वर्षा रितु सभी धर्म में भक्ति का प्रवाह लेकर आती है साधु संत इस ऋतु में चातुर्मास की स्थापना करते हैं 4 महीने तक एक स्थान पर रहकर भक्ति साधना आराधना करते हैं और उनके सानिध्य में भक्त जैन पूजा पाठ आदि से प्रभु के गुणगान करते हैं श्री चंद्र प्रभु चैत्यायलय मगरपट्टा में भी श्रावण मास के प्रथम सप्ताह में सर्वदोष प्रायश्चित विधान का अति भव्यता से आयोजन किया गया शताब्दिक भक्तों ने एक साथ बैठकर अष्ट द्रव्य से भगवान का अभिषेक शांति धारा और पूजन की विधान के संयोजक रतन मंजरी जैन अर्पण जैन गुंजन जैन रहे उल्लेखनीय है सभी व्रत का शुभारंभ इन्हीं चातुर्मास में होता है और डॉक्टर नीलम जैन ने सभी को सर्वदोष प्रायश्चित विधान का महत्व बताया और कहा कि संसार में रहते हुए अपने प्रतिदिन के कार्यों में हम सब लोग जाने अनजाने अनेक गलती अज्ञानता वश करते हैं हमें इस सबके लिए प्रायश्चित कर स्वयं को शुद्ध करना चाहिए हमें अपने अंतर मन को शुद्ध रखना चाहिए
उल्लेखनीय है भगवान महावीर के प्रथम दिव्या देशना श्रावण मास की प्रतिपदा को ही संसार को सुनने को मिली थी जैन धमावलंबी इस दिन को वीर शासन जयंती के रूप में मनाते है
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