दो जून की रोटी

 दो जून की रोटी 


शॉपिंग मॉल, रेस्टोरेंट 

या हो आईनॉक्स मूवी हॉल

हम शौक से खर्च करते हैं पैसे

चाहे हो दुगना, तिगुना 

या चौगुना दाम

वहां जबान सिल जाती है

मंहगाई के ऊपर 

सवाल उठाने में,

उल्टे कुछ और पैसे टिप 

के रूप में भी छोड़ आते हैं।


परंतु,

उस गरीब डाभ वाले, सब्जी वाले

या कोई आए फेरी करने वाला

जो पहुंचा देता है आपके घर तक

सारा सामान

बदले में कुछ मुफ्त भी 

दे ही देता है बिन बोले

जहां से हम पौष्टिक 

और अच्छी चीजें पाते हैं 

"उससे हम जरा भी नहीं हिचकते"

मोल भाव करने में

और ज़रा भी नहीं सोचते हम

उनके बच्चों और 

उनके जीवन के बारे में

कि उसके दिन रात के कठिन

परिश्रम के बदले वो

पाता है तो सिर्फ दो जून की रोटी।


संतोष कुमार वर्मा "कविराज" 

कांकिनाड़ा, पश्चिम बंगाल


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