मौन का चोला



मुश्किल है बहुत 

बहुत उत्साह को सँभालना 

उत्तेजना में उचित व्यवहार करना 

स्वयं को स्वयं बने रहने देना। 


वातावरण का अति उत्साह 

ढकेल देता है पीछे 

कभी अपने साहस को 

करता है निरुत्साहित। 


भीड़ की अतिशय उत्तेजना 

दबा देती है कहीं 

अपने रोमांच को

कर देती है निष्क्रिय।

बहुत में कुछ होकर 
खो जाने का डर 
अकसर बदल देता है 
निज के मूल आचरण को।

भीतर के भाव
बाहरी दबाव से  
यकायक ओढ़ लेते हैं 
मौन का चोला 
कोलाहल से बुना हुआ। 
डॉ. आरती ‘लोकेश’ 
दुबई,

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