ग़ज़ल
दिल की तहरीर को पढ़ने का हुनर आता है।
तेरे चेहरे पे तेरा हाल नज़र आता है।।
रात भर लड़ के हुआ लाल लहू से सूरज,
तब कहीं जा के उजाला ये इधर आता है।
कोई मासूम सी चिड़िया के अगर पर कुतरे,
देखकर ख़ूं मेरी आंखों में उतर आता है।
आज जंगल में दरिन्दे भी हैं दहशत में बहुत,
ओढ़कर खाल सियासत की बशर आता है।
सींचता हूं मैं इसे और जतन करता हूं,
शाख पर यूं ही नहीं यार समर आता है।
सारी खुशियां औ' तरक्की वो यहीं पाएगा,
बस यही सोच के हर कोई शहर आता है।
ज़िन्दगी का है सफ़र आप संभलकर चलिए,
ये वो दरिया है कि हर रोज भंवर आता है।
और वादे न करो प्यार जताया न करो,
दिल का हर ज़ख़्म हरा हो के उभर आता है।
ख़ून ज़ज़्बात का मैं उनको पिलाता हूं विजय,
तब कहीं जा के ये लफ़्ज़ों में असर आता है।
2
परेशां वो बहुत रहते हैं जिनको याद रहता है।
भुलक्कड़ है ये दिल बस इसलिए ही शाद रहता है।।
यहां हर सुख मुहैया है मगर मन ख़ुश नहीं फिर भी,
उसे देखो अभावों में भी वो आबाद रहता है।
मेरे सर पर है आशीर्वाद मां का इसलिए ही तो,
ख़ुशी औ' सुख से मेरा हर समय संवाद रहता है।
मुसीबत में बिखर जाऊं कोई पारा नहीं हूं मैं,
हर इक हालात में मेरा जिगर फौलाद रहता है।
फकीरों साधु संतों का ठिकाना हो नहीं सकता,
कलन्दर हैं ये इनका मन तो बस आज़ाद रहता है।
ज़रूरत से जियादा पा गया है इसलिए ही तो,
ख़ुदी का ही हमेशा बस उसे उन्माद रहता है।
घृणा, नफ़रत ये सारे द्वेष तुम सब भूल जाओगे,
कभी उससे मिलो वो स्नेह का अनुवाद रहता है।
ग़ज़ल, गीतों की इस दुनिया में हूं मसरूफ़ मैं इतना,
कि जैसे याद में शीरीं की ही फरहाद रहता है।
विजय मशहूर है दुनिया में उसको खोजते हो क्या,
अरे सीधा पता है वो अहमदाबाद रहता है।
विजय तिवारी, अहमदाबाद
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