कोई मुझे देखे कि देखते हुए
सब रंग आसमां के सितारों में आ गए।
बहुत नासमझ हैं, सब जानते हुए
जाने क्यों लोग मेरी बातों में आ गए ।
जिन्हें न कह सका, जज़्बात बहुत थे
अल्फ़ाज़ बन के मेरी किताबों में आ गए।
हसरतें लाखों थीं पूरी भी हो गईं
बेवज़ह के किस्से ख्वाबों में आ गए।
एक राम थे जो बाहर, भटका तो न मिले
न जाने कब चुपके से वो मेरी आंखों में आ गए।
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-डॉ राजेश श्रीवास्तव
निदेशक रामायण केन्द्र भोपाल
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