मित्रता

 

सुख-दुःख में भागीदार रहे जो,

साथ   निभाऐं  मग में ।

मित्रता      ही    हो     ऐसी,

प्रसिद्ध रहे नित जग में ।।

कृष्णार्जुन और कृष्ण-सुदामा का,

इतिहास अनोखा ।

हर   वक्त   रहे     तैयार   हमेशा,

कहीं कभी न धोखा ।।

राम-निशाद-सुग्रीव-विभीषण,

थे वो परम मीत ।

मित्रता   के   दम   जिन्होंने,

जग लिया है जीत ।।

दुनिया में जितने भी सारे,

नाते-रिश्ते होते ।

बढ़ कर इन सबसे कहीं ज्यादा,

मित्र फरिश्ते होते ।।

मित्रता के भाव की,

नहीं अन्तर में सीमा ।

और व्यवहार जगत में,

इसके आगे है धीमा ।।

लहू से इक-दूजे के,

ग़म को नहलादें मित्र ।

नेह मयी भीनी खुशबू से,

जो सदा उॅड़ेले इत्र ।।

मित्र मित्र के लिये,

लगा देते आपस में जान ।

उसूलों के साथ निभाऐं,

मित्रता की आन ।

मित्र मित्र में खोजें तो,

पाऐगें नया ज़माना ।

तैयार हमेशा वादे पर,

जैसे केसरिया बाना ।।

कभी न बनना प्यारे,

उसके आगे फूल-फक़ीर ।

मित्रता ही इक ज़ुबाँ जो,

वो पत्थर की लकीर ।।

साथ निभाऐं अन्तिम क्षण तक,

हो न शिथिलता डग में ।

मित्रता ऐसी ही हो,

प्रसिद्ध रहे नित जग में ।।

सुख-दुःखमें भागीदार रहे जो,

साथ निभाऐं मग में ।

मित्रता ऐसी ही हो,

प्रसिद्ध रहे नित जग में ।।

#  बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज")

         कोटा (राजस्थान)


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