रसोई से राष्ट्रपति भवन तक की लेखन यात्रा
- डॉ मृदुल कीर्ति
साझा संसार नीदरलैंड्स द्वारा आयोजित 'संस्कृत की वैश्विक विरासत' ऑनलाइन आयोजन सम्पन्न हुआ। इस आयोजन में
बी बी सी लंदन से सेवानिवृत्त वरिष्ठ पत्रकार विजय राणा ने मृदुल कीर्ति से उनके वैदिक ग्रन्थों के पद्यबद्ध अनुवाद पर रोचक प्रश्न पूछे। मृदुल कीर्ति (आस्ट्रेलिया) ने सभी प्रश्नों का बहुत ही सटीक और सारगर्भित उत्तर दिया।
विजय राणा से संस्कृत यात्रा पर चर्चा में, मृदुल कीर्ति ने अपनी अनुदित पुस्तकों के विषय में बताया कि उन्होंने
सामवेद का पद्यानुवाद, ईशादि नौ उपनिषद हरिगीतिका छंद में हिन्दी अनुवाद, अष्टवक्र गीता - काव्यानुवाद, ईहातीत क्षण, श्रीमद भगवद गीता का ब्रजभाषा में अनुवाद किया है। ईशादि नौ उपनिषद का अनुवाद पुस्तकों का विमोचन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया।
विजय राणा के वैदिक लोकतंत्र के सवाल पर मृदुल कीर्ति ने बताया कि वैदिक काल में यद्यपि राजा होता था लेकिन मंत्रियों का चयन योग्यता पर, सभी राजकार्य मंत्रियों की सलाह से होते थे। यहाँ तक कि गोधूलि वेला में उठती धूल से
इस बात का ख्याल रखा जाता था कि धूल के कणों से जन जीवन में असुविधा न हो। उस काल में, पौधे की पत्ती तोड़ने के पहले, पौधे से प्रार्थना की जाती थी।
वैदिक प्रजातंत्र में महिलाओं की भागीदारी के सवाल का जवाब देते हुए मृदुल कीर्ति ने बताया कि वैदिक काल में, महिलाओं की भागीदारी का उल्लेख बहुत विस्तार से मिलता है। उन दिनों पर्दाप्रथा न थी। महिलाएँ वाद विवाद में भाग लेती थी। यही नहीं वे वाद विवाद में जज की भूमिका भी निभाती थी। यहाँ तक महिला सैनिक भी होती थी और युद्ध में भी भाग लेती थी।
भारतीय मनसा या बुद्धि में उपनिषदों का क्या स्थान है ? विजय राणा के प्रश्न पर, मृदुल कीर्ति ने उपनिषद का अर्थ समझाते हुए कहा कि उपनिषद शब्द 'उप' यानि निकट और 'निषद' यानि बैठना, इन दो शब्दों का अर्थ है गुरु के पास बैठना। उपनिषदों के मंत्र जीवन का संविधान हैं। जीवन विषयक जिज्ञासाएँ गुरू के पास बैठकर ही शांत हो सकती हैं। भारतीय समाज में गुरू शिष्य की अद्भुत परम्परा युगों युगों से रही है।
शंकराचार्य के आध्यात्मिक विकास के योगदान प्रश्न पर, मृदुल कीर्ति ने अपने उत्तर में यह कहा कि यदि शंकराचार्य, जिनका जीवनकाल 32 वर्ष रहा, न होते तो हम अपनी आध्यात्मिक विरासत का बहुत कुछ खो चुके होते।
संस्कृत की आज की स्थिति में सुधार कैसे हो ? इसके जवाब में मृदुल कीर्ति ने बताया माँ बाप को जानने के लिए ग्रन्थों की आवश्यकता नहीं होती है। ज्ञान अज्ञान का ही भाग है। ज्ञान से बोध की यात्रा के विषय में कठोपनिषद के यम और नचिकेता के संवाद का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि बाल संस्कार में परिवेश, परिवार और माँ बाप की विशेष भूमिका होती है। साथ ही मानव के व्यक्तित्व और आध्यात्मिक विकास के लिए संस्कृत का पाठ्यक्रम में होना आवश्यक है।
वैदिक ग्रंथों के संस्कृत से हिंदी और ब्रजभाषा में पद्यानुवाद की प्रेरणा कहाँ से पाई ? विजय राणा इस प्रश्न के उत्तर में मृदुल कीर्ति ने कहा कि आत्मा रस की भूखी होती है। सामवेद काव्य-रस से भरा है। इस काव्यरस की भूख ने मन में वेद, उपनिषदों के प्रति जिज्ञासा जगा दी। मुझे उपनिषदों में पढ़ने को मिला कि राजा को विद्वान का आदर करना चाहिए। मैंने सामवेद का अनुवाद रसोईघर में लिखा। उसी समय एक जिद मन में खड़ी हो गई थी कि यह रसोईघर से शुरू हुई लेखन यात्रा राष्ट्रपति भवन तक हो। इसी जिद के चलते, बत्तीस बरस की आयु में, मेरी पुस्तक का विमोचन महामहिम राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन द्वारा किया गया था। यह लेखन यात्रा आज भी जारी है।
इस आयोजन के संयोजक रामा तक्षक (नीदरलैंड्स) के एक प्रश्न के उत्तर में मृदुल कीर्ति ने कहा कि भारत सच में एक आध्यात्मिक राष्ट्र है। हर भारतीय परम सत्ता को मानता है। अपनी बात को पूरा करते हुए उन्होंने बताया कि दुख इस बात का है कि आज सम्पूर्ण विश्व नैतिक प्रलय के दौर में है। साथ ही देवनागरी लिपि के दार्शनिक पक्ष को खुलासा करते हुए कहा कि नागरी लिपि का दार्शनिक पक्ष उसके अक्षरों का आकार, गहन दर्शन और कलात्मकता अपने में समेटे है।
संस्कृत की वैश्विक विरासत आयोजन का आरम्भ, लंदन से इंदु बारोट चारण द्वारा, मृदुल कीर्ति द्वारा लिखित सरस्वती वंदना से किया। उन्होंने मंच का सफल संचालन भी किया।
इस आयोजन में स्पेन से पूजा अनिल, कनाडा से शैलजा सक्सेना, सूरीनाम से सांद्रा लुटावन, लंदन से दिव्या माथुर व शन्नो अग्रवाल, भारत से डॉ मीरा गौतम, जयशंकर यादव, हरिराम पंसारी, सोनू कुमार पत्रकार व अन्य बहुत से जिज्ञासु जुड़े।
रामा तक्षक
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