जाकर ढूंढो उन राहों को,
जो हैं अब तक खोई,
तू चल बटोही तू चल बटोही,
कठिनाई से मत घबराना,
पग पग पर बढ़ते ही जाना,
तुझको इस नभ को छूना है,
चाहे परिश्रम हो दूना है,
क्रम रखना अबरोही,
तू चल बटोही, तू चल बटोही।।1।।
चाहे पथ में बाधा आयें,
चाहे पग कंटक चुभ जायें,
दुर्गम पहाड़ों पर चढ़ना है,
अपनी किस्मत को गढ़ना है,
तेवर तुम रखना अपना विद्रोही,
तू चल बटोही तू चल बटोही।।2।।
संघर्षों से लोहा लेना,
जीवन की नौका को खेना,
पर हित की खातिर जीना है,
तना रहे तेरा सीना है,
जागेगी ये तेरी किस्मत खोई,
तू चल बटोही तू चल बटोही।।3।।
बीज कर्म के अब बोने हैं,
कलह कलुषता भी धोने हैं,
जोश रगों में फिर भरना है,
अपना नाम अमर करना है,
नाम पुकारे फिर तेरा हर कोई,
तू चल बटोही तू चल बटोही।।4।।
हरीश चंद्र हरि नगर
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