गीत


मन पागल है,प्रेम में तेरे,

जीवन इक अभिलाषा है।

ईश पिया है,पिया ईश है,

यह मन की परिभाषा है।।


व्याकुल मन की पीर पिया ने

जानी तो वो ईश हुआ।

मीरा के कोमल हृदय का,

सब कुछ वह जगदीश हुआ।

मन के झंकृत स्पंदित सब,

तारों में वह रहता है।

एकाकार बनकर वह फिर,

प्रेम की बातें कहता है।

इस भव से परभव तक जाना,

यहि अलौकिक आशा है।

ईश पिया है,पिया ईश है,

यह मन की परिभाषा है।।


मीरा उसमें वो मीरा में,

कोई जान न पाया है।

यही भावना भक्ति सब कुछ,

जिसमें ईश समाया है।

मन पागल बस ढूँढ रहा है,

उस हरि को,उस माही को।

इन साँसों के संग में चलने,

वाले साथी राही को।

झूठा जग माया की गठरी,

भ्रम है एक निराशा है।

ईश पिया है,पिया ईश है,

यह मन की परिभाषा है।।


जिस दिन खोकर,जिस दिन पाकर,

मैं मीरा बन जाऊँगी ।

मैं गिरधर की दासी बनकर,

खुद में जोत जलाऊँगी।

लोकलाज सब तज कर जीवन,

मन पागल हो जायेगा।

मेरा ईश मुझी में रमकर,

प्रेम की बंशी बजायेगा।

सच तो यही है वो अनंत है,

मेरा उसमें वासा है।

ईश पिया है,पिया ईश है,

यह मन की परिभाषा है।।


सरिता "कोहिनूर"

वारासिवनी

जिला-बालाघाट म.प्र. 

पिन --481331


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