सूरज

 

अथक यात्रा करता रहता है 

पर कभी न अकड़ दिखाता

सूरज हमको धूप रौशनी 

देकर कृषि उपजाता है

जीवन दान दिया धरती को 

मानव को भी प्राण दिया

हमने कुछ न किया अर्पण

पर उसने कभी न ध्यान दिया

नियत कर्म करता रहता है 

वह निरंतर चलता जाता है

मानव अपनी ओर देख लो

किंचित उपलब्धि पा कर

तुम गर्व से इठला जाते हो

अपने समक्ष औरों को तुम

बौना सा भान कराते हो

क्या घमंड ने पल भर भी

सूरज का संकल्प है तोड़ा 

शान में अपनी झूम झूम कर 

अपना नियम नहीं तोड़ा 

अरे कभी सूरज बन कर

देखो तो कितना सुख है

परोपकार करके भी देखो 

सुख देने में कितना सुख है 

दुर्लभ मानव जीवन का 

सुंदर उपयोग करो देखो 

बन सूरज लक्ष्य साधना है 

अपने मन में संकल्प करो।   


शशिलता गुप्ता 

बैंगलोर


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