कुरल काव्य ग्रंथ 


  कृतज्ञता

कुरल-काव्य के इस परिच्छेद में कृतज्ञता के महात्म पर विशद प्रकाश डाला गया है। यह स्पष्ट किया गया है कि बिना किसी प्रत्युपकार की भावना के जो उपकार या दया किसी व्यक्ति के प्रति निष्पादित की जाती है वह संसार में सर्वोत्तम तथा अविस्मरणीय है। मनुष्य की महानता इसी में है कि वह उपकार करे और उसे भूल जाए और उपकृत व्यक्ति के लिए यही आवश्यक है कि वह ऐसे उपकार के लिए सदैव कृतज्ञ रहे। कृतज्ञता से बड़ा कोई पुण्य नहीं और कृतघ्नता से बड़ा संसार में कोई पाप नहीं।

1. जो मनुष्य किसी अन्य व्यक्ति पर दया करते समय यह नहीं सोचता कि जिस व्यक्ति पर वह दया कर रहा है वह उसका आभारी रहे, ऐसी दया का प्रतिदान करने की सामर्थ्य तो स्वर्ग तथा पृथ्वी, किसी में भी नहीं होती अर्थात् ऐसी दया तो शब्दातीत होती है।

2. कोई भी उपकार भले ही वह कितना भी छोटा क्यों न हो परन्तु वह संसार में सबसे भारी होता है अर्थात् वह संसार में सर्वोत्तम होता है।

3. यदि कोई मनुष्य किसी के प्रति बिना किसी प्रतिदान की आकांक्षा के भलाई करता है तो ऐसी भलाई सागर से भी अधिक बड़ी होती है अर्थात् उसकी महानता वर्णनातीत होती है।

4. किसी से भी प्राप्त किया लाभ भले ही वह कितना भी  छोटा क्यों न हो, सत्पुरुष के लिए अत्यंत बड़ा होता है।

5. कृतज्ञता की सीमा, किए गए उपकार पर निर्भर नहीं करती अपितु वह जिस व्यक्ति  पर उपकार किया गया है, उसकी योग्यता पर निर्भर करती है।

6. महात्माओं अर्थात् सत्पुरुषों की मित्रता की अवहेलना करना नितांत अनुचित है। साथ ही मनुष्य को उन लोगों का भी त्याग  कभी नहीं करना चाहिए जिन्होंने संकट के समय उसका साथ दिया हो।

7. जो मनुष्य किसी व्यक्ति को किसी कष्ट से उबारता है, उसका स्मरण तो जन्म-जन्मांतर तक कृतज्ञता के साथ किया जायेगा अर्थात् उसका यह कृत्य सदैव अविस्मरणीय रहेगा।

8. उपकृत व्यक्ति द्वारा किसी भी उपकार को भुला देना अत्यंत नीचता का कार्य है परन्तु यदि कोई मनुष्य अपने द्वारा किए गए उपकार को शीघ्र ही भुला देता है तो यह उसकी महानता है।

9. यदि कोई व्यक्ति किसी मनुष्य को कोई हानि अथवा कष्ट पहुँचाता है और ऐसे व्यक्ति ने पूर्व में कभी कोई उपकार उस मनुष्य के प्रति किया हो, तो ऐसे पूर्व में किए गए उस व्यक्ति के उपकार का स्मरण उसी क्षण उस उस मनुष्य को तत्समय होने वाली भयंकर हानि अथवा कष्ट को भी भुला देता है।

10. इस संसार में अन्य सभी दोषों से कलंकित मनुष्यों का उद्धार तो संभव है परन्तु कृतघ्न मनुष्य तो वो अभागा है जिसकी उद्धार कभी संभव नहीं है।

( कुरल काव्य ग्रंथ )

सुबोध कुमार जैन 

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