'तुलदीदास जी'


फूल गुँथे जिसकी वेणी में
रखा उसको पशु की श्रेणी में।

कोख से जिसकी जनम लिया
वह दुइ दिन में मरि गयी महतारी
चुनिया दासी ने पाला उनको
वह भी हुइ गयी राम को प्यारी।

बड़े हुये तो ब्याह रचाया
प्रेम के मारे बुरा था हाल
घरवाली थी अति सुंदर
उसके पीछे पहुँचे ससुराल।

पर हाथ लगी निराशा उनके
एक हाथ से बजे न ताली  
रत्नावली के कटु बचनों ने
उनके प्रेम की हवा निकाली।

हृदय में बात चुभी तीर सी
बुद्धि शीघ्र उनकी तब जागी
छोड़-छाड़ घरबार सभी
तब तुलसीदास बने वैरागी।

प्रेम प्रताड़ित तुलसीदास
जब ना आये पत्नी को रास
खायी उसकी ऐसी झिड़की
खुली बंद अकल की खिड़की।

पत्नी के उन कटु बचनों से
हुयी शिकार उनकी हर नारी
इसीलिये लिखा है शायद
नारी ताड़न की अधिकारी।  

प्रखर बुद्धि और राम समर्पित
गोस्वामी ने कलम उठाई
जग-जीवन और ऊँच-नीच पर
लिखीं सैकड़ों तब चौपाई।

नारी जाति से हुयी विरक्ति  
बात न उसकी कोई भायी
ढोल, गंवार और पशु संग
वह उनकी चपेट में आयी।

फूल गुँथे जिसकी वेणी में
रखा उसको पशु की श्रेणी में।


-शन्नो अग्रवाल


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