"आशिकाना सावन"
सखी सावन का जो फिर आना हुआ है,
नादान दिल ये मेरा यूं दीवाना हुआ है।
सौंधी-सौंधी महक उठी है धरा से,
जमीं को नमी का नज़राना हुआ है।
इन खुशबुओं से मैं बेखबर तो नहीं हूं,
पहले भी इन गलियों में जाना हुआ है।
रात भर है नहाया ये शहर बारिशों में,
हरियाली का सुबह शामियाना हुआ है।
बारिश की रुत में बला की कशिश़ है,
फिर दिल में किसी का ठिकाना हुआ है।
बूंद-बूंद में है तस्वीर-ए- यार की,
उफ! बेकरारी का कैसा फ़साना हुआ है।
सावन से जुड़ी है हर इक दिल की यादें,
हर श़मा का सावन परवाना हुआ है।
वो जवां मुस्कुराहटें वो हसीं शरारतें,
उस जमाने को गुजरे जमाना हुआ है।
यूं शरमा के खुद से खुदी में लिपटना,
कसम से यह समां कातिलाना हुआ है।
ऐ सावन की बारिश जरा थम के बरसो,
दिल हद से ज्यादा आशिकाना हुआ है।
© डॉ. श्वेता सिन्हा
आयोवा, अमेरिका
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