रब का निवास

 

जहाँ प्यार और श्रद्धा,

रब का वही निवास ।

स्वर्ग वही है भाईयों,

वही एक है  खास ।।

प्यार   और   श्रद्धा,

से    जीतें   विश्वास ।

ईमान इसी पर कायम,

टिकी  हुई  है आस ।। 

शख्स बना जहान में,

वासनाओं का दास  ।

नहीं फटकने दें कभी,

तृष्णाओं  को  पास ।।

"पुखराज" को न आता,

कहीं  और  न  रास ।

अन्तर्मन  जहाँ शुद्ध  हो,

रब का वही निवास ।।

# बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज",

         कोटा (राजस्थान)


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