान्तर में समूची धरा को फिर से हरा-भरा कर देती है और जीवनोपयोगी बन जाती है।

6. यदि आकाश से पानी की बौछारें आना बंद हो जायें अर्थात् यदि वर्षा न हो तो किसी भी प्रकार की वनस्पति, यहाँ तक कि घास का उगना भी बंद हो जाएगा।

7. यदि आकाश समुद्र-जल को पीना और उसे फिर समुद्र को वापिस करने का चक्र समाप्त कर दे तो इस शक्तिमान समुद्र में ही कुत्सित, वीभत्सता का प्रकोप था जाएगा अर्थात् यदि समुद्र के जल का वाष्पीकरण और उसके प्रतिफलन से होने वाली वर्षा का चक्र थम जाए तो स्वयं समुद्र की उपादेयता ही समाप्त हो जाएगी और वह विद्रुपित हो जाएगा।

8. यदि स्वर्ग का जल सूख जाए अर्थात् वर्षा होनी बंद हो जाये तो न तो पृथ्वी पर यज्ञ-याग (होम-हवन) संभव हो सकेंगे और न ही भोज ही आयोजित हो सकेंगे।

9. यदि ऊपर से जल-धारायें आनी बंद हो जायें अर्थात् यदि वर्षा होनी बंद हो जाए तो इस पृथ्वी पर न तो दानियों का दान रहेगा और न ही तपस्वियों का तप क्योंकि बिना जल के इस धरा पर कुछ भी संभव नहीं है।

10. जल पृथ्वी पर जीवन का मूलाधार है, इसी कारण वर्षा के बिना कुछ भी संभव नहीं है। यहाँ तक कि सदाचार भी अन्तत: वर्षा पर ही आश्रित है।

 कुरल काव्य ग्रंथ 

प्रेषक सुबोध कुमार जैन बैंगलोर 

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