अपने पथ से विचलित होकर,
भटकी आज जवानी है।
कर्णधार ही बेसुध बैठे,
कैसी अजब कहानी है।।
जिन कंधों पर भार वतन का,
झुकते दिखते वे कंधे।
मंज़िल की पहचान नहीं है,
आँखों वाले हैं अंधे।।
अजब-ग़ज़ब है हाल युवा का,
देख हुई हैरानी है।
कर्णधार ही बेसुध बैठे,
कैसी अजब कहानी है।।
रक्त बर्फ-सा शीत हुआ है,
मन भी लगता मरा हुआ।
सच कहने की हिम्मत खो दी,
चुप बैठा है डरा हुआ।।
शुतुरमुर्ग़-सम छुपकर बैठा,
देख दशा तूफ़ानी है।
कर्णधार ही बेसुध बैठे,
कैसी अजब कहानी है।।
नशाख़ोर खा जाता सबको,
नशा नाश का आगम है।
भरी जवानी गई नशे में,
नशा करे जीवन कम है।।
धुआँ-धुआँ-सा जोश हुआ अब,
मादकता मनमानी है।
कर्णधार ही बेसुध बैठे,
कैसी अजब कहानी है।।
मोबाइल में डूब गया सब,
समय क़ीमती बीत रहा।
ज़हर निगलता धीरे-धीरे,
ना पुस्तक का मीत रहा।
खेल-खेत सब भूल गया तू,
लगे धरा बेगानी है।
कर्णधार ही बेसुध बैठे,
कैसी अजब कहानी है।।
जाग युवा! ख़ुद को पहचानो,
ताक़त का आह्वान करो।
तोड़ बढ़ो तम-कारा को तुम,
बल पर भी अभिमान करो।।
ऊर्जा के नव स्रोत बनो तुम,
फिर दुनिया दीवानी है।
कर्णधार ही बेसुध बैठे,
कैसी अजब कहानी है।।
-डॉ. शिशुपाल
शिक्षक व साहित्यकार
संगरिया (राजस्थान)
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